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एक घने जंगल में, दो उल्लू एक पुराने पेड़ की मोटी डाल पर आ बैठे। दोनों उल्लू अपने-अपने शिकार को पकड़े हुए थे। पहले उल्लू के मुँह में एक फुफकारता हुआ साँप था, जो उसके सुबह के नाश्ते के लिए लाया गया था। दूसरे उल्लू ने अपने मुँह में एक छोटा-सा चूहा पकड़ रखा था। दोनों शिकार अपनी-अपनी जगह पर असहाय थे, मगर उनकी प्रतिक्रियाएँ एक-दूसरे से बिलकुल अलग थीं।
जैसे ही साँप की नजर चूहे पर पड़ी, वह अपना दर्द और अपने जीवन के अंतिम क्षणों को भूल गया। उसकी आँखों में चमक आ गई, और उसके मुँह से लार टपकने लगी। वह चूहे को देखकर लालसा से भर गया। दूसरी ओर, चूहा काँप रहा था, भय से जड़ हो गया था। उसे अपनी मृत्यु का डर उतना नहीं था जितना साँप को देखकर हो रहा था। वह सोचने लगा कि कहीं साँप उस पर हमला न कर दे, भले ही वह खुद भी मौत के दरवाजे पर खड़ा था।
उल्लुओं ने यह सब देखा और सोच में पड़ गए। एक उल्लू ने कहा, "भाई, यह क्या हो रहा है? ये दोनों मौत के इतने करीब हैं, फिर भी इनकी प्रतिक्रिया अजीब है।" दूसरे उल्लू ने जवाब दिया, "यह जीवन का सबसे बड़ा सबक है। स्वाद और इच्छाओं का लोभ इतना गहरा है कि साँप अपनी मृत्यु को भी भूल गया। और चूहे के लिए मौत से बड़ा उसका भय है। यह दिखाता है कि भय हमें कितना कमजोर बना सकता है और लोभ हमें कितना अंधा।"
कहानी की सीख: इस कहानी का संदेश हमारे जीवन पर सीधा असर डालता है। यह बताती है कि अक्सर हम अपने जीवन में इच्छाओं और लालसाओं में इतने खो जाते हैं कि अपनी वास्तविक स्थिति को भूल जाते हैं। दूसरी ओर, भय हमें हमारी सच्चाई से दूर कर देता है। जीवन का असली आनंद तभी है जब हम अपनी इच्छाओं और भय को संतुलित करते हैं।
इसलिए, जीवन में जो चीजें वास्तव में मायने रखती हैं, उन्हें पहचानें। लोभ और भय से ऊपर उठकर, संतुलित और शांतिपूर्ण जीवन जीने का प्रयास करें।