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बच्चों के लिए कहानियाँ न केवल मनोरंजन का साधन हैं, बल्कि वे जीवन के महत्वपूर्ण सबक भी सिखाती हैं। कछुआ और उसका डर की कहानी एक ऐसी प्रेरक जंगल कहानी है, जो बच्चों को सिखाती है कि डर हर किसी के जीवन में होता है, लेकिन उसका सामना करना हमें और मजबूत बनाता है। यह कहानी एक छोटे कछुए और उसकी बहन की है, जो अपने डर को प्यार और हिम्मत के साथ पार करता है। यह बच्चों की जंगल कहानी नन्हे पाठकों को प्रेरित करेगी कि वे अपने डर को गले लगाएँ और उससे आगे बढ़ें। आइए, इस हिंदी जंगल स्टोरी को पढ़ें और जानें कि कैसे एक छोटा कछुआ अपने डर पर विजय पाता है।
कहानी की शुरुआत
हिमाचल के एक हरे-भरे जंगल में, जहाँ एक छोटी सी झील थी, दो कछुए भाई-बहन रहते थे—छोटा कछुआ, जिसे सब नन्हा कछुआ कहते थे, और उसकी बड़ी बहन कमठी। कमठी तेज-तर्रार और हिम्मती थी, जबकि नन्हा कछुआ डरपोक था। उसे बिजली की गड़गड़ाहट और तूफान से बहुत डर लगता था। एक बार, जब वह बहुत छोटा था, एक बिजली की चमक उसके कवच पर गिरी थी। सौभाग्य से, उसका कवच मजबूत था, और वह बच गया, लेकिन तब से वह हर तूफान से डरने लगा था।
एक रात, जब आसमान में काले बादल छाए थे और बिजली चमक रही थी, कमठी ने नन्हा कछुए से कहा, “नन्हा, जल्दी कर! हमें झील तक जाना है। सारे भाई-बहन वहाँ पहुँच चुके हैं, सिर्फ हम बाकी हैं!”
नन्हा कछुआ अपने कवच में सिमट गया और बोला, “कमठी दीदी, मैं नहीं जा सकता! बिजली मुझे मार डालेगी!”
कमठी ने प्यार से कहा, “अरे नन्हा, डर मत। तेरा कवच तुझे बचा लेगा। चल, मेरे साथ!”
“नहीं दीदी,” नन्हा कछुए ने काँपते हुए कहा। “मुझे वो दिन याद है जब बिजली मेरे कवच पर गिरी थी। अगर फिर से गिरी, तो मैं तो गया!”
कमठी ने हँसते हुए कहा, “अरे, वो तो बस एक बार हुआ था! और तू बच गया, ना? अब डर छोड़ और चल!”
जंगल के जानवरों का मज़ाक
नन्हा कछुए ने मुँह बनाया और बोला, “तुम्हें क्या पता, दीदी? ये तूफान कितना डरावना है! चिड़ियों की चहचहाहट, हवा की सनसनाहट, सब मुझे डराते हैं!”
कमठी ने गंभीर होकर कहा, “नन्हा, अगर तू झील तक नहीं गया, तो हम दोनों मुश्किल में पड़ जाएँगे। तुझे अपने डर से बाहर निकलना होगा। जिंदगी में इससे बड़े-बड़े डर आएँगे!”
“बड़े-बड़े डर?” नन्हा कछुए ने आँखें फाड़कर पूछा। “ये छोटा तूफान नहीं है, दीदी! मेरे कवच पर बिजली गिरी थी!”
कमठी हँस पड़ी। “हाँ, और वो बिजली तुझसे टकराकर भाग गई! अब चल, मेरे छोटे भाई!”
तभी जंगल के कुछ जानवरों ने नन्हा कछुए का मज़ाक उड़ाना शुरू कर दिया। एक गिलहरी, जिसे सब चटक गिलहरी कहते थे, पास के पेड़ पर बैठकर हँसते हुए बोली, “अरे, ये कछुआ तो बिजली से डरता है! कितना डरपोक है!”
एक खरगोश, जिसका नाम फुदकू खरगोश था, ने भी चिल्लाकर कहा, “हा हा! कछुए का कवच तो इतना मजबूत होता है, फिर भी डरता है!”
नन्हा कछुआ का चेहरा लटक गया। कमठी ने गुस्से में चटक गिलहरी से कहा, “चुप कर, गिलहरी! कल तुझे बिल्ली से भागते देखा था। तू उससे डरती थी, फिर भी हमने तेरा मज़ाक नहीं उड़ाया!”
चटक गिलहरी शर्मिंदगी में चुप हो गई और पेड़ पर चढ़ गई। नन्हा कछुए ने कमठी की ओर देखकर कहा, “धन्यवाद, दीदी। तुमने मेरी इज्जत बचा ली।”
कमठी ने मुस्कुराकर कहा, “मैं तेरी बड़ी बहन हूँ, नन्हा। तेरा साथ देना मेरा फर्ज है।”
एक खास मुलाकात
तभी एक खूबसूरत कछुए की बच्ची, जिसे सब चमकी कछुआ कहते थे, उनके पास आई। उसकी आँखें चमक रही थीं, और वह थोड़ा घबराई हुई लग रही थी। उसने पूछा, “माफ करना, क्या तुम मुझे झील का रास्ता बता सकते हो? मैं रास्ता भटक गई हूँ।”
नन्हा कछुआ ने चमकी को देखा, और उसके दिल में अजीब सी हलचल हुई। वह इतनी खूबसूरत थी कि नन्हा कछुए का डर काफूर हो गया। वह अपने कवच से बाहर निकला और बोला, “ह..हाँ, मैं बता सकता हूँ!”
लेकिन उसकी आवाज़ काँप रही थी। कमठी ने हँसते हुए कहा, “अरे नन्हा, तू तो बाहर निकल आया! देखा, डर छू-मंतर हो गया!”
कमठी ने चमकी को रास्ता बताया और बोली, “हम भी झील की ओर जा रहे हैं। अगर तुम चाहो, तो हमारे साथ चल सकती हो।”
चमकी ने मुस्कुराकर कहा, “धन्यवाद, लेकिन मुझे थोड़ा जुकाम है। मैं नहीं चाहती कि तुम लोग बीमार पड़ो।” यह कहकर वह चली गई।
नन्हा कछुआ उत्साह से बोला, “दीदी, मैं अब डर नहीं रहा! चलो, जल्दी झील चलते हैं। शायद चमकी वहाँ मिल जाए!”
कमठी ने हँसते हुए कहा, “वाह, मेरे भाई! प्यार ने तेरा डर भगा दिया!”
डर पर जीत
दोनों भाई-बहन झील की ओर चल पड़े। रास्ते में एक जोरदार आवाज़ हुई। नन्हा कछुआ डरकर कमठी के पास सट गया। “ये क्या था, दीदी?” उसने काँपते हुए पूछा।
कमठी ने चारों ओर देखा और हँस पड़ी। “अरे, ये तो एक बंदर था, जिसे सब उछल बंदर कहते हैं! वो पत्थरों को आपस में टकरा रहा था!”
उछल बंदर हँसते हुए बोला, “हा हा! ये कछुआ तो हर आवाज़ से डरता है!”
कमठी ने गुस्से में कहा, “चुप कर, उछल बंदर! तुझे तो पेड़ से कूदने में डर लगता है। सबके अपने-अपने डर होते हैं!”
उछल बंदर शर्मिंदगी में भाग गया। नन्हा कछुए ने कमठी का हाथ पकड़ा और बोला, “दीदी, तुम सही कहती हो। हर किसी को किसी न किसी चीज़ से डर लगता है। लेकिन आज मैंने सीखा कि डर का सामना करना कितना ज़रूरी है।”
कमठी ने गर्व से कहा, “शाबाश, मेरे छोटे भाई! अब चल, झील तक पहुँचते हैं!”
झील का आनंद और नई दोस्ती
झील पहुँचकर नन्हा कछुआ और कमठी ने देखा कि चमकी वहाँ पहले से मौजूद थी। नन्हा कछुए ने हिम्मत जुटाकर उससे बात की। “हाय, चमकी! तुम ठीक हो ना?” उसने पूछा।
चमकी ने मुस्कुराकर कहा, “हाँ, मैं ठीक हूँ। तुम दोनों का शुक्रिया, जो मेरी मदद की।”
उस दिन के बाद, नन्हा कछुआ, कमठी, और चमकी अच्छे दोस्त बन गए। नन्हा कछुआ का डर धीरे-धीरे कम हो गया। वह अब तूफानों से नहीं डरता था और झील में अपने दोस्तों के साथ खूब मस्ती करता था। सालों बाद, जब नन्हा कछुआ बड़ा हुआ, वह अपने बच्चों को यह कहानी सुनाता और कहता, “अगर तुम्हें मुझ पर यकीन न हो, तो अपनी दादी चमकी से पूछ लो!”
कहानी से सीख
“डर होना कोई शर्म की बात नहीं है। हर किसी को किसी न किसी चीज़ से डर लगता है। लेकिन हिम्मत करके उसका सामना करना हमें और मज़बूत बनाता है।”
Moral in English: “It’s okay to be afraid; everyone fears something. But facing your fears with courage makes you stronger.”
माता-पिता के लिए सुझाव
माता-पिता को अपने बच्चों को ऐसी जंगल कहानियाँ सुनानी चाहिए, जो उन्हें डर का सामना करने और आत्मविश्वास बढ़ाने की प्रेरणा दें। बच्चों के साथ इस कहानी पर चर्चा करें और उन्हें बताएँ कि डर को स्वीकार करना और उससे आगे बढ़ना कितना ज़रूरी है।
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