बैल की कहानी: मेहनत, मूर्खता और समझदारी की सीख

यह कहानी नवनीत और उसके दादा जी की है, जहां दादा जी उसे बैल की मेहनत और मूर्खता की कथा सुनाते हैं। बैल मेहनती थे, लेकिन पुआल को चुनकर अपनी मूर्खता साबित कर दी। कहानी सिखाती है कि मेहनत के साथ समझदारी भी जरूरी है, तभी सच्ची सफलता मिलती है।

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The story of the bull lessons of hard work, foolishness and wisdom
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बैल की कहानी: मेहनत, मूर्खता और समझदारी की सीख- स्कूल से लौटते ही नवनीत अपने दादा जी के पास भागा और उत्सुकता से पूछने लगा,
"दादा जी, आज मास्टर जी ने मोटू राम को 'बैल' क्यों कहा?"
दादा जी मुस्कुराए और बोले, "पहले कुछ खा-पी लो, फिर मैं तुम्हें एक दिलचस्प कहानी सुनाऊंगा।"

शाम होते ही नवनीत अपने दोस्तों को लेकर दादा जी के पास आ गया। सभी ने गोल घेरा बनाकर बैठने के बाद कहानी सुननी शुरू की।


दादा जी की कहानी: बैल और मनुष्य का अनोखा समझौता

दादा जी ने कहानी शुरू की:
बहुत समय पहले की बात है। उस समय मनुष्य खेती के लिए पूरी तरह अपने बल पर निर्भर थे। हल को खींचने का काम भी उन्हें स्वयं करना पड़ता था, जिससे खेती करना अत्यंत कठिन और समय लेने वाला कार्य था।

एक दिन मनुष्यों ने सोचा, "क्यों न बैलों की मदद ली जाए?"
उन्होंने बैलों से यह प्रस्ताव रखा कि यदि वे हल खींचने में मदद करेंगे, तो फसल का हिस्सा उन्हें चुनने दिया जाएगा।

बैल तैयार हो गए और खेती का काम शुरू हो गया। बारिश के साथ खेतों में हल चलने लगा। बैलों ने पूरे मन से काम किया और मनुष्यों ने भी जमकर मेहनत की।


फसल का बंटवारा और बैलों की मूर्खता

कुछ समय बाद फसल तैयार हुई। बैलों ने अपने खुरों से धान को डंठल से अलग किया।
मनुष्यों ने पुआल और धान को दो ढेरों में बांटा।

जब बैलों को अपना हिस्सा चुनने का समय आया, तो उन्होंने देखा कि पुआल का ढेर बड़ा और ऊंचा है।
बैल बोले, "हमें यही चाहिए!"
मनुष्य चुपचाप मुस्कुराए और उन्हें पुआल लेने दिया। इस प्रकार धान मनुष्यों के पास रह गया।


बैल क्यों मूर्ख कहे जाते हैं?

दादा जी ने समझाया, "बेटे, बैलों ने मेहनत तो खूब की, लेकिन अपनी समझदारी का इस्तेमाल नहीं किया। उन्होंने बिना सोचे-समझे बड़ा ढेर चुना, लेकिन वह उनके काम का नहीं था।"
तभी से मूर्खों को ‘बैल’ कहने का चलन शुरू हो गया।


मास्टर जी ने मोटू राम को 'बैल' क्यों कहा?

कहानी खत्म होते ही नवनीत ने कहा,
"अब मैं समझ गया, दादा जी। मास्टर जी ने मोटू राम को 'बैल' इसलिए कहा, क्योंकि वह बिना सोचे-समझे काम करता है।"
दादा जी मुस्कुराए और बोले, "सही कहा, बेटा! मेहनत के साथ-साथ समझदारी भी जरूरी है।"


कहानी से सीख 

यह कहानी हमें सिखाती है कि मेहनत करना जरूरी है, लेकिन बिना सोचे-समझे मेहनत करना मूर्खता है। सही सोच, सही निर्णय और मेहनत का मेल ही सफलता की कुंजी है। बैलों की इस कथा से हमें यह प्रेरणा मिलती है कि अपनी बुद्धिमानी का सही इस्तेमाल करें और बिना सोचे-समझे काम करने से बचें।

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