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किसी उपवन में चंपी मुर्गी रहा करती थी। उसका एक प्यारा-सा बेटा था। बर्फ जैसा उजला-उजला, सफेद-सफेद; नाम था उसका 'गब्बू।' गब्बू अभी छोटा था, अतः वह अक्सर घर पर ही रहा करता। वह अपनी माँ का आज्ञाकारी बेटा था। माँ की हर बात वह खुशी-खुशी माना करता। चंपी मुर्गी अपने गब्बू बेटे को दब्बू नहीं बनाना चाहती थी, वह उसे बहादुरों की कहानियाँ सुनाया करती। उपवन में रहने के तौर-तरीके भी वह उसे समझाया करती। गब्बू माँ की हर बात खूब ध्यानपूर्वक सुनता।
एक बार चंपी मुर्गी को किसी बहुत ही आवश्यक कार्यवश कहीं बाहर जाना पड़ा। वह गब्बू को अपने साथ नहीं ले जा सकती थी। सुबह जब सामने पहाड़ी से सूरज निकलकर आसमान की छत पर हौले-हौले आया, तब चंपी मुर्गी अपने बेटे से बोली, "बेटा! मैं जरूरी कार्य से उपवन से दूर जा रही हूँ। लौटने में शायद शाम हो जाए। तू डरना नहीं। हाँ, किसी अनजान प्राणी को घर में न आने देना, न किसी की मीठी बातों में आकर उस पर विश्वास करना।" गब्बू बोला, "माँ! तुम चिंता मत करो। मैं निडरतापूर्वक रहूँगा। मेरी ओर से तुम निश्चिंत होकर जाओ। संकट आने पर मैं सूझबूझ और धैर्य से काम लूँगा।"
चंपी मुर्गी उपवन से दूर निकल आई थी। तभी धूर्त लोमड़ी उधर आ पहुँची। चंपी मुर्गी के घर के बाहर पहुँचकर वह गब्बू को प्यार से आवाज देती हुई कमरे में प्रवेश करने लगी। इधर, माँ के घर से निकलते ही गब्बू कुछ खाने में इस कदर खो गया कि उसे अपने घर का द्वार ठीक से बंद करने का ख्याल ही न रहा। लोमड़ी को अचानक अपने सामने पाकर पहले तो गब्बू के होश ही उड़ गए।
पर उसने विपदा आने पर साहस से काम लेना सीखा था। "हम सबको कहानी सुनाना," लोमड़ी बोली, "बेटा! मैं तुम्हारी मौसी लगती हूँ। इस समय दूर पहाड़ी पर से चली आ रही हूँ। क्या बतलाऊँ, बेटा! मुझे तुम्हारी कितनी याद आती रहती है। मैं तो तुम्हें कहानियाँ सुनाने आई हूँ। आओ, मेरे पास आकर बैठो।"
लोमड़ी को अपनी ओर ललचाई नजरों से देखते हुए गब्बू बोला, "मौसी! कहानियाँ तो मेरे भाइयों को भी बहुत अच्छी लगती हैं। इस समय मेरी माँ उपवन से बहुत दूर गई हुई हैं। मेरे भाई अभी छोटे हैं। स्कूल से लौटते समय वे घर का रास्ता भूल सकते हैं। पहले मैं जाकर उन्हें घर ले आऊँ। तब तुम हमें कहानियाँ सुनाना।"
लोमड़ी अपने होंठों पर जीभ फेरती हुई बोली, "पाँच भाई हो?" लोमड़ी खुशी से चीख पड़ी। वह मन-ही-मन बोली, "मुर्गी के पाँच बच्चों का एक साथ स्वादिष्ट मांस खाने का आज सुनहरा अवसर हाथ आया है। मुर्गी भी लौट आई तो उसे भी हजम कर जाऊँगी।" वह उतावली होती हुई बोली, "जाओ बेटा! जल्दी जाकर अपने प्यारे भाइयों को घर ले आओ, वरना वे बेचारे रास्ता भूल जाएँगे।"
गब्बू बोला, "मौसी! तुम भीतर से दरवाजा बंद कर लेना, न भूलना। लो, मैं तो चला।"
गब्बू के घर से बाहर निकलते ही बेवकूफ लोमड़ी ने मुर्गी के घर का द्वार बंद कर भीतर से कुंडी लगा दी। इधर, गब्बू ने अपने घर के द्वार पर बाहर से भी कुंडी लगा दी। वह संभल-संभल कर चल पड़ा अजायबघर वालों के पास। उसे याद हो आया कि कुछ दिनों पूर्व अजायबघर वालों ने ऐलान करवाया था कि लोमड़ी पकड़वाने में मदद करने वाले को इनाम दिया जाएगा। शहर के अजायबघर को लोमड़ी की बड़ी जरूरत थी।
चंपी मुर्गी के गब्बू बेटे को उपवन में अकेले दौड़ते देखकर मोर ने पूछा, तो वह बोला, "लोमड़ी कैद हो गई।"
मोर गब्बू के पीछे दौड़ते हुए चिल्लाया, "लोमड़ी कैद हो गई।" इन दोनों को दौड़ते देखकर खरगोश बोला, "लोमड़ी कैद हो गई।" तीनों को दौड़ते-भागते देखकर हिरण बोला, "लोमड़ी कैद हो गई, तो चलो अजायबघर चलें।" लोमड़ी कैद हो गई का शोर सुनकर अजायबघर के अधिकारी दौड़े-दौड़े आए और बोले, "अरे! लोमड़ी को किसने और कैसे कैद कर लिया?"
चंपी मुर्गी के बेटे गब्बू से लोमड़ी को अपने ही घर में युक्तिपूर्वक कैद कर लेने की बात सुनकर अजायबघर के अधिकारी जंगला गाड़ी लेकर चंपी मुर्गी के घर पर जा पहुँचे। चंपी मुर्गी के घर के द्वार पर बाहर से कुंडी लगी हुई थी। कुंडी खुलने की आवाज सुनकर कमरे में बंद लोमड़ी ने समझा कि गब्बू अपने भाइयों को लेकर आ पहुँचा है। उसने भीतर से कुंडी खोल दी, लेकिन अजायबघर अधिकारियों ने द्वार के सामने पहले से जंगला गाड़ी खड़ी कर रखी थी। धूर्त लोमड़ी आसानी से पकड़कर अजायबघर ले जाई गई। गब्बू से उचित इनाम माँगने को कहा गया, तो वह बोला.
"उपवन के पास वाली जमीन मुझे और मेरे सभी साथियों को दाना चुगने के लिए प्रदान कर दी जाए, ताकि हमें दाना चुगने इधर-उधर भटकना न पड़े। साथ ही इनामस्वरूप यह आश्वासन चाहता हूँ कि आज से उपवन का कोई भी प्राणी अजायबघर के लिए कैद न किया जाए। हम सब आजाद होकर धरती पर विचरण करते रहें।"
तब तक चंपी मुर्गी भी उपवन में लौट आई थी। अपने घर के बाहर अजीब तमाशा देखकर पहले तो वह घबरा उठी। पर सारा माजरा समझते ही उसकी खुशी का ठिकाना न रहा। अजायबघर अधिकारियों की ओर से गब्बू को दाना चुगने के लिए जमीन मिल गई—हरियाली जमीन। साथ ही उसे और उसके साथियों को पकड़े न जाने का आश्वासन भी मिल गया। लोमड़ी अवश्य अपनी धूर्तता के कारण अजायबघर की हवा खाने पहुँच चुकी थी। चंपी मुर्गी ने अपने गब्बू बेटे की सूझबूझ और वीरता पर प्रसन्न होकर उसे गले लगा लिया।
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कहानी की सीख (Moral of the Story)
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि सूझबूझ और साहस से किसी भी खतरे का सामना किया जा सकता है। गब्बू ने अपनी माँ की सलाह मानी और लोमड़ी की चालाकी को समझकर उसे कैद कर लिया। बच्चों, हमें हमेशा समझदारी से फैसले लेने चाहिए और मुसीबत में धैर्य नहीं खोना चाहिए। (Lesson on Cleverness and Courage, Moral Story for Kids)