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नमस्ते प्यारे दोस्तों! क्या आपने कभी सोचा है कि जिस इंसान के पास दुनिया की हर ख़ुशी हो, वह फिर भी दुखी क्यों हो सकता है? यह कहानी एक ऐसे ही राजा की है, जिसके महल में सोने-चाँदी की कमी नहीं थी, नौकरों की फ़ौज थी, फिर भी उसके चेहरे पर मुस्कान नहीं थी। यह एक प्रेरणादायक हिंदी कहानी है जो हमें सिखाती है कि दौलत से ज़्यादा क़ीमती चीज़ क्या है।
आज हम जानेंगे कि कैसे एक राजा ने अपनी बीमारी का इलाज पूरे राज्य में सबसे ख़ुश आदमी की कमीज़ पहनकर ढूँढ़ना चाहा, और इस अनोखी तलाश में उसे कौन-सा बड़ा सत्य मिला। तो चलिए, शुरू करते हैं ख़ुश व्यक्ति की क़मीज़ की यह मौलिक और विस्तार से लिखी गई कहानी!
राजा की अनूठी बीमारी (The King's Unique Ailment: Sadness in Splendor)
बहुत पुरानी बात है, 'सुखधाम' नामक राज्य पर महाराजा वीरेन्द्र राज करते थे। नाम के अनुसार, उनका राज्य सुख और समृद्धि से भरा था। महाराज के पास क़ीमती वस्त्र, स्वादिष्ट व्यंजन, दुनिया के बेहतरीन घोड़े और अनगिनत खज़ाने थे। उनके हर इशारे पर बड़े-बड़े मंत्री सिर झुकाते थे।
पर अफ़सोस! महाराजा वीरेन्द्र ख़ुद सुखी नहीं थे।
उन्हें हमेशा अजीब सी बेचैनी रहती थी। उनका मन हमेशा उदास रहता था और रात को नींद भी मुश्किल से आती थी। वह अक्सर अपने महल की सुनसान बालकनी में टहलते और आसमान में तारों को देखकर सोचते, "मेरे पास सब कुछ है, पर यह ख़ुशी (Happiness) कहाँ है, जो मेरे पास नहीं है? क्या यह भी कोई बीमारी है?"
उन्होंने अपने महामंत्री से कहा:
महाराज: "महामंत्री, मुझे लगता है मैं बीमार हूँ। मेरा शरीर तो मज़बूत है, पर अंदर ही अंदर कुछ खोखला होता जा रहा है।" महामंत्री: "महाराज, आप तो एकदम स्वस्थ दिखते हैं! मैं तुरंत राज्य के सबसे बड़े चिकित्सक को बुलाता हूँ।"
राजा के आदेश पर राज्य के एक से बढ़कर एक अनुभवी चिकित्सक (Physicians) और वैद्य बुलाए गए। उन्होंने राजा की नब्ज़ जाँची, उनका खान-पान देखा और तरह-तरह की औषधियाँ दीं, पर कोई फ़ायदा नहीं हुआ। राजा की बीमारी शारीरिक नहीं, बल्कि मानसिक थी, और उसका इलाज किसी जड़ी-बूटी से संभव नहीं था। सभी हक़ीम हार मान चुके थे।
बुद्धिमान वैद्य और असाध्य रोग का नुस्खा (The Wise Vaidya and the Bizarre Cure)
जब सब उम्मीदें टूट गईं, तब महामंत्री ने एक दूर-दराज़ गाँव से महावैद्य दीनदयाल को बुलाने का फ़ैसला किया। दीनदयाल सिर्फ़ शरीर का नहीं, बल्कि मन का इलाज करने के लिए भी प्रसिद्ध थे।
महावैद्य दीनदयाल ने ध्यान से राजा को देखा। उन्होंने राजा से बातचीत की, उनके रहन-सहन को समझा, और फिर धीरे से मुस्कुराए।
महावैद्य दीनदयाल: "महाराज, आपकी बीमारी 'तनाव' और 'असंतोष' की है। यह शरीर का नहीं, बल्कि मन का रोग (Disease of the Mind) है।" महाराज: "तो क्या इसका कोई इलाज नहीं है, वैद्य जी?" महावैद्य दीनदयाल: "इलाज है, महाराज! और यह बहुत ही अनोखा है। आपको अपने मन का भ्रम तोड़ना होगा।" महाराज: "बताइए, मैं क्या करूँ?"
वैद्य ने अपनी युक्ति बताई, जो किसी को भी हैरान कर सकती थी: "यदि महाराज एक रात्रि के लिए किसी सबसे ख़ुश और संतुष्ट व्यक्ति (Happiest and Content Person) की कमीज़ (Shirt) पहनकर सोएँ, तो उनकी यह बेचैनी और बीमारी दूर हो सकती है।"
राजा को यह नुस्खा अजीब लगा, पर चूँकि और कोई रास्ता नहीं था, उन्होंने तुरंत अपने सबसे भरोसेमंद सैनिकों को आदेश दिया कि राज्य के कोने-कोने में जाएँ और उस एक आदमी को ढूँढ़कर लाएँ, जो हर हाल में ख़ुश हो।
तलाश में खाक छानना: दुःखिया सब संसार (The Fruitless Search: Everyone in the World is Troubled)
सैनिकों की एक टुकड़ी, जिसका नेतृत्व वीर और निष्ठावान सेनापति अर्जुन कर रहे थे, तुरंत सबसे ख़ुश व्यक्ति की कमीज़ की तलाश में निकल पड़ी। उन्होंने शहर से गाँव तक, अमीरों के महलों से ग़रीबों की झोपड़ियों तक हर जगह तलाश में खाक छान मारी।
पर उन्हें हर तरफ़ सिर्फ़ दुःख ही मिला:
धनवान सेठ: सैनिक एक धनी सेठजी के पास गए, जिनके पास अपार संपत्ति थी। सेठजी रात-रात भर जागकर हिसाब लगाते थे।
सेनापति अर्जुन: "सेठजी, आप तो बहुत ख़ुश होंगे, इतनी दौलत के मालिक हैं।" सेठजी (आँसू पोंछते हुए): "ख़ुश? सेनापति, मुझे ख़ुशी नहीं, सिर्फ़ डर है। मुझे डर है कि कहीं मेरा व्यापार डूब न जाए! मेरे प्रतिद्वंद्वी मेरी दौलत छीन न लें! मैं चैन से एक पल भी नहीं जी पाता।"
विद्वान पंडित: सैनिक एक प्रसिद्ध पंडित के पास पहुँचे, जिन्हें ज्ञान का भंडार माना जाता था।
सैनिक: "पंडित जी, आपने इतनी विद्या अर्जित की है, आप तो निश्चिंत होंगे।" पंडित: "ज्ञान ही तो दुःख है! मैं और ज्ञान पाना चाहता हूँ। मैं दुनिया के सर्वश्रेष्ठ विद्वानों से आगे निकलना चाहता हूँ! मुझे अपनी कम प्रसिद्धि का दुःख है।"
गृहस्थ का दुख: उन्हें एक ऐसा व्यक्ति मिला, जो संतान न होने से दुखी था। वहीं, कुछ दूर पर एक और गृहस्थ अपने बच्चों की ज़िद और नाफ़रमानी से परेशान था। किसी को पत्नी के निधन का दुःख था, तो कोई शिकायत कर रहा था कि उसकी पत्नी जीवित क्यों है!
सैनिक हताश हो गए। उन्होंने महसूस किया कि दुनिया में हर किसी के पास कोई न कोई शिकायत है। किसी को अपनी निर्धनता का दुःख था तो कोई धनवान होकर और धन की लालसा पाले हुए था। हर व्यक्ति की तिजोरी भरी थी, पर मन खाली था। सच ही कहा गया है, 'नानक दुखिया सब संसार' (Nanak, the whole world is afflicted with sorrow)।
बस्ती के बाहर मिला वो मस्त मौला (The Carefree Man Found Outside the Village)
लगातार तीन दिन की असफलता के बाद, जब सैनिक हार मानकर वापस लौटने वाले थे, तभी उनकी नज़र गाँव के द्वार से थोड़ी दूर पर गई। वहाँ एक भिखारी जैसी आकृति, मदमस्त (Carefree) होकर लेटी हुई थी। वह अपनी धुन में ज़ोर-ज़ोर से सीटी बजा रहा था, हँस-हँसकर गाना गा रहा था और ख़ुद ही ख़ुद पर लोटपोट हुए जा रहा था।
उसकी ख़ुशी इतनी सहज और सच्ची थी कि सैनिकों को तुरंत लगा—यही है वह आदमी!
सेनापति अर्जुन उसके पास रुके और श्रद्धा से उसका अभिवादन किया:
सेनापति अर्जुन: "ईश्वर आपका भला करे, मित्र! आप अत्यंत प्रसन्नचित्त (Extremely cheerful) और संतुष्ट दिखाई देते हैं। क्या आप सचमुच ख़ुश हैं?" मस्त मौला: "ख़ुश? मैं तो परम आनंद में हूँ! मुझे किसी बात का कोई दुःख नहीं है, न ही कोई लालसा। जो मिला उसी में मगन हूँ। आज का दिन ख़त्म हुआ, कल की चिंता क्यों करूँ?"
सेनापति की आँखें ख़ुशी से चमक उठीं। उन्हें अपना मिशन सफल होता दिखाई दिया।
सेनापति अर्जुन: "अगर आप इतने ख़ुश हैं, तो महाराज की एक इच्छा पूरी कर दीजिए। यदि आप अपनी कमीज़ एक रात के लिए हमें उधारी दे दें, तो हम आपको 100 स्वर्ण मुद्राएँ देंगे। इससे आपका जीवन बदल जाएगा!"
यह सुनकर वह भिखारी जोर-जोर से हँसने लगा। उसकी हँसी इतनी ज़ोरदार थी कि वह ज़मीन पर लोटपोट हो गया। जब किसी तरह उसकी हँसी रुकी, तो उसने अपनी आँखें पोंछीं और बोला:
मस्त मौला: "माफ़ करना, सेनापति! मैं यह उपकार (Kindness) ज़रूर करता, पर मेरे तन पर कोई वस्त्र ही नहीं है! मेरी कमीज़ तो कब की फटकर हवा में उड़ गई!"
राजा की आत्म-खोज और सच्ची ख़ुशी (The King's Self-Discovery and True Happiness)
सैनिकों के पास वापस लौटने के लिए अब एक अनोखी ख़बर थी। उन्होंने राजा को हर दिन का ब्यौरा दिया था, जिससे राजा को यह पता चल चुका था कि दुनिया में कितने दुःख व्याप्त हैं।
जब सैनिकों ने यह अंतिम समाचार दिया कि उन्हें एक व्यक्ति मिला जो पूर्णतया प्रसन्न व संतुष्ट है, लेकिन उसके पास तन ढकने को वस्त्र नहीं हैं—यानी उसके पास कुछ भी नहीं है, तब राजा जीवन के गूढ़ तत्व (Profound Truth) को समझ गए।
उन्होंने उस रात बिना किसी कमीज़ के सिर्फ़ एक चादर ओढ़कर बिस्तर पर लेटे हुए महसूस किया:
सच्ची ख़ुशी बाहरी वस्तुओं, धन या महल में नहीं थी।
ग़रीब होने का दुःख नहीं था, बल्कि दुःख था ज़्यादा पाने की लालसा (Greed for more) का।
सन्तुष्टि (Contentment) ही वह सबसे क़ीमती कमीज़ थी जो किसी के पास नहीं थी, और जिसके पास वह थी, उसे किसी भौतिक वस्त्र की ज़रूरत ही नहीं थी।
महाराजा वीरेन्द्र ने उसी क्षण अपने व्यर्थ के भ्रम (Vain Delusions) को छोड़कर जनता की भलाई और सेवा में लग गए। उन्होंने अपनी दौलत का इस्तेमाल दूसरों की ख़ुशी के लिए करना शुरू कर दिया। जब उन्होंने दूसरों के दुःख दूर किए, तो उन्हें पहली बार अपने मन में सच्ची शांति और ख़ुशी का अनुभव हुआ।
अब महाराजा वीरेन्द्र और उनकी प्रजा दोनों सुखी थे, क्योंकि राजा ने ख़ुश रहने का असली राज सीख लिया था।
सीख (Moral)
जीवन की सबसे बड़ी सीख यही है कि सन्तुष्टि ही सच्ची ख़ुशी की कमीज़ है। हमारे पास जो है, उसी में ख़ुश रहना सीखें। दौलत या वस्तुएँ हमें ख़ुशी नहीं दे सकतीं, बल्कि संतोष और निस्वार्थ सेवा हमें मानसिक शांति देती है। हमें यह समझना चाहिए कि ज़्यादा पाने की लालसा ही हमारे दुख का असली कारण है।
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