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चतुर चिड़िया का सबक: एक प्रेरक कहानी : यह कहानी राजा विक्रम और चतुर चिड़िया चंचल की है, जिसने अपनी बुद्धि से राजा को चार सबक सिखाए—दुश्मन को न छोड़ना, भरोसा सोच-समझकर करना, पछतावा न करना, और ज्ञान को जीवन में उतारना। चंचल की चालाकी ने बगीचे को नया रूप दिया और सबके लिए सबक छोड़ा।
शुरुआत: वाटिका का रहस्य
एक समय की बात है, एक राजा के भव्य महल में एक खूबसूरत बगीचा था, जहाँ अंगूरों की लता हरी-भरी थी। हर दिन एक नन्हीं चिड़िया, जिसका नाम था चंचल, आती और मीठे अंगूर चट कर जाती, जबकि खट्टे अंगूर नीचे फेंक देती। बगीचे का माली, रामू, इससे परेशान था। उसने चंचल को पकड़ने की कई कोशिशें की, लेकिन वह फुर्तीली थी और हाथ नहीं आई। हारकर रामू ने राजा विक्रम को शिकायत की, “महाराज, ये चिड़िया हमारे अंगूर बर्बाद कर रही है!” राजा ने कहा, “चिंता मत करो, रामू, मैं इसकी चालाकी देख लूँगा।”
महाराज विक्रम ने ठान लिया कि चंचल को सबक सिखाना है। एक दिन वह बगीचे में छिप गया। शाम को चंचल अंगूर खाने आई। राजा ने फुर्ती दिखाई और उसे पकड़ लिया। चंचल घबराई, लेकिन शांत होकर बोली, “महाराज, मुझे मत मारो! मैं आपको चार बेशकीमती ज्ञान की बातें बताऊँगी।” राजा ने कहा, “ठीक है, जल्दी बोलो!”
ज्ञान की बातें और चतुराई
चंचल बोली, “पहली बात, हाथ आए दुश्मन को कभी न छोड़ें।” राजा ने मुस्कुराते हुए कहा, “अच्छा, दूसरी बात क्या है?” चंचल ने जवाब दिया, “दूसरी, किसी पर जल्दी भरोसा न करें। तीसरी, बीते वक्त पर पछतावा न करें।” राजा उत्सुक हो गया, “चौथी बात भी सुनाओ!” चंचल ने कहा, “चौथी बात गहरी है, महाराज। मेरा दम घुट रहा है, थोड़ा हाथ ढीला करें, ताकि सांस ले सकूँ।”
विक्रम ने जैसे ही हाथ ढीला किया, चंचल फुर्ती से उड़कर डाल पर जा बैठी। हँसते हुए बोली, “मेरे पेट में दो कीमती हीरे हैं!” राजा हैरान रह गया और पछताने लगा, “अरे, मैंने उसे छोड़ दिया!” चंचल ने फिर कहा, “महाराज, ज्ञान सुनने से नहीं, उसे अपनाने से फायदा होता है। मैं आपकी दुश्मन थी, फिर भी आपने मुझे छोड़ दिया। मेरी असंभव बात पर भरोसा कर लिया, और अब पछता रहे हैं।”
नया सबक और बगीचे का बदलाव
राजा ने सोचा और हँसते हुए कहा, “चंचल, तुमने मुझे सिखा दिया!” चंचल ने जवाब दिया, “महाराज, अब मैं अंगूर कम खाऊँगी और आपके बगीचे की रक्षा करूँगी।” राजा ने बगीचे में एक छोटा सा तालाब बनवाया, जहाँ चंचल और अन्य पक्षी पानी पीते। रामू ने कहा, “महाराज, अब बगीचा और सुंदर हो गया!” धीरे-धीरे बगीचा फलों से लद गया, और राजा ने चंचल को अपना दोस्त माना। एक दिन बच्चों ने पूछा, “राजा जी, क्या हम भी चंचल से सीखें?” राजा ने मुस्कुराकर कहा, “हाँ, बेटा, चतुराई और मेहनत से सब सीखा जा सकता है।”
सीख
ज्ञान तभी काम आता है, जब हम उसे अपने जीवन में अपनाएँ। चतुराई और समझदारी से हर मुश्किल हल हो सकती है।
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