अंतरमन की शांति- एक समय की बात है, एक सेठ था जिसकी दौलत असीम थी, लेकिन उसकी आत्मा बेचैन थी। वह हर समय चिंतित और असंतुष्ट रहता। उसे किसी ने बताया कि पास के जंगल में एक प्रसिद्ध साधु रहते हैं, जो मन की शांति का उपाय जानते हैं। सेठ तुरंत साधु के पास पहुंचा और अपनी समस्या बताई।
सेठ ने कहा, "महाराज, मेरे पास सबकुछ है, लेकिन मन की शांति नहीं। कृपया मेरी मदद करें।" साधु मुस्कुराए और बोले, "जो मैं कहूं, वही करो और ध्यान से देखो।" सेठ मान गया।
अगले दिन साधु ने सेठ को कड़ी धूप में बिठाया और खुद कुटिया में चले गए। सेठ पसीने में तरबतर हो गया लेकिन साधु की बात मानते हुए शांत रहा। दूसरे दिन साधु ने सेठ को बिना भोजन के रखा, जबकि खुद तरह-तरह के पकवान खाए। सेठ को यह देखकर आश्चर्य हुआ, लेकिन उसने कुछ नहीं कहा। तीसरे दिन सेठ का धैर्य टूट गया। उसने साधु से कहा, "महाराज, मैं यहां मन की शांति की उम्मीद से आया था, लेकिन आपने मुझे केवल कष्ट ही दिए।"
साधु मुस्कुराते हुए बोले, "मैंने तुम्हें सिखाने की कोशिश की कि दूसरों पर निर्भर रहकर शांति नहीं मिलती। मैंने तुम्हें धूप में इसलिए रखा ताकि तुम समझो कि मेरी छाया तुम्हारी मदद नहीं कर सकती। मैंने तुम्हें भूखा रखा ताकि तुम जानो कि दूसरों के भोजन से तुम्हारी भूख नहीं मिटेगी। मन की शांति तुम्हें बाहर से नहीं, बल्कि अपने भीतर से ही प्राप्त होगी।"
साधु ने आगे समझाया, "जब तक तुम अपनी समस्याओं का हल बाहर ढूंढते रहोगे, तब तक तुम बेचैन रहोगे। शांति तुम्हारे भीतर है। इसे अपने कर्मों और विचारों में अनुशासन लाकर ही पाया जा सकता है।"
सेठ ने साधु की बात समझ ली। उसने साधु के चरण छुए और कहा, "महाराज, आपने मेरी आंखें खोल दीं। अब मैं समझ गया हूं कि शांति मेरे भीतर ही है।" वह साधु का आशीर्वाद लेकर अपने घर लौट गया।
अंतरमन की शांति कहानी से सीख:
मन की शांति बाहरी चीजों में नहीं, बल्कि आत्मनिरीक्षण और सही कर्मों में निहित होती है। हमें अपनी समस्याओं का हल खुद ढूंढने की कोशिश करनी चाहिए।
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