ऊँट और सियार की दोस्ती

यह बेस्ट जंगल स्टोरी ऊँट भोला और सियार चपलू की दोस्ती की है। चपलू ने भोला को खीरे के खेत में ले जाकर शरारत की, जिससे भोला को मार पड़ी। बदले में भोला ने चपलू को नदी में गिराया। बाद में चपलू ने माफी माँगी, और दोनों ने मिलकर एक भेड़िया को हराया।

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यह बेस्ट जंगल स्टोरी ऊँट भोला और सियार चपलू की दोस्ती की है। चपलू ने भोला को खीरे के खेत में ले जाकर शरारत की, जिससे भोला को मार पड़ी। बदले में भोला ने चपलू को नदी में गिराया। बाद में चपलू ने माफी माँगी, और दोनों ने मिलकर एक भेड़िया को हराया। यह कहानी दोस्ती और सबक की है।

ऊँट और सियार की दोस्ती

एक बार की बात है, एक हरे-भरे जंगल में एक ऊँट और एक सियार आपस में गहरी दोस्ती निभाते थे। ऊँट, जिसका नाम था भोला, अपनी शांत और मेहनती प्रवृत्ति के लिए जाना जाता था। दूसरी ओर, सियार, जिसे चपलू कहा जाता था, अपनी चंचलता और चतुराई के लिए मशहूर था। एक दिन चपलू ने भोला को एक नई योजना सुझाई। उसने उत्साह से कहा, "भोला भैया, नदी के उस पार एक खेत है, जहाँ खीरे की फसल लहलहा रही है। क्या हम वहाँ जाकर थोड़ा स्वाद चखें?"

भोला ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, "अरे वाह, चपलू! ये तो शानदार आइडिया है। चलो, आज का दिन खीरे के जश्न में बिताते हैं।" चपलू खुशी से कूदने लगा और बोला, "तो फिर देर किस बात की? चलो जल्दी से!" भोला ने अपनी मजबूत पीठ झुकाई, और चपलू उस पर चढ़ गया। भोला ने धीरे-धीरे कदम बढ़ाए और नदी को पार कर लिया। दोनों खेत में पहुँचे, जहाँ हरे-भरे खीरे चमक रहे थे।

खेत में घुसते ही चपलू और भोला ने खीरे तोड़ने शुरू कर दिए। खीरे इतने रसीले और स्वादिष्ट थे कि दोनों का मन ललचा गया। चपलू ने एक खीरा मुंह में डाला और बोला, "वाह भैया, ये तो स्वर्ग का स्वाद है!" भोला हंसते हुए कहा, "हाँ, लेकिन मेरे लिए तो ये बस शुरुआत है। मेरा पेट बड़ा है, थोड़ा और खाना पड़ेगा।" चपलू का पेट जल्दी भर गया। उसने दो-चार खीरे खाए और फिर इधर-उधर उछलने लगा। वह बोला, "भोला भैया, मैं तो अब और नहीं खा सकता, लेकिन तुम खाते रहो।"

भोला मजे से खाता रहा। चपलू बार-बार पूछता, "भैया, क्या अब तुम्हारा पेट भर गया?" भोला शांत स्वर में जवाब देता, "अरे चपलू, मेरा पेट तो अभी आधा भी नहीं भरा। थोड़ा धैर्य रखो, मैं थोड़ी देर और लूँगा।" लेकिन चपलू को चुप बैठना गवारा नहीं था। उसका मन उछल-कूद और शरारत में लगा। वह खेत में दौड़ने लगा और जोश में आकर ऊँचा "हुंह-हुंह" करने लगा।

इतने में उसकी आवाज गाँव वालों तक पहुँच गई। गाँव के लोग डंडे लेकर खेत की ओर दौड़े। चपलू ने तुरंत अपनी चालाकी दिखाई और तेजी से भाग निकला। वह नदी के किनारे जा पहुँचा और वहाँ से भोला को देखने लगा। भोला, जो भारी-भरकम था, भाग नहीं सका और गाँव वालों के जाल में फँस गया। उन्होंने उसे खूब डाँटा-डपटा और डंडों से मारा। दर्द से तड़पता हुआ भोला किसी तरह नदी के किनारे पहुँचा।

चपलू ने नाटकीय अंदाज में कराहते हुए कहा, "अरे भोला भैया, तुम्हें कितना पीटा गया! मेरा दिल दुखी हो रहा है।" भोला ने दर्द भरी मुस्कान के साथ कहा, "चपलू, तुम्हारी चिंता छोड़ो। अब चढ़ जाओ, हमें यहाँ से निकलना है।" चपलू फिर से भोला की पीठ पर चढ़ गया, और दोनों नदी के बीचों-बीच पहुँचे। अचानक भोला रुक गया और अपनी कमर हिलाने लगा। चपलू घबराकर चिल्लाया, "अरे भाई, ये क्या कर रहे हो? मैं तो नदी में गिर जाऊंगा!"

भोला ने ठहाका लगाया और बोला, "चपलू, पेट भर खाने के बाद पानी में लोटना मेरी पुरानी आदत है। अब क्या करूँ, ये मेरा मजा है!" ऐसा कहकर भोला पानी में लोटने लगा। चपलू संभल नहीं सका और सीधे नदी में जा गिरा। वह तैरते हुए किनारे पहुँचा और गुस्से से बोला, "भोला, ये तो गलत हुआ!" भोला हंसते हुए बोला, "चपलू, जो जैसा करता है, वैसा भुगतता है।"

इस घटना के बाद चपलू ने सोचा कि भोला से माफी माँग ले। वह बोला, "भैया, मुझे माफ करो, मैंने तुम्हें मुसीबत में डाला।" भोला ने कहा, "चपलू, दोस्ती में गलतियाँ होती हैं, लेकिन सचाई और विश्वास जरूरी है।" दोनों ने फिर से दोस्ती की कसम खाई और जंगल में वापस लौटे।

कुछ दिन बाद जंगल में एक और मौका आया। एक भेड़िया खेत में घुसने की योजना बना रहा था, और चपलू ने भोला को चेतावनी दी। भोला ने सुझाव दिया, "चपलू, इस बार हम मिलकर योजना बनाएँगे।" दोनों ने मिलकर भेड़िया को खदेड़ दिया, और गाँव वालों ने उनकी तारीफ की। चपलू ने सीखा कि चालाकी से ज्यादा टीमवर्क और ईमानदारी काम आती है।

सीख

यह मोटिवेशनल स्टोरी सिखाती है कि चालाकी से फायदा नहीं, बल्कि ईमानदारी और टीमवर्क से सफलता मिलती है। दोस्ती में विश्वास और सहयोग जरूरी है।

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