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यह एक युवा आदमी की कहानी है, जिसका नाम पारस था। पारस एक दूरस्थ देश में रहता था, जहाँ की हवा में सच्चाई और मेहनत की खुशबू थी। उस देश का राजा बूढ़ा हो चुका था और उसे अपनी गद्दी का उत्तराधिकारी चुनना था। राजा चाहता था कि उसका वारिस न केवल हिम्मतवाला हो, बल्कि सच्चाई और ईमानदारी का प्रतीक भी हो। इसलिए उसने एक अनोखा तरीका सोचा। उसने अपने राज्य के सभी युवाओं को छोटे-छोटे बीज भेजे और एक घोषणा की कि इन बीजों को गमले में लगाकर सुंदर पौधा उगाना होगा। जिसका पौधा सबसे शानदार होगा, वही राजा का उत्तराधिकारी बनेगा।
पारस को जब बीज मिला, तो वह बहुत उत्साहित हुआ। वह बाजार गया और एक सुंदर गमला खरीद लाया। उसने खाद ली और बीज को सावधानी से गमले में बोया। हर सुबह और शाम वह पौधे को पानी देता और उसकी देखभाल करता। वह उम्मीद से उसे देखता रहा, लेकिन कुछ भी नहीं हुआ। पौधे की कोई निशानी नहीं दिखी। निराश होकर उसने गमले को घर के एक कोने में रख दिया, जहाँ सूरज की रोशनी ज्यादा थी। फिर भी, कोई बदलाव नहीं आया।
एक दिन वह अपने पिता के पास गया और उदास होकर बोला, "पिताजी, मैंने बहुत कोशिश की, लेकिन मेरा बीज अंकुरित नहीं हो रहा। क्या मुझे कुछ गलत तरीका अपनाना चाहिए?" उसके पिता, जो एक बुद्धिमान और समझदार इंसान थे, ने मुस्कुराते हुए कहा, "बेटा, ईमानदारी से कोशिश करो। अगर बीज खराब है, तो उसे दोष देना आसान है, लेकिन सच्चाई से काम लेना मुश्किल। शायद यह परीक्षा सच्चाई की है।" पारस ने पिता की बात को गहराई से सोचा और फैसला किया कि वह जैसा भी परिणाम हो, सच्चाई के साथ ही आगे बढ़ेगा।
कई हफ्ते बीत गए, और एक दिन राजा ने सभी युवाओं को दरबार में बुलाया। पारस के आसपास के लोग अपने गमलों में हरे-भरे पौधे, रंग-बिरंगे फूल और लंबी-लंबी पत्तियों के साथ आए थे। उनके चेहरों पर गर्व था, लेकिन पारस का मन डर और शर्म से भरा था। उसका गमला खाली था। वह सोचने लगा, "सब मुझे हंसी का पात्र बनाएंगे।" इसलिए वह पीछे जाकर एक कोने में बैठ गया, ताकि उसका खाली गमला किसी की नजर में न आए।
राजा ने पौधों का निरीक्षण शुरू किया। वह हर गमले को देखते गए, लेकिन उनके चेहरे पर मुस्कान की जगह गंभीरता और क्रोध था। वे चुपचाप आगे बढ़ते रहे, जब तक उनकी नजर पारस के खाली गमले पर नहीं पड़ी। राजा ने उसे उठने का इशारा किया। पारस कांपते पैरों से उठा और सोचने लगा कि अब सजा मिलेगी। लेकिन राजा ने सभी के सामने एक आश्चर्यजनक घोषणा की, "पारस ही मेरा उत्तराधिकारी होगा!"
दरबार में सन्नाटा छा गया। लोग आपस में फुसफुसाने लगे। तब राजा ने सच्चाई बताई। उन्होंने कहा, "मैंने सभी बीजों को उबालकर बेकार कर दिया था। कोई भी बीज अंकुरित नहीं हो सकता था। मैं देखना चाहता था कि कौन सच्चा है और कौन झूठा। जिनके पास हरे-भरे पौधे हैं, उन्होंने नकली पौधे लगाए हैं। लेकिन पारस ने सच्चाई का रास्ता चुना। वह न तो बीज को दोष दिया और न ही झूठ बोला। यही हिम्मत और ईमानदारी मेरे राज्य के लिए जरूरी है।"
पारस की आँखों में खुशी के आंसू थे। राजा ने उसे गले लगाया और कहा, "तूने साबित कर दिया कि सच्चाई और साहस ही असली ताकत है।" उस दिन से पारस ने राजा की सलाह मानकर राज्य को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया। उसने लोगों को ईमानदारी और मेहनत का पाठ पढ़ाया, और राज्य में शांति और समृद्धि लौट आई।
सीख
यह कहानी हमें सिखाती है कि सच्चाई और ईमानदारी हमेशा जीतती है, भले ही शुरुआत में मुश्किलें आएँ। झूठ का रास्ता आसान लगता है, लेकिन सच्चाई ही लंबे समय तक साथ देती है। पारस की तरह हमें भी अपने मूल्यों पर डटे रहना चाहिए।