नकल में अकल चाहिए: एक कौवे की मूर्खता और उसकी भारी कीमत | बच्चों के लिए प्रेरणादायक हिंदी कहानी

नकल में अकल चाहिए: - एक लालची कौवा बिना मेहनत किए शिकार पाना चाहता था। वह पहाड़ पर रहने वाले शक्तिशाली बाज को खरगोश का शिकार करते हुए देखता है और उसकी नकल करने की कोशिश करता है।

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नकल में अकल चाहिए: - एक लालची कौवा बिना मेहनत किए शिकार पाना चाहता था। वह पहाड़ पर रहने वाले शक्तिशाली बाज को खरगोश का शिकार करते हुए देखता है और उसकी नकल करने की कोशिश करता है। कौवा अपनी क्षमताओं को जाने बिना, बाज की तरह ही एक खरगोश पर झपट्टा मारता है। खरगोश आसानी से छिप जाता है, और कौवा अपनी ही तेज़ी में एक चट्टान से टकराकर मर जाता है। कहानी सिखाती है कि नकल करने के लिए भी बुद्धि और अपनी सीमाओं का ज्ञान होना ज़रूरी है।


एक ऊँचे पहाड़ की चोटी पर एक शक्तिशाली बाज का डेरा था। उसकी नज़रें बहुत पैनी थीं और उड़ान बहुत तेज़। उसी पहाड़ की तलहटी में, एक विशाल बरगद के पेड़ पर एक धूर्त और आलसी कौवा अपना घोंसला बनाकर रहता था। उसकी सबसे बड़ी ख़ूबी यही थी कि वह बिना मेहनत किए, आराम से खाने का जुगाड़ कर लेता था।

पेड़ के आसपास की खोहों में खरगोशों का झुंड रहता था। जब भी ये नटखट खरगोश बाहर आते, बाज अपनी ऊँची उड़ान भरते हुए झपट्टा मारता और पलक झपकते ही एक-आध खरगोश को लेकर आसमान में ओझल हो जाता।

एक दिन कौवे ने यह नज़ारा देखा और उसके मुँह में पानी आ गया। "वाह! क्या कमाल का शिकार है!" उसने सोचा। "वैसे तो ये चालाक खरगोश मेरे हाथ कभी नहीं आएँगे। लेकिन अगर मुझे उनका नर्म और स्वादिष्ट मांस खाना है, तो मुझे भी बाज की तरह ही करना होगा। एकाएक झपट्टा मारकर एक को पकड़ लूँगा।"

कौवे ने मन ही मन एक योजना बनाई। उसे लगा कि बाज तो रोज़ ऐसा करता है, तो वह क्यों नहीं कर सकता? उसने अपनी तुलना बाज से करनी शुरू कर दी, यह भूलकर कि बाज की शक्ति, गति और पैनी नज़र कहाँ और उसकी छोटी सी देह कहाँ!

अगले दिन सुबह, कौवे ने अपनी योजना को अंजाम देने का फ़ैसला किया। उसने बरगद के पेड़ से उड़ान भरी और आकाश में थोड़ा ऊपर जाकर मंडराने लगा। उसकी नज़र नीचे मैदान में चर रहे एक मोटे-ताज़े खरगोश पर थी।

"बस! यही सही मौका है!" कौवे ने ख़ुद से कहा। "आज तो दावत होगी!"

उसने खरगोश को पकड़ने के लिए बाज की तरह ही ज़ोरदार झपट्टा मारा। "ग़र्र्र!" की आवाज़ निकालते हुए वह बिजली की तेज़ी से नीचे की ओर लपका। अब भला एक छोटा कौवा एक शक्तिशाली बाज का क्या मुक़ाबला करता? बाज की ताक़त और कौवे की ताक़त में ज़मीन-आसमान का फ़र्क था।

कौवे के आने की आहट सुनकर खरगोश ने उसे देख लिया। "अरे! ये तो कौवा है!" खरगोश ने सोचा। वह तो बाज से भी ज़्यादा चौकन्ना था। पलक झपकते ही खरगोश वहाँ से भागा और पास की एक बड़ी चट्टान के पीछे छिप गया।

कौवा अपनी ही तेज़ी और झोंक में था। उसने सोचा भी नहीं था कि खरगोश इतनी जल्दी वहाँ से गायब हो जाएगा। वह खरगोश का पीछा करते-करते सीधे उस विशाल चट्टान से जा टकराया। "धड़ाम!" की एक तेज़ आवाज़ आई।

नतीजा? बेचारा कौवा! उसकी छोटी सी चोंच और कमज़ोर गरदन चट्टान से टकराकर टूट गईं। दर्द से तड़पते हुए उसने वहीं दम तोड़ दिया। उसकी मूर्खता ने उसकी जान ले ली।


यह ख़बर जंगल में आग की तरह फैल गई। दूसरे जानवर भी कौवे की इस हरकत से हैरान और दुखी थे।

एक बूढ़ा उल्लू, जो सब कुछ देख रहा था, उसने पास बैठे एक छोटे तोते से कहा, "देखा बेटा, यही होता है जब कोई अपनी सीमाएँ भूल जाता है।"

तोता अपनी समझदारी दिखाते हुए बोला, "पर उल्लू दादा, उसने तो बस बाज की नक़ल की थी। इसमें क्या ग़लती थी?"

उल्लू ने गहरी साँस ली और समझाया, "नक़ल करना बुरी बात नहीं, मेरे बच्चे, बशर्ते तुम अपनी क्षमताओं को पहचानो। बाज की शक्ति, उसकी दृष्टि, उसकी चोंच और उसके पंजे, ये सब उसे प्रकृति ने दिए हैं ताकि वह बड़े शिकार कर सके। कौवे के पास ऐसी कोई शक्ति नहीं थी। वह सिर्फ़ बाज की तरह दिखना चाहता था, बाज जैसा बनना नहीं।"

एक गिलहरी ने बीच में टोकते हुए कहा, "तो क्या कौवे को खरगोश नहीं खाने चाहिए थे?"

उल्लू ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, "ज़रूर खाने चाहिए थे, लेकिन अपने तरीक़े से। उसे कीड़े-मकोड़े, फल, या छोटे पक्षियों के अंडे खाने चाहिए थे, जो उसके शरीर और उसकी क्षमताओं के अनुसार थे। वह चाहता तो गिद्धों के साथ मिलकर मरे हुए जानवरों का मांस भी खा सकता था, लेकिन उसने बड़ा शिकार करने का लालच किया।"

एक छोटा चूहा जो डरते-डरते बाहर आया था, उसने पूछा, "तो क्या हमें कभी किसी से सीखना नहीं चाहिए?"

"नहीं, नहीं!" उल्लू ने समझाया। "सीखना बहुत अच्छी बात है। बाज से कौवा यह सीख सकता था कि कैसे धैर्य रखना चाहिए, कैसे शिकार पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। लेकिन उसे यह समझना था कि उसे खुद को बाज नहीं बनाना है, बल्कि एक बेहतर कौवा बनना है। हर जीव की अपनी ख़ासियत होती है। एक गिलहरी पेड़ पर तेज़ी से चढ़ सकती है, लेकिन एक हाथी पेड़ पर नहीं चढ़ सकता। इसका मतलब यह नहीं कि हाथी कमज़ोर है, बस उसकी ताकत और काम अलग हैं।"

जंगल के सभी जानवर उल्लू दादा की बात समझ गए। उन्होंने सीखा कि हर किसी को अपनी ताक़त और कमज़ोरियों को समझना चाहिए। किसी और की नक़ल करने से पहले, अपनी बुद्धि का इस्तेमाल करना ज़रूरी है।

सीख (Moral of the Story):

 इस कहानी से हमें यह महत्वपूर्ण सीख मिलती है कि नकल करने के लिए भी अकल चाहिए। हमें अपनी क्षमताओं और सीमाओं को पहचानना चाहिए। किसी और की नकल करने की होड़ में हमें अपनी मूल पहचान और ताक़त को नहीं भूलना चाहिए। हर व्यक्ति और हर जीव की अपनी ख़ासियत होती है। बिना सोचे-समझे दूसरों की नकल करना, खासकर जब हमारी क्षमताएँ मेल न खाती हों, तो यह सिर्फ़ असफलता और नुक़सान का कारण बनता है। हमें अपने रास्ते पर चलकर अपनी पहचान बनानी चाहिए, न कि दूसरों के नक्शेकदम पर चलकर खुद को मिटाना चाहिए।

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