/lotpot/media/media_files/2025/11/25/murkh-gadha-aur-chalak-geedad-panchatantra-story-2025-11-25-11-57-45.jpg)
यह कहानी एक बूढ़े, घायल शेर, उसके चापलूस सेवक गीदड़ और एक बेहद मूर्ख गधे के बारे में है। भूख से मर रहे शेर और गीदड़ एक योजना बनाते हैं। गीदड़ एक गधे को 'हरी घास' और 'सुंदर दुल्हन' का लालच देकर जंगल में लाता है। गधा एक बार शेर की आँखों को देखकर भाग जाता है, लेकिन गीदड़ अपनी धूर्त बातों से उसे दोबारा उसी मौत के जाल में फँसा लेता है। यह कहानी हमें सिखाती है कि चापलूसों और झूठे प्रलोभनों पर कभी भरोसा नहीं करना चाहिए। यह पंचतंत्र की सबसे बेहतरीन कहानियों (best hindi story hindi) में से एक है।
चलिए, अब पढ़ते हैं यह रोचक कहानी विस्तार से...
कहानी: किस्मत का मारा, अक्ल से हारा
बहुत समय पहले की बात है, एक घने जंगल (Jungle) में 'विकराल' नाम का एक शेर रहता था। अपने सुनहरे दिनों में वह जंगल का राजा हुआ करता था, लेकिन अब उम्र ढल चुकी थी। जवानी के जोश में उसने एक विशाल जंगली सांड से लड़ाई मोल ले ली थी। उस लड़ाई में सांड ने अपने नुकीले सींगों से विकराल के पेट में ऐसा गहरा घाव कर दिया था, जो महीनों बाद भी ठीक नहीं हो पाया था।
विकराल अब शिकार करने में असमर्थ था। वह बस अपनी गुफा के पास एक घनी झाड़ी में पड़ा रहता और पुराने दिनों को याद करता।
इस शेर का एक वफादार, लेकिन बेहद धूर्त सेवक था - 'चंपक' नाम का एक गीदड़। चंपक शेर की बची-खुची शिकार पर पलता था और बदले में दिन-रात शेर की झूठी तारीफों के पुल बांधता रहता था।
"महाराज! आपकी दहाड़ आज भी बादलों की गरज को मात देती है," चंपक अक्सर कहता, जबकि शेर मुश्किल से खास पाता था।
अब स्थिति यह थी कि शेर के जख्म के कारण शिकार हो नहीं पा रहा था। दोनों दाने-दाने को मोहताज हो गए। भूख के मारे उनकी पसलियां दिखने लगी थीं।
एक दिन, भूख से बेहाल होकर विकराल शेर ने कराहते हुए कहा, "चंपक, अब और बर्दाश्त नहीं होता। यह जख्म मुझे दौड़ने नहीं देता। अगर जल्दी ही कुछ खाने को नहीं मिला, तो हम दोनों यहीं भूखे मर जाएंगे।"
चंपक गीदड़ ने अपना शातिर दिमाग दौड़ाया। उसने कहा, "महाराज, आप चिंता न करें। आप दौड़ नहीं सकते, तो क्या हुआ? आपकी बुद्धि तो अभी भी सबसे तेज है। मेरे पास एक योजना है।"
"क्या योजना है? जल्दी बता!" शेर ने उत्सुकता से पूछा।
चंपक ने अपनी योजना समझाई, "महाराज, आप इस घनी झाड़ी के पीछे छिपे रहें। मैं पास के कस्बे में जाकर किसी मूर्ख जानवर को अपनी बातों में फंसाकर यहां ले आता हूँ। जैसे ही वह झाड़ी के पास पहुंचेगा, आप उस पर झपट्टा मार देना। हमें बैठे-बिठाए भोजन मिल जाएगा।"
मरता क्या न करता, शेर तुरंत राजी हो गया। "जल्दी जा चंपक, अब मेरे प्राण कंठ में आ गए हैं," उसने कहा।
चंपक गीदड़ शिकार की तलाश में जंगल से बाहर निकला और पास के एक गाँव के नदी किनारे पहुँचा। वहाँ उसने देखा कि एक बेहद कमजोर और मरियल-सा गधा सूखी रेत में कुछ तिनके ढूंढने की कोशिश कर रहा था। गधे की शक्ल पर ही बेवकूफी लिखी थी।
चंपक ने अपना सबसे विनीत चेहरा बनाया और गधे के पास जाकर बोला, "प्रणाम गधे मामा! आप बहुत दुखी लग रहे हैं। क्या बात है? शरीर तो देखो, बिल्कुल कांटा हो गया है।"
गधे ने एक लंबी, दुखभरी सांस ली और रेंकते हुए बोला, "क्या बताऊं भांजे! मेरा मालिक धोबी बहुत निर्दयी है। दिन भर कमरतोड़ मेहनत करवाता है, भारी कपड़ों की गठरी लादता है, लेकिन खाने के नाम पर सूखी घास भी ढंग से नहीं देता। लगता है इसी घाट पर मेरी जान निकलेगी।"
चंपक ने सहानुभूति दिखाते हुए कहा, "अरे राम-राम! इतना अत्याचार? मामा, आप क्यों इस नरक में पड़े हो? मेरे साथ जंगल चलो।"
"जंगल?" गधे के कान खड़े हो गए, "अरे नहीं भाई! जंगल में तो खूंखार जानवर होते हैं। वे मुझे कच्चा चबा जाएंगे।"
चंपक जोर से हंसा, "अरे मामा! तुम भी किस जमाने में जी रहे हो? लगता है तुम्हें खबर नहीं मिली। पिछले महीने ही जंगल में एक बहुत बड़े संत महात्मा आए थे। उनके प्रवचन का ऐसा असर हुआ कि अब शेर, चीता, भेड़िया सबने मांस खाना छोड़ दिया है। अब तो पूरा जंगल शाकाहारी हो गया है। वहां सिर्फ हरी-हरी, नरम घास है और कोई किसी को नहीं मारता।"
गधे के मुंह में पानी आ गया। हरी घास का सपना उसकी आंखों में तैरने लगा।
चंपक ने अपना आखिरी दांव चला, "और सुनो मामा, एक राज की बात बताऊं? पास के गाँव से एक बहुत ही सुंदर और जवान गधी भी अपने मालिक से तंग आकर जंगल में आ गई है। वह बेचारी वहां अकेली है और अपने लिए एक योग्य वर ढूंढ रही है। हरी घास खाकर वह एकदम गोल-मटोल हो गई है। तुम चलो, तुम्हारी तो किस्मत खुल जाएगी। बढ़िया खाना और सुंदर बीवी!"
बस, 'सुंदर दुल्हन' और 'हरी घास' के लालच ने गधे की रही-सही बुद्धि भी हर ली। वह चंपक के पीछे-पीछे जंगल की ओर चल पड़ा।
बातें करता हुआ चंपक, गधे को ठीक उसी झाड़ी के पास ले आया जहाँ विकराल शेर छिपा बैठा था। शेर शिकार को इतना करीब देखकर उतावला हो गया। इससे पहले कि गधा बिल्कुल निशाने पर आता, शेर ने अपनी गर्दन थोड़ी बाहर निकाल ली।
अंधेरे में झाड़ी के अंदर से शेर की दो पीली, अंगारे जैसी चमकती आंखें गधे को दिख गईं।
गधा डर के मारे उछल पड़ा। "बाप रे! यह क्या है?" उसने रेंकते हुए कहा और सिर पर पैर रखकर उल्टी दिशा में भागा। वह इतनी तेज भागा कि उसने पीछे मुड़कर भी नहीं देखा।
शेर अपनी मूर्खता पर पछताने लगा। चंपक ने अपना सिर पीट लिया। "महाराज! आपने यह क्या किया? बना-बनाया खेल बिगाड़ दिया। थोड़ा सब्र करते!"
शेर ने खिसियाते हुए कहा, "गलती हो गई भाई। भूख के मारे रहा नहीं गया। अब क्या करें?"
चंपक ने गहरी सांस ली, "खैर, आप यहीं छिपे रहें। मैं दोबारा कोशिश करता हूँ। वह गधा है तो महामूर्ख ही, शायद फिर बातों में आ जाए।"
चंपक वापस दौड़कर उस गधे के पास पहुँचा, जो अभी भी हांफ रहा था।
चंपक ने आते ही नाटक शुरू कर दिया। उसने गुस्से और दुख का मिला-जुला अभिनय करते हुए कहा, "धिग्कार है तुम पर मामा! तुमने तो मेरी नाक ही कटवा दी। अरे, अपनी होने वाली दुल्हन को देखकर कोई ऐसे भागता है क्या?"
गधे ने घबराते हुए कहा, "कैसी दुल्हन? भांजे, उस झाड़ी में तो मुझे दो डरावनी, चमकती हुई आंखें दिखाई दी थीं। मुझे लगा कोई राक्षस है!"
चंपक ने अपना माथा पीट लिया और बोला, "अरे मेरे भोले मामा! तुम सचमुच गधे ही हो। वे आंखें किसी राक्षस की नहीं, बल्कि तुम्हारी उसी सुंदर दुल्हन की थीं! वह बेचारी झाड़ी की आड़ से तुम्हें छिपकर देख रही थी। तुम्हें देखते ही उसकी आंखों में तुम्हारे लिए प्रेम का दीया जल उठा, इसलिए वे चमक रही थीं। वह बेचारी तुमसे मिलने को तड़प रही थी और तुम उसे छोड़कर भाग आए? उसका दिल टूट गया होगा।"
मूर्ख गधे को गीदड़ की बातों पर फिर से विश्वास हो गया। उसे लगा कि उसने सचमुच बहुत बड़ी गलती कर दी। प्रेम और हरी घास का लालच फिर से हावी हो गया।
उसने लजाते हुए कहा, "अच्छा! तो वह मेरी दुल्हन थी? मुझे माफ करना भांजे, मैं समझ नहीं पाया। चलो, मुझे जल्दी उसके पास ले चलो। इस बार मैं नहीं भागूंगा।"
चंपक मन ही मन अपनी चालाकी पर मुस्कुराया और गधे को लेकर फिर उसी झाड़ी की ओर चल पड़ा।
इस बार जैसे ही गधा झाड़ी के बिल्कुल करीब पहुँचा, शेर ने कोई गलती नहीं की। उसने पूरी ताकत इकट्ठी की और एक जोरदार छलांग लगाकर अपने नुकीले पंजे गधे की गर्दन में गड़ा दिए। गधा एक बार रेंका और वहीं ढेर हो गया।
इस तरह, एक चालाक गीदड़ की चिकनी-चुपड़ी बातों और अपनी मूर्खता के कारण, गधे ने अपनी जान गंवा दी। शेर और गीदड़ ने कई दिनों तक दावत उड़ाई।
सीख (Moral of the Story)
इस कहानी से हमें यह अनमोल सीख मिलती है कि हमें कभी भी दूसरों की चिकनी-चुपड़ी बातों और झूठे प्रलोभनों में नहीं आना चाहिए। जो लोग अपना फायदा निकालने के लिए मीठा बोलते हैं, वे अक्सर हमें मुसीबत में डाल देते हैं। अगर कोई एक बार आपको धोखा दे, तो उस पर दोबारा भरोसा करना सबसे बड़ी मूर्खता है। अपनी बुद्धि का प्रयोग करें, लालच में न पड़ें।
Tags: best hindi story hindi, पंचतंत्र की कहानियां, शिक्षाप्रद कहानियां, मूर्खता की कहानी, शेर और गीदड़, बच्चों की कहानियां, moral stories in hindi, best hindi jungle story | Best Jungle Stories | Best Jungle Story | Best Jungle Story for Kids | best jungle story in hindi | choti jungle story | Hindi Jungle Stories | hindi jungle stories for kids | Hindi Jungle Story | hindi jungle stoy | inspirational jungle story | Jungle Stories | Jungle Stories for Kids | jungle stories in hindi | Jungle Story | jungle story for children | jungle story for kids | Jungle story in Hindi | jungle story in Hindi for kids | jungle story with moral | kids hindi jungle Stories | kids hindi jungle story | kids Jungle Stories | kids jungle stories in hindi | kids jungle story | kids jungle story in hindi
