नन्हा नीलकंठ और मोर के पंख – अपनी सुंदरता को पहचानो

नन्हा नीलकंठ और मोर के पंख – अपनी सुंदरता को पहचानो : एक नन्हा नीलकंठ मोरों के रंग-बिरंगे पंख देखकर ललचा जाता है। वह झूठे पंख लगाकर खुद को मोर समझने लगता है

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नन्हा नीलकंठ और मोर के पंख – अपनी सुंदरता को पहचानो : एक नन्हा नीलकंठ मोरों के रंग-बिरंगे पंख देखकर ललचा जाता है। वह झूठे पंख लगाकर खुद को मोर समझने लगता है, लेकिन मोर उसे बेनकाब कर देते हैं। यह best hindi story hindi सिखाती है कि नकल करने से कुछ नहीं होता, अपनी असली सुंदरता ही सबसे अनमोल है।

चलो, अब पढ़ते हैं यह प्यारी और सबक देने वाली कहानी...

जंगल के बीच में एक बड़ा सा तालाब था। उस तालाब के किनारे हर साल बरसात में मोरों का मेला लगता था। जब बादल गरजते, तो सैकड़ों मोर अपने पंख फैलाकर नाचते – नीला, हरा, सुनहरा... जैसे इंद्रधनुष जमीन पर उतर आया हो।

एक दिन एक नन्हा नीलकंठ, जिसका नाम था नीलू, उड़ता-उड़ता वहां पहुंच गया। मोरों को नाचते देखकर उसका मुंह खुला का खुला रह गया। “वाह! कितने सुंदर पंख हैं इनके! अगर मेरे भी ऐसे पंख होते तो सारा जंगल मुझे देखता रह जाता!”

नीलू का अपना रंग भी तो कमाल का था – गले में नीली चमक, जैसे कोई नीलम का हार पहने हो। पर उसे अपनी सुंदरता दिखती ही नहीं थी। वह बस मोरों के पंखों को ताकता रहता।

बरसात खत्म हुई तो मोर अपने पंख झड़ाकर चले गए। जमीन पर ढेर सारे रंग-बिरंगे पंख बिखरे पड़े थे। नीलू की आंखें चमक उठीं। “बस यही मौका है!” उसने सारे अच्छे-अच्छे पंख चुने, अपनी छोटी पूंछ में खोंसे और रात भर मेहनत करके उन्हें मजबूती से बांध लिया। सुबह जब उसने शीशे जैसे तालाब में खुद को देखा तो खुशी से चिल्लाया, “वाह! मैं तो अब असली मोर लग रहा हूं!”

ठुमक-ठुमकता, पंख फैलाता हुआ नीलू मोरों के नए झुंड के पास पहुंचा। “देखो-देखो! मैं भी तुम्हारा भाई हूं!”

मोरों ने पहले तो आश्चर्य से देखा। एक बड़ा मोर बोला, “अरे, ये कौन है?” दूसरे ने गौर से देखा, “ये तो नीलकंठ है! हमारे पंख चुराकर लगा रहा है!” तीसरा गुस्से में बोला, “चलो, सबक सिखाते हैं!”

फिर तो क्या – सारे मोर एक साथ टूट पड़े। चोंच से पंख खींचने लगे। “आह... उई... छोड़ो!” नीलू चिल्लाता रहा। पंख एक-एक करके उड़ते गए। पांच मिनट में नीलू फिर से अपना असली रूप में आ गया – छोटा सा, नीला गला, सादी पूंछ।

दूर पेड़ पर बैठे उसके नीलकंठ भाई-बहन सब देख रहे थे। नीलू शर्मिंदा होकर उनके पास पहुंचा। उसकी बड़ी बहन नीली ने प्यार से कहा, “नीलू, तुझे क्या हो गया था?” छोटा भाई नीलेश हंसते हुए बोला, “भाई, तू तो मोर बनकर हंसगुल्ले करवा रहा था!” बूढ़ा नीलकंठ दादाजी बोले, “बेटा, भगवान ने सबको अलग-अलग खूबसूरती दी है। मोर के पंख बड़े हैं, पर वो उड़ नहीं सकता ज्यादा। तेरा गला नीला है, आवाज मधुर है, और तू आसमान छू सकता है। ये तेरी अपनी ताकत है। दूसरों की नकल करने से असली सुंदरता छिप जाती है।”

नीलू ने सिर झुकाया, “मुझे माफ कर दो। मैं अपनी असली सुंदरता को भूल गया था।”

उस दिन के बाद नीलू जब भी उड़ता, गले में नीली चमक को देखकर गर्व करता। जंगल के बच्चे उससे पूछते, “नीलू चाचा, तुम इतने खुश क्यों रहते हो?” वो हंसकर कहता, “क्योंकि मैं नीलकंठ हूं – नीला गला, नीला आसमान, और नीला दिल!”

सालों बाद नीलू जंगल का सबसे प्यारा पक्षी बन गया। बच्चे उसकी नीली चमक देखकर गाते, “नीलू चाचा सबसे न्यारे, नकल नहीं, अपना संसार है!” मोर भी उससे दोस्ती कर लेते। एक बार बरसात में मोरों का नाच देखकर नीलू आसमान में ऊंचे उड़ता और अपनी नीली चमक से बादलों को रंग देता। सब तालियां बजाते, “वाह! नीलकंठ और मोर की जोड़ी सबसे अलग!”

अगर आप नीलकंठ पक्षी के बारे में और जानना चाहते हैं, तो नीलकंठ की विकिपीडिया पेज देख सकते हैं।

सीख:

दोस्तों, कभी दूसरों की नकल मत करो। भगवान ने तुम्हें जो दिया है, वही तुम्हारी सबसे बड़ी खूबसूरती है। अपनी खासियत पर गर्व करो, वही तुम्हें सबसे अलग और सबसे प्यारा बनाएगी! 

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