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Lesson from the grasshopper and the ant: The fruits of hard work are always sweet.
कहानी: टिड्डे और चींटी की सीख - पतझड़ का मौसम अपने अंतिम चरण में था। जंगल के हर कोने में हलचल थी। सभी जानवर और कीड़े-मकोड़े सर्दियों के लिए अपने भोजन का भंडारण कर रहे थे। पक्षी पत्तियों से गिरे बीज उठा रहे थे, गिलहरियां पेड़ों की डालियों पर कूद-फांद कर अपने भोजन को छुपा रही थीं। यहां तक कि चींटियां भी अपनी पंक्तियों में मेहनत से काम कर रही थीं। लेकिन टिड्डे को इन सबकी कोई परवाह नहीं थी।
टिड्डा हर दिन पत्तों पर कूदता-फांदता, गाना गाता और खेलता। वह कहता, "ज़िंदगी का मजा लो। ये दुनिया कितनी सुंदर है। मेहनत क्यों करनी, जब खेलने का समय है?" उसका समय इस बात में निकल जाता था कि कैसे पतझड़ के पत्तों से खेलकर और उछल-कूद कर आनंद लिया जाए।
एक दिन, टिड्डा खेलते-खेलते चींटी से मिला। चींटी चावल का दाना पीठ पर लादे, थकी हुई लेकिन दृढ़ थी। टिड्डे ने उसकी ओर देखकर कहा, "अरे, चींटी! क्यों इतनी मेहनत कर रही हो? आओ मेरे साथ खेलो।"
चींटी ने सिर हिलाते हुए कहा, "टिड्डे, सर्दियां आने वाली हैं। मैं अभी मेहनत करूंगी, तो सर्दियों में आराम से खा सकूंगी। तुम्हें भी अपना समय सही जगह लगाना चाहिए।"
टिड्डा हँसते हुए बोला, "मुझे खाने की चिंता नहीं है। जब भूख लगेगी, तब मैं खाना ढूंढ लूंगा। अभी खेल का समय है।"
चींटी आगे बढ़ गई। सर्दियां आईं। जंगल बर्फ से ढक गया। ठंड इतनी बढ़ गई कि टिड्डा बाहर निकलने में भी कांपता था। उसके पास खाने को कुछ नहीं था। भूख और ठंड से जूझते हुए, उसने सोचा, "काश, मैंने समय पर चींटी की बात मानी होती।"
चींटी के बिल के अंदर माहौल बिल्कुल विपरीत था। वहां हर कोई आराम से था। उनके पास खाने का भंडार था और ठंड से बचने के लिए सुरक्षित घर।
सीख:
कहानी हमें सिखाती है कि कठिन समय के लिए पहले से तैयारी करना कितना ज़रूरी है। मेहनत और समय का सही उपयोग हमें जीवन में हर मुश्किल से बचा सकता है। आराम और आनंद के बीच संतुलन बनाकर ही सच्चा सुख पाया जा सकता है।