एक पंथ दो काज: राजू का मेहनती सफर

बच्चों, आज मैं तुम्हें एक ऐसी कहानी सुनाने जा रहा हूँ जो मेहनत और चतुराई का सबक देती है। यह कहानी है राजू की, एक ऐसे लड़के की, जो अपनी पढ़ाई और जिम्मेदारियों को एक साथ संभालता है।

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Raju's hardworking journey

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एक पंथ दो काज: बच्चों, आज मैं तुम्हें एक ऐसी कहानी सुनाने जा रहा हूँ जो मेहनत और चतुराई का सबक देती है। यह कहानी है राजू की, एक ऐसे लड़के की, जो अपनी पढ़ाई और जिम्मेदारियों को एक साथ संभालता है। यह कहानी न सिर्फ मनोरंजक है, बल्कि तुम्हें भी कुछ नया सीखने को प्रेरित करेगी। तो चलो, इस रोमांचक सफर में शामिल होते हैं!

कहानी की शुरुआत: राजू का परिवार और जिंदगी

एक छोटे से गांव में मनसा कुम्हार रहते थे, जो मिट्टी के खूबसूरत बर्तन बनाने में माहिर थे। अपने काम को आसान बनाने के लिए उन्होंने आठ-दस गधों को पाल रखा था, जो मिट्टी ढोने में उनकी मदद करते थे। मनसा का एक प्यारा सा बेटा था, राजू, जो आठवीं कक्षा में पढ़ता था। लेकिन कोरोना महामारी के चलते स्कूल बंद हो गए थे, और राजू को घर पर ही पढ़ाई करनी पड़ रही थी। वह दिनभर किताबों के साथ समय बिताता और अपने माता-पिता की मदद भी करता था।

एक सुबह राजू हिंदी की किताब पढ़ रहा था, जब उसे एक नया मुहावरा मिला—‘एक पंथ दो काज’। उसे इसका मतलब समझ में नहीं आया, तो उसने अपने पिता मनसा से पूछा, “पिताजी, ‘एक पंथ दो काज’ का क्या अर्थ होता है?” मनसा, जो चाक पर बर्तन गढ़ रहे थे, मुस्कुराए और बोले, “अरे बेटा, यह बहुत आसान है। इसका मतलब है कि एक ही समय में दो काम कर लेना।” राजू की उत्सुकता बढ़ी, और उसने कहा, “पिताजी, कृपया कोई उदाहरण भी बता दें।” मनसा ने हंसते हुए जवाब दिया, “देखो, जैसे मैं चाक पर बर्तन बनाते हुए ग्राहकों को बर्तन दिखाकर बेच भी देता हूँ—काम का काम और दाम का दाम।” राजू ने खुशी से कहा, “वाह पिताजी, आपने मुहावरा समझाते हुए दूसरा मुहावरा भी बता दिया। आप तो कमाल हो!”

मां की सलाह और नई योजना

इसी बीच राजू की मां रसोई से निकलीं और बोली, “राजू, पढ़ाई के बाद इन गधों को जंगल की ओर ले जाओ। बरसात के मौसम में मिट्टी ढोना बंद है, तो ये खूंटे से बंधे-बंधे परेशान हो गए हैं। हरी घास चरने से उन्हें ताजगी मिलेगी।” राजू ने थोड़ा मुंह बनाया और कहा, “मां, मुझे तो पढ़ना है।” मां ने प्यार से समझाया, “अरे, कौन तुझे पढ़ने से रोक रहा है? किताब ले जा और जंगल में खुले में पढ़ लेना। गधे भी चरते रहेंगे, और तुझे शांति भी मिलेगी।”

तभी मनसा ने बीच में टोकते हुए पूछा, “राजू, अभी मैंने तुझे कौन-सा मुहावरा समझाया था?” राजू फौरन बोला, “पिताजी, एक पंथ दो काज।” मनसा ने मुस्कुराते हुए कहा, “बिल्कुल सही! तेरी मां भी तो यही कह रही हैं—गधों को चराते हुए पढ़ाई भी कर लेना। जंगल में कोई तेरा ध्यान भटकाने वाला भी नहीं होगा।” राजू को अपने माता-पिता की बात जंच गई, और वह गधों को लेकर जंगल की ओर चल पड़ा।

जंगल में नई चुनौती और चतुराई

जंगल में पहुंचकर राजू ने गधों को घास चरने के लिए छोड़ दिया। लेकिन इनमें से एक गधा बड़ा शरारती था। वह चरते-चरते इधर-उधर भाग जाता और खेतों की ओर दौड़ पड़ता। राजू को डर था कि कहीं वह फसल खराब न कर दे, इसलिए उसकी नजर उस पर रखना जरूरी था। लेकिन पढ़ाई भी अधूरी रह जाती, तो वह सोच में पड़ गया।

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फिर उसे एक शानदार तरकीब सूझी। उसने अपनी किताब उठाई और उस शरारती गधे की पीठ पर चढ़ गया। गधा धीरे-धीरे घास चरता रहा, और राजू आराम से किताब पढ़ने लगा। गधे की पीठ पर बैठकर उसे ऐसा लगा जैसे वह एक चलता-फिरता पढ़ाई का ठिकाना पा गया हो। ऊपर से वह गधे पर नजर भी रख लेता था। आसपास के गांववाले जो उसे देखते, वे मुस्कुराते हुए कहते, “वाह, ये तो सच्चा मेहनती बच्चा है! एक पंथ दो काज कर रहा है—पढ़ाई भी और गधों की देखभाल भी।”

सबक और खुशी का पल

दोपहर तक राजू ने अपनी पढ़ाई पूरी कर ली, और गधे भी तरोताजा होकर लौट आए। घर पहुंचकर उसने मां-पिताजी को सारी बात बताई। मनसा ने गर्व से कहा, “बेटा, तूने मेरे सिखाए मुहावरे को सच कर दिखाया।” मां ने प्यार से उसके सिर पर हाथ रखा और बोली, “तूने न सिर्फ गधों की फिक्र की, बल्कि अपनी पढ़ाई भी जारी रखी। यही असली मेहनत है।” राजू खुश होकर बोला, “मां-पिताजी, आपकी सलाह से मुझे समझ आ गया कि एक साथ कई काम करने से समय बचता है और मजा भी आता है।”

उस दिन से राजू हर रोज गधों को जंगल ले जाता और पढ़ाई करता। गांव के बच्चे भी उससे प्रेरित हुए और अपनी जिम्मेदारियों के साथ पढ़ाई करने लगे। राजू का यह तरीका न सिर्फ उसे पढ़ाई में आगे बढ़ाने लगा, बल्कि गांव में उसकी एक नई मिसाल भी बन गई।

सीख

“एक पंथ दो काज: राजू का मेहनती सफर” बच्चों को मेहनत और चतुराई का पाठ सिखाती है। राजू ने अपनी पढ़ाई और गधों की देखभाल को एक साथ संभालकर दिखाया कि सही प्लानिंग से हर काम आसान हो सकता है। यह कहानी बच्चों को प्रेरित करती है कि वे अपनी जिम्मेदारियों को हल्के में न लें और हर मौके का फायदा उठाएं।

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