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परोपकारी मुर्गा : दूसरों की मदद | त्याग का महत्व

जानिए 'दयालु' मुर्गे की कहानी, जिसने अपने सुख को त्याग कर पूरे झुंड की भलाई के लिए काम किया। यह बच्चों को सिखाती है कि सच्चा परोपकार क्या होता है। प्रेरणादायक Moral Story पढ़ें।

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सिर्फ़ अपनी नहीं, सबकी भलाई सोचना

प्यारे बच्चों, क्या आपने कभी किसी ऐसे व्यक्ति के बारे में सुना है जो अपनी खुशियों से पहले दूसरों की खुशियों के बारे में सोचता हो? ऐसे इंसान को 'परोपकारी' कहते हैं। परोपकार का मतलब होता है—दूसरों की मदद करना और उनका भला चाहना, भले ही इसके लिए हमें कुछ त्याग करना पड़े।

आज हम एक ऐसे ही परोपकारी मुर्गे की कहानी पढ़ेंगे, जिसका नाम था 'दयालु'। दयालु, मुर्गियों और मुर्गों के एक बड़े से समूह में रहता था। उसकी कहानी हमें सिखाती है कि एक मुर्गा होना सिर्फ़ सुबह उठकर बांग देना नहीं होता, बल्कि ज़िम्मेदारी उठाना और परोपकार करना होता है।


दयालु मुर्गा और उसके पड़ोसी

एक बड़े से फार्महाउस के पास, एक बाड़े में मुर्गियों और मुर्गों का एक बड़ा झुंड रहता था। इस झुंड में दयालु नाम का एक युवा और समझदार मुर्गा था। बाकी मुर्गे, जैसे कि 'शेखी' और 'घमंडी', सारा दिन सिर्फ़ बढ़िया दाना ढूंढते थे और अपनी बांग की तारीफ करते थे। वे कभी किसी दूसरे की परवाह नहीं करते थे।

दयालु सबसे अलग था। वह देखता था कि झुंड में कई बूढ़ी मुर्गियाँ थीं, जो तेज़ दौड़ नहीं पाती थीं और उन्हें खाने के लिए अच्छा दाना नहीं मिल पाता था।

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एक दिन, शेखी मुर्गे को खाने का एक बहुत बड़ा और स्वादिष्ट टुकड़ा मिला। दयालु ने देखा कि बूढ़ी मुर्गी चिंकी वहीं बैठी है और वह टुकड़ा लेने के लिए दौड़ नहीं सकती।

  • दयालु: "शेखी, क्या तुम यह टुकड़ा चिंकी को नहीं दे सकते? उसे इसकी ज़्यादा ज़रूरत है।"

  • शेखी: (हँसते हुए) "क्यों? मैं भूखा रहूँ और उसे दूँ? यह मेरी मेहनत का फल है।"

दयालु निराश हो गया। लेकिन उसने हार नहीं मानी। उसने अपने हिस्से का दाना लिया और धीरे से चिंकी के पास रखकर कहा, "दादी, आप इसे खा लीजिए। कोई बात नहीं।" चिंकी की आँखों में आँसू आ गए।

सर्दी का संकट और ज़रूरी त्याग

जंगल में कड़ाके की सर्दी आ गई। बाड़े के ऊपर की छत पुरानी थी और उसमें जगह-जगह छेद थे। रात में जब बर्फ गिरती थी, तो अंदर ठंड बढ़ जाती थी, जिससे छोटे चूज़े बीमार पड़ने लगे।

झुंड के मुखिया मुर्गे, 'राजा', ने सबको बुलाया और कहा, "हमें छत को ढकने के लिए कुछ चाहिए। किसी को ऊँची दीवार पर चढ़कर घास या मोटे पत्ते रखने होंगे, ताकि पानी अंदर न आए।"

यह काम बहुत मुश्किल और खतरनाक था। ऊँचाई पर बिल्ली और चील का खतरा था। शेखी और घमंडी दोनों ने तुरंत मना कर दिया।

  • शेखी: "यह काम मेरा नहीं है। मैं थक जाऊँगा।"

  • घमंडी: "मैं इतना महत्वपूर्ण हूँ कि अपनी जान जोखिम में नहीं डाल सकता।"

ऐसे में , दयालु ने आगे आने का फैसला किया। उसने अपनी सबसे आरामदायक जगह (जहाँ वह सोता था) को बूढ़ी मुर्गियों के लिए छोड़ दिया, ताकि वे ठंड से बच सकें।

फिर, वह टूटी छत पर चढ़ गया। वह दिन भर घास और पत्ते जमा करता रहा। कई बार उसका पैर फिसला, कई बार हवा चली, पर उसने बच्चों और बूढ़ों के लिए काम करना नहीं छोड़ा। वह जानता था कि यह काम छोटा नहीं है, यह सबकी ज़िंदगी बचाने का काम है।

परोपकार की जीत और सम्मान

अगली सुबह, जब हल्की धूप खिली, तो सभी चूज़े और बूढ़ी मुर्गियाँ सुरक्षित और गर्म थीं। बाकी मुर्गे, जो आराम कर रहे थे, वे हैरान रह गए। उन्होंने देखा कि दयालु थका हुआ है, पर उसके चेहरे पर संतोष की चमक है।

शेखी और घमंडी ने पहली बार शर्म महसूस की।

  • शेखी: "दयालु, हमने तो सोचा था कि बड़ा काम सिर्फ़ खाने और लड़ने का होता है। पर तुमने तो अपनी जान खतरे में डालकर हम सबकी रक्षा की।"

  • घमंडी: "तुमने अपने आराम को त्याग दिया, जो शायद हम कभी न कर पाते। तुम ही असली राजा हो।"

उस दिन, झुंड के मुखिया ने दयालु को नया नाम दिया: 'परोपकारी मुर्गा'। दयालु ने साबित कर दिया कि असली ताकत शरीर में नहीं, बल्कि त्याग और निस्वार्थ सेवा में होती है।


सीख (Moral of the Story)

यह कहानी हमें सिखाती है कि सच्चा परोपकार तब होता है जब हम अपने सुख या स्वार्थ को त्यागकर दूसरों की भलाई के लिए काम करते हैं। हमें हमेशा ध्यान रखना चाहिए कि समाज या समूह में सबसे कमज़ोर और ज़रूरतमंद लोगों की मदद करना ही हमारी सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी है। परोपकार से मिलने वाला संतोष, किसी भी भौतिक सुख से कहीं ज़्यादा बड़ा और स्थायी होता है।

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