खरगोश की चतुराई ने बचाया जीवन- Jungle Story

एक समय की बात है, एक घने और हरे-भरे वन में हाथियों का एक विशाल झुंड रहता था। इस झुंड का नेतृत्व चतुर्दंत नाम का एक बहुत ही विशाल, पराक्रमी, शांत और समझदार हाथी करता था।

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खरगोश की चतुराई- एक समय की बात है, एक घने और हरे-भरे वन में हाथियों का एक विशाल झुंड रहता था। इस झुंड का नेतृत्व चतुर्दंत नाम का एक बहुत ही विशाल, पराक्रमी, शांत और समझदार हाथी करता था। उसकी समझदारी और न्यायप्रियता के कारण सभी हाथी उसकी छत्र-छाया में सुख और शांति से रहते थे। चतुर्दंत सबकी समस्याएँ धैर्य से सुनता, उनका हल निकालता और छोटे-बड़े सबका बराबर ख़्याल रखता था।

एक बार उस पूरे क्षेत्र में भयंकर सूखा पड़ गया। कई वर्षों तक पानी की एक बूँद भी नहीं बरसी। सारे ताल-तलैया सूखने लगे, पेड़-पौधे कुम्हला गए, और धरती फट गई। हर तरफ़ हाहाकार मच गया। हर प्राणी एक-एक बूँद पानी के लिए तरस रहा था। हाथियों का झुंड भी प्यास से बेहाल था।

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हाथियों ने अपने सरदार चतुर्दंत से कहा, "सरदार, कोई उपाय सोचिए! हम सब प्यास से मर रहे हैं। हमारे बच्चे तड़प रहे हैं। अगर ऐसे ही चलता रहा तो हम सब ख़त्म हो जाएँगे।"

चतुर्दंत पहले से ही इस गंभीर समस्या को जानता था और सबके दुख को समझता था, पर उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि इस भयंकर सूखे से कैसे निपटा जाए। वह गहरी सोच में पड़ गया। सोचते-सोचते उसे अपने बचपन की एक बात याद आई।

चतुर्दंत ने अपनी लंबी सूंड उठाई और कहा, "मुझे ऐसा याद आता है कि मेरे दादाजी कहते थे, यहाँ से पूर्व दिशा में एक बहुत ख़ास ताल है। वह भूमिगत जल से जुड़ा होने के कारण कभी नहीं सूखता। मुझे लगता है, हमें वहीं चलना चाहिए। शायद वहीं हमारी प्यास बुझे।"

सभी हाथियों को आशा की एक नई किरण दिखाई दी। उनकी आँखों में उम्मीद चमक उठी।

हाथियों का विशाल झुंड चतुर्दंत द्वारा बताई गई दिशा की ओर चल पड़ा। बिना पानी के, दिन की झुलसाती गर्मी में इतना लंबा सफ़र करना बेहद कठिन था। इसलिए, हाथियों ने रात को सफ़र करने का फ़ैसला किया, ताकि सूरज की तपती धूप से बच सकें। पाँच लंबी और थका देने वाली रातों के बाद, वे आख़िरकार उस अनोखे ताल तक पहुँच गए।

सचमुच! ताल पानी से लबालब भरा हुआ था। सभी हाथियों ने जी भर कर पानी पिया, अपनी सूँडों में पानी भरकर एक-दूसरे पर उछाला, और ताल में घंटों नहाए व डुबकियाँ लगाईं। उनकी प्यास बुझ गई और थकान दूर हो गई।

लेकिन, उसी क्षेत्र में खरगोशों की एक बहुत बड़ी आबादी रहती थी। हाथियों के आने से उन पर एक बहुत बड़ा संकट आ गया। सैंकड़ों खरगोश हाथियों के विशाल पैरों तले कुचले गए, उनके बिल रौंदे गए, और उनके घरों को नुक़सान पहुँचा। खरगोशों के समाज में हाहाकार मच गया। जो खरगोश बच गए थे, उन्होंने तुरंत एक आपातकालीन सभा बुलाई।

एक डरपोक खरगोश बोला, "हमें यहाँ से तुरंत भाग जाना चाहिए! ये हाथी बहुत शक्तिशाली हैं, हम इनका मुक़ाबला नहीं कर सकते।"

लेकिन एक तेज स्वभाव वाला और अक्लमंद खरगोश, जिसका नाम चतुर था, वह भागने के हक़ में नहीं था। उसने अपनी मूँछें फड़फड़ाते हुए कहा, "नहीं! भागना कोई समाधान नहीं है। हमें अक्ल से काम लेना चाहिए! हमें इन हाथियों से डरने की बजाय, इन्हें अपनी चतुराई से भगाना होगा।"

एक अन्य खरगोश ने उसका समर्थन किया, "चतुर ठीक कहता है! उसकी बात हमें माननी चाहिए। लेकिन हम हाथियों को कैसे भगाएँगे? वे तो बहुत बड़े हैं।"

चतुर ने अपनी योजना समझाई, "हाथी अंधविश्वासी होते हैं। हम उन्हें कहेंगे कि हम चंद्रवंशी हैं, यानी चंद्रमा के वंशज हैं। तुम्हारे द्वारा किए गए खरगोश संहार से हमारे देव चंद्रमा बहुत रुष्ट हैं। यदि तुम यहाँ से नहीं गए, तो चंद्रदेव तुम्हें विनाश का श्राप देंगे।"

सभा में मौजूद एक अन्य खरगोश ने सलाह दी, "यह तो बहुत अच्छी योजना है! हमें अपने समाज के सबसे चतुर खरगोश, लंबकर्ण को अपना दूत बनाकर चतुर्दंत के पास भेजना चाहिए।" इस प्रस्ताव पर सब सहमत हो गए।

लंबकर्ण एक बहुत ही चतुर खरगोश था। पूरे खरगोश समाज में उसकी चतुराई की धाक थी। बातें बनाना और अपनी बातों से दूसरों को प्रभावित करना उसे खूब आता था। जब खरगोशों ने उसे दूत बनकर जाने के लिए कहा, तो वह तुरंत तैयार हो गया। खरगोशों पर आए इस संकट को दूर करके उसे प्रसन्नता ही होगी, उसने सोचा।

लंबकर्ण खरगोश चतुर्दंत के पास पहुँचा। वह दूर से ही एक ऊँची चट्टान पर चढ़ गया ताकि हाथी उसे देख सकें और उसकी बात सुन सकें। उसने गंभीर आवाज़ में कहा, "गजनायक चतुर्दंत! मैं लंबकर्ण, चंद्रदेव का दूत हूँ और उनका संदेश लेकर आया हूँ। चंद्रदेव हमारे स्वामी हैं!"

चतुर्दंत ने अपनी सूंड हिलाई और पूछा, "भई, क्या संदेश लाए हो तुम?"

लंबकर्ण ने थोड़ा और आत्मविश्वास से कहा, "तुमने खरगोश समाज को बहुत हानि पहुँचाई है। चंद्रदेव तुमसे बहुत रुष्ट हैं। इससे पहले कि वे तुम्हें श्राप दें, तुम यहाँ से अपना झुंड लेकर चले जाओ।"

चतुर्दंत को तुरंत विश्वास न हुआ। उसने कहा, "चंद्रदेव कहाँ हैं? मैं ख़ुद उनके दर्शन करना चाहता हूँ।"

लंबकर्ण ने अपनी चाल को और पक्का करते हुए कहा, "चंद्रदेव असंख्य मृत खरगोशों को श्रद्धांजलि देने स्वयं इसी ताल में पधारकर बैठे हैं। आइए, उनसे साक्षात्कार कीजिए और स्वयं देख लीजिए कि वे आपके झुंड के अत्याचारों से कितने रुष्ट हैं।"

चालाक लंबकर्ण चतुर्दंत को रात में ताल पर ले आया। उस रात पूर्णिमा थी। ताल के शांत पानी में पूर्ण चंद्रमा का बिम्ब ऐसे पड़ रहा था, जैसे किसी शीशे में कोई चीज़ दिखाई पड़ती हो। चतुर्दंत यह देखकर थोड़ा घबरा गया।

चालाक खरगोश हाथी की घबराहट ताड़ गया और और अधिक विश्वास के साथ बोला, "गजनायक, ज़रा नज़दीक से चंद्रदेव का साक्षात्कार करें तो आपको पता लगेगा कि आपके झुंड के इधर आने से हम खरगोशों पर क्या बीती है। और अपने भक्तों का दुख देखकर हमारे चंद्रदेवजी के दिल पर क्या गुज़र रही है।"

लंबकर्ण की बातों का गजराज पर जादू-सा असर हुआ। चतुर्दंत डरते-डरते पानी के निकट गया और अपनी सूंड चंद्रमा के प्रतिबिम्ब के निकट ले जाकर 'जाँच' करने लगा। जैसे ही उसकी सूंड पानी के निकट पहुँची, सूंड से निकली हवा से पानी में हलचल हुई और चंद्रमा का प्रतिबिम्ब कई भागों में बँट गया और विकृत हो गया।

यह देखते ही चतुर्दंत के होश उड़ गए! वह हड़बड़ाकर कई कदम पीछे हट गया। लंबकर्ण तो इसी बात की ताक में था। वह तुरंत चीखा, "देखा! आपको देखते ही चंद्रदेव कितने रुष्ट हो गए! वे क्रोध से काँप रहे हैं और गुस्से से फट रहे हैं! अगर आप अपनी खैर चाहते हैं, तो अपने झुंड के समेत यहाँ से शीघ्रातिशीघ्र प्रस्थान करें, वरना चंद्रदेव पता नहीं क्या श्राप दें!"

चतुर्दंत को अब लंबकर्ण की बात पर पूरा विश्वास हो गया था। वह तुरंत अपने झुंड के पास लौट गया और सबको सलाह दी कि उनका यहाँ से तुरंत प्रस्थान करना ही उचित होगा।

अपने सरदार के आदेश को मानकर हाथियों का झुंड उस ताल को छोड़कर वहाँ से लौट गया। खरगोशों में खुशी की लहर दौड़ गई। उन्होंने अपनी चतुराई से एक बहुत बड़ी आपदा टाल दी थी। हाथियों के जाने के कुछ ही दिन पश्चात, आकाश में बादल आए, घनघोर वर्षा हुई और सारा जल संकट समाप्त हो गया। हाथियों को फिर कभी उस ओर आने की ज़रूरत ही नहीं पड़ी। खरगोशों ने राहत की साँस ली और लंबकर्ण की चतुराई की सबने खूब प्रशंसा की।

सीख (Moral of the Story):

यह कहानी हमें सिखाती है कि शारीरिक बल से ज़्यादा बुद्धि का बल श्रेष्ठ होता है। अक्सर, छोटी-से-छोटी चुनौतियाँ भी बड़ी से बड़ी ताक़त को मात दे सकती हैं, बशर्ते सही समय पर सही बुद्धि और चतुराई का प्रयोग किया जाए। यह कहानी हमें यह भी सिखाती है कि विपरीत परिस्थितियों में घबराने की बजाय, शांत मन से समस्या का समाधान खोजना चाहिए और अपनी टीम या समाज के साथ मिलकर काम करना चाहिए। एक नेता को न केवल शक्तिशाली होना चाहिए, बल्कि समझदार और सबकी समस्याओं को समझने वाला भी होना चाहिए, ताकि वह अपने लोगों को सही दिशा दिखा सके।

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