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विनाश का कुआँ: घमंडी राजा और जहरीला दोस्त

एक घमंडी मेंढक राजा 'भीमसेन' अपनों से बदला लेने के लिए एक जहरीले सांप 'कालिया' से दोस्ती कर बैठता है। इस दोस्ती का अंजाम क्या होगा? पढ़िए यह शिक्षाप्रद और रोचक Best Hindi Story Hindi.

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यह कहानी एक घमंडी और झगड़ालू मेंढक राजा, 'भीमसेन' की है, जो अपने अहंकार के कारण अपनों को ही अपना दुश्मन बना बैठता है। अपने ही समाज और परिवार से बदला लेने की अंधी चाहत में, वह एक खतरनाक सांप, 'कालिया' से हाथ मिला लेता है। भीमसेन सोचता है कि वह सांप का इस्तेमाल करके अपने विरोधियों को खत्म कर देगा, लेकिन उसे अंदाजा नहीं था कि यह जहरीली दोस्ती अंततः उसी के विनाश का कारण बनेगी। यह पंचतंत्र शैली की एक क्लासिक कहानी है जो हमें सिखाती है कि बाहरी दुश्मनों से हाथ मिलाने का परिणाम हमेशा घातक होता है।

चलिए, अब पढ़ते हैं यह रोमांचक और सबक सिखाने वाली कहानी...

विनाश का कुआँ: घमंडी राजा और जहरीला दोस्त

एक समय की बात है, एक पुराने और गहरे कुएं में मेंढकों का एक बड़ा साम्राज्य था। उनके राजा का नाम 'भीमसेन' था। भीमसेन शरीर से जितना बड़ा था, अक्ल से उतना ही छोटा और स्वभाव से बेहद झगड़ालू था। उसका मानना था कि राजा होने का मतलब है अपनी मनमानी करना।

आसपास के कुओं में भी मेंढकों के दूसरे समुदाय रहते थे, जिनके अपने-अपने राजा थे। भीमसेन की किसी न किसी पड़ोसी राजा से खटपट चलती ही रहती थी। वह छोटी-छोटी बातों पर अपनी झूठी शान के लिए झगड़े मोल ले लेता। अगर कोई समझदार मेंढक उसे समझाने की कोशिश करता, तो भीमसेन उसे अपने पालतू गुंडे मेंढकों से पिटवा देता। धीरे-धीरे, कुएं के सभी मेंढक अपने ही राजा से नफरत करने लगे थे। यहां तक कि उसका अपना परिवार भी उसके रोज-रोज के क्लेश से तंग आ चुका था।

एक दिन, भीमसेन पड़ोसी कुएं के राजा 'सुबुद्धि' से बुरी तरह झगड़ कर लौटा। वापस आकर उसने अपनी प्रजा से झूठ बोला, "सुनो मेरे वीरों! पड़ोसी राजा सुबुद्धि ने हमारा घोर अपमान किया है। उसने हमारी मूंछों का मजाक उड़ाया है! मैं आदेश देता हूँ कि अभी के अभी उसके कुएं पर हमला बोल दो और ईंट से ईंट बजा दो।"

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भीमसेन को लगा कि सब जोश में आ जाएंगे, लेकिन वहां सन्नाटा छा गया। एक बुजुर्ग और अनुभवी मेंढक, 'ज्ञानचंद', आगे आए और बोले, "महाराज, क्षमा करें, लेकिन हम यह युद्ध नहीं लड़ सकते। राजा सुबुद्धि की सेना हमसे दोगुनी है और उनके सैनिक हमसे ज्यादा ताकतवर हैं। बिना वजह उनसे भिड़ना आत्महत्या होगी। वैसे भी, झगड़ा तो आपने शुरू किया था, वे तो शांति से रहते हैं।"

भीमसेन का चेहरा गुस्से से लाल हो गया। अपनी ही प्रजा के सामने बेइज्जत होना उसे बर्दाश्त नहीं हुआ। उसने मन ही मन कसम खाई, "इन गद्दारों को तो मैं सबक सिखा कर रहूँगा। अब ये मेरे दुश्मन हैं।"

उसने अपने बेटों को बुलाया और भड़काया, "मेरे शेरों! तुम्हारे पिता का अपमान हुआ है। जाओ और सुबुद्धि के बेटों को ऐसी धूल चटाओ कि वे पानी मांगें।"

बेटे एक-दूसरे का मुंह ताकने लगे। बड़े बेटे ने डरते हुए कहा, "पिताजी, हम कैसे लड़ें? आपने हमें कभी तेज आवाज में टर्राने तक नहीं दिया। हमें तो लड़ना आता ही नहीं। बिना किसी प्रशिक्षण और जोश के हम उनकी मार खाकर ही वापस आएंगे।"

अब तो भीमसेन का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया। "सब के सब निकम्मे हो! कायर कहीं के!" वह बड़बड़ाता हुआ कुएं से बाहर निकल गया और जंगल की तरफ चल पड़ा।

वह गुस्से में इधर-उधर घूम ही रहा था कि उसकी नजर एक विशालकाय काले सांप पर पड़ी, जो अपने बिल में घुसने जा रहा था। सांप का नाम 'कालिया' था और वह बहुत जहरीला था।

भीमसेन के दिमाग में एक शैतानी योजना आई। "जब अपने ही दुश्मन बन जाएं, तो दुश्मन को दोस्त बना लेना चाहिए," उसने सोचा।

वह निडर होकर सांप के बिल के पास पहुँचा और बोला, "प्रणाम, नागराज कालिया!"

कालिया सांप ने फुफकारते हुए सिर बाहर निकाला, "कौन है रे तू? एक छोटा सा मेंढक और इतनी हिम्मत! जानता नहीं मैं तुम्हारा काल हूँ? अभी तुझे निगल जाऊंगा।"

भीमसेन ने अपनी सबसे मीठी आवाज निकाली, "अरे नागराज, गुस्सा थूकिए। कभी-कभी अपने ही लोग दुश्मनों से ज्यादा गहरा घाव देते हैं। मेरे अपने कुएं के मेंढकों ने मेरा इतना अपमान किया है कि मुझे न्याय के लिए आपके पास आना पड़ा। आप मुझसे दोस्ती कर लीजिए, दोनों का फायदा है।"

कालिया की दिलचस्पी जागी। "फायदा? कैसा फायदा? साफ-साफ बता," उसने पूछा।

भीमसेन ने अपना जाल फेंका, "मैं आपको इतने हट्टे-कट्टे मेंढक खिलाऊंगा कि आप बैठे-बैठे ही पहलवान बन जाएंगे। आपको शिकार के लिए मेहनत ही नहीं करनी पड़ेगी।"

कालिया ने शंका जताई, "लेकिन मैं पानी के अंदर जाकर शिकार कैसे करूँगा? कुआँ तो गहरा है।"

भीमसेन जोर से हंसा, "यहीं तो मेरी राजा वाली बुद्धि काम आएगी! मैंने अपने कुएं से आसपास के सभी कुओं तक गुप्त सुरंगें बनवा रखी हैं। वे सारी सुरंगें एक बड़े से गुप्त कक्ष में मिलती हैं। आप उस कक्ष में आराम से रहिए। मैं एक-एक करके अपने दुश्मनों को वहां भेजूंगा और आप उन्हें चट कर जाना।"

कालिया को योजना पसंद आई। बिना मेहनत के रोज दावत मिले, तो कौन मना करेगा? उसने सोचा, "यह मूर्ख मेंढक अपने ही विनाश का रास्ता खुद बना रहा है। मुझे क्या? मेरा तो पेट भरेगा।"

कालिया सांप, भीमसेन के साथ गुप्त सुरंग के रास्ते कक्ष में पहुँच गया। भीमसेन ने अपनी योजना शुरू कर दी। सबसे पहले उसने पड़ोसी राजा सुबुद्धि और उसकी प्रजा के मेंढकों को किसी न किसी बहाने सुरंग में भेजा। कालिया ने कुछ ही हफ्तों में उन सबका सफाया कर दिया।

जब पड़ोसी कुएं खाली हो गए, तो कालिया ने डकार लेते हुए कहा, "दोस्त भीमसेन! अब भूख लगी है। पड़ोसी तो खत्म हो गए, अब किसका नंबर है? मुझे तो अब रोज भरपेट खाने की आदत हो गई है।"

भीमसेन ने क्रूरता से मुस्कुराते हुए कहा, "अब मेरे कुएं के उन सयाने और बुद्धिमान मेंढकों की बारी है, जिन्होंने मेरा आदेश मानने से इनकार किया था। भेजो ज्ञानचंद और उसके साथियों को।"

बुद्धिमान मेंढक भी कालिया का ग्रास बन गए।

फिर आम प्रजा की बारी आई। भीमसेन ने सोचा, "ये प्रजा भी किसी काम की नहीं, हर वक्त रोती रहती है।" कुछ ही दिनों में कुएं की सारी प्रजा सांप के पेट में समा गई।

अब कुएं में सिर्फ भीमसेन, उसकी पत्नी और उसके बेटे बचे थे।

कालिया ने फिर फुफकारा, "खाना! मुझे और खाना चाहिए!"

भीमसेन ने घबराकर कहा, "नागराज, अब तो सिर्फ मेरा परिवार और मेरे कुछ खास मित्र ही बचे हैं। बाकी सब खत्म।"

कालिया ने अपना विशाल फन फैलाया और खौफनाक आवाज में बोला, "सुन मेंढक! मुझे बहाने नहीं चाहिए। मैंने तेरे दुश्मनों को खत्म किया है, अब मेरा पेट भरना तेरी जिम्मेदारी है। अगर तूने खाने का इंतजाम नहीं किया, तो..."

भीमसेन की सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई। डर के मारे उसने पहले अपने मित्रों को, और फिर एक-एक करके अपने ही बेटों को कालिया के पास भेज दिया। भीमसेन ने खुद को दिलासा दिया, "कोई बात नहीं, मैं और मेरी पत्नी जिंदा रहे तो और बेटे हो जाएंगे।"

बेटों को निगलने के बाद कालिया की भूख और बढ़ गई। वह गरजा, "और लाओ! अभी पेट नहीं भरा।"

भीमसेन कांपने लगा। उसके पास अब कोई नहीं बचा था। उसने कांपते हाथ से अपनी बूढ़ी पत्नी की ओर इशारा कर दिया। मन ही मन उसने सोचा, "चलो, इस बूढ़ी से जान छूटी। मैं किसी जवान मेंढकी से शादी कर लूँगा।"

पत्नी के जाने के बाद, कुएं में सिर्फ भीमसेन अकेला बचा।

कालिया ने फिर अपना खूनी मुंह खोला, "खाना!"

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भीमसेन गिड़गिड़ाया, हाथ जोड़े, "नागराज! अब तो कोई नहीं बचा। सिर्फ मैं हूँ, आपका परम मित्र भीमसेन! हमारा समझौता पूरा हुआ। अब आप अपने घर लौट जाइए।"

कालिया जोर से हंसा, उसकी हंसी से सुरंग गूंज उठी। "मित्र? कैसा मित्र? तूने अपनों को नहीं बख्शा, तो मैं तुझे कैसे बख्श दूँ? तू कौन सा मेरा सगा लगता है?"

और इससे पहले कि भीमसेन कुछ समझ पाता, कालिया ने झपट्टा मारा और घमंडी राजा भीमसेन को एक ही बार में निगल गया।

सीख (Moral of the Story)

इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि अपनों से बदला लेने के लिए कभी भी बाहरी या दुष्ट व्यक्ति का सहारा नहीं लेना चाहिए। घर का झगड़ा घर में ही सुलझाना बेहतर होता है। जो व्यक्ति अपने समाज या परिवार के विनाश के लिए दुश्मनों से हाथ मिलाता है, अंत में वह खुद भी उसी विनाश की आग में जलकर भस्म हो जाता है। विनाशकारी शक्तियों से दोस्ती का अंजाम हमेशा बुरा ही होता है।

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