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जंगल कहानी : पल्टू सियार का धोखा और मोनू भालू की माफ़ी :- सुजान वन में मोनू भालू और पिल्टू सियार दोनों की साईकिल की मरम्मत की दुकान थी। दोनों साईकिल के पंचर वगैरह बनाते थे। दोनों की दुकाने लगभग आधा किलोमीटर की दूरी पर थीं।
दोनों के एक काम होने के बावजूद मोनू भालू के घर की स्थिति अच्छी नहीं थी। कभी-कभी दिनभर में एक भी पंचर ठीक करने को नहीं मिल पता था। इससे उसे अत्यन्त आर्थिक कठिनाई का सामना करना पड़ता था।
दूसरी ओर पिल्टू सियार की स्थिति बहुत अच्छी थी। उसने अपनी बढ़िया दुकान बना रखी थी। मोनू भालू को यह समझ में नहीं आता था। कि दोनों का एक ही तरह का काम होने पर पिल्टू सियार की स्थिति कैसे अच्छी हैं?
वास्तव में बात दूसरी ही थी। पिल्टू सियार बहुत धूर्त था। वह लोगों को धोखा देता था। साईकिल का पंचर बनाते समय वह ट्यूब में पंचर देखने के लिए पानी से भरे एक बर्तन में उसे डुबोता था। जिसमें उसने एक-दो आलपिनें रख रखी थी। ग्राहक की नजर बचाकर चुपके से एक दो जगह और छेद कर देता था। जिससे ट्यूब में पंचरों की संख्या बढ़ जाती थी। उसे तीन-चार पंचरों के पैसे मिल जाते थे। इस तरह एक-दो ग्राहक से ही वह खूब लूट लेता था।
एक दिन मोनू भालू पिल्टू सियार की अच्छी आर्थिक स्थिति का राज पूछने के लिए सुबह उसकी दुकान खुलने से पहले ही उसके पास पहुँच गया। उससे बातें करते समय उसकी नजर पंचर बनाने वाले बर्तन पर पड़ी। जिसमें अभी पानी नहीं भरा था। उसमें रखी आॅलपिनों को देखकर उसकी समझ में सब कुछ आ गया। वह पिल्टू सियार से बोला। दोस्त, मुझे नहीं पता था, कि तुम लोगों को धोखा देकर पैसे कमाते हो। लेकिन मेरी बात याद रखोे, इस बात का भंडा जिस दिन फूटेगा, बहुत पछताओगे।’ अपना राज खुलता देखकर पिल्टू हंसता हुआ बोला। ‘अरे यार, व्यापार में सब कुछ चलता है। देखो, तुम मेरे सच्चे दोस्त हो। तुम किसी से यह बात न बताना। और हाँ, तुम भी ऐसा ही क्यों नहीं करते? पैसों की जरा भी तंगी नहीं रहेगी।
मोनू भालू बोला। नहीं दोस्त, मैं भूख से तड़पकर मर जाऊँगा। लेकिन दूसरों को धोखा देकर कभी धन नहीं कमाकर खाऊँगा।
सुबह के आठ बज रहे थे। दीपू खरगोश जल्दी-जल्दी साईकिल से अपने दफ्तर जा रहा था। कि न जाने कैसे साईकिल में पंचर हो गया। वह परेशान हो गया कि अब दफ्तर पहुँचने में उसे देर हो जायेगी। वह जल्दी-जल्दी पास की पिल्टू सियार की दुकान पर पहुँचा।
पिल्टू भइया, जल्दी से पंचर बना दो। मैं दफ्तर जा रहा हूँ।
अरे दीपू भाई, क्यों परेशान होते हो? मैं झटपट तुम्हारी साईकिल पर पंचर बना देता हूँ।
पिल्टू सियार पंचर बनाने में लग गया। रोज की तरह जब पंचर देखने के लिए, पानी वाले बर्तन में ट्यूब डालकर, उसमें आलपिन चुभोना चाहा। आलपिन जल्दी में गलती से उसकी उंगुली में चुभ गई। वह दर्द से कराह उठा।
क्यों क्या हुआ? पिल्टू भइया! दीपू खरगोश का स्वर था।
कुछ नहीं, कुछ नहीं! पिल्टू सियार हड़बड़ा गया।
पानी के बर्तन में आलपिन दिखाई पड़ जाने के कारण दीपू खरगोश के समझ में सब कुछ आ गया था। वह पिल्टू सियार को धूर्त मक्कार न जाने क्या-क्या कहता हुआ साईकिल ले आगे बढ़ गया। उसने सारे वन में पिल्टू सियार की धूर्तता की कहानी सुना दी। दूसरे दिन से उस दुकान पर एक भी ग्राहक आना बंद हो गया।
फिर पिल्टू सियार ने कान पकड़कर सारे वन में रहने वाले जानवरों से माफी मांगी। उसे माफ कर दिया गया। अब पिल्टू सियार और मोनू भालू मिलकर साईकिल की एक बड़ी दुकान चला रहे थे।
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