Motivational Story : महर्षि रमण और युवक की शंका

एक बार की बात है। महर्षि रमण (Maharshi Ramana) अपने आश्रम में शांत और ध्यानमग्न बैठे थे। वहाँ पर फूलों की खुशबू और पत्तों की सरसराहट के बीच अध्यात्म की गूंज थी।

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Motivational Story Doubt of Maharishi Raman and young man

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एक बार की बात है।
महर्षि रमण (Maharshi Ramana) अपने आश्रम में शांत और ध्यानमग्न बैठे थे। वहाँ पर फूलों की खुशबू और पत्तों की सरसराहट के बीच अध्यात्म की गूंज थी।

तभी एक युवक (young man) आश्रम में आया। उसके चेहरे पर चिंता की रेखाएं थीं। वह बेचैन और परेशान था। उसने धीरे से आकर महर्षि के चरणों में प्रणाम किया और मौन साध लिया।

कुछ देर बाद, उसने साहस बटोरकर कहा —

"स्वामीजी, मेरे मन में कई शंकाएँ (doubts) उठ रही हैं। जीवन, संसार और ईश्वर — सबकुछ अधूरा और असमंजस से भरा लगता है। क्या आप मेरी जिज्ञासाओं का समाधान करेंगे?"

महर्षि रमण ने शांत स्वर में उत्तर दिया —

"निश्चय ही। प्रश्न करो।"

युवक ने गहरी सांस ली और बोला —

"इस संसार में इतने दुःख, अन्याय और अनर्थ क्यों हैं? यदि ईश्वर है तो फिर ये सब क्यों?"

महर्षि ने मुस्कराते हुए कहा —

"यह प्रश्न भगवान से पूछो।"

"कैसे पूछूं?" युवक झुंझलाया।

"मैंने ईश्वर को देखा ही नहीं। उनके अस्तित्व पर भी मुझे संदेह है।"

महर्षि रमण ने सहजता से पूछा —

"तुम्हारे पास मस्तिष्क (mind) है?"
युवक ने तुरन्त कहा —
"हां, बिलकुल।"

"मगर वह दिखाई नहीं देता। क्या मैं मान लूं कि तुम्हारे पास मस्तिष्क नहीं है?"

युवक चौंक गया और कुछ क्षण चुप रहा।

महर्षि ने आगे कहा —

"जिस तरह मस्तिष्क, हवा, और प्रेम दिखाई नहीं देते पर उनका अस्तित्व तुम अनुभव करते हो, उसी प्रकार ईश्वर भी प्रत्यक्ष भले न दिखें, पर वह अनुभव किए जा सकते हैं।"

युवक अब गहराई से सोचने लगा। उसका चेहरा थोड़ा शांत हुआ। फिर भी उसने एक और सवाल किया —

"स्वामीजी, लेकिन जब ईश्वर का अस्तित्व है तो मैं उन्हें कैसे अनुभव करूं?"

महर्षि रमण ने गंभीरता से उत्तर दिया —

"ईश्वर को पाने का मार्ग बाहर नहीं, भीतर (within) है। जब तुम शांति से स्वयं के भीतर झाँकोगे, अपने मन और विचारों से परे जाओगे, तब ईश्वर की झलक अवश्य मिलेगी। वह अनुभव आत्मज्ञान (self-realization) से आता है, तर्क और वाद-विवाद से नहीं।"

युवक अब पूरी तरह शांत था। उसके मन का द्वंद्व समाप्त हो चुका था। वह श्रद्धा और नम्रता से बोला —

"स्वामीजी, आज आपसे मैंने जो सीखा, वह अमूल्य है। अब मैं स्वयं में झाँकने और परमात्मा को अनुभव करने का प्रयास करूंगा।"

महर्षि ने आशीर्वाद देते हुए कहा —

"जाओ, सच्चा ज्ञान खोजने का यही प्रथम कदम है। ईश्वर के पास जाने का रास्ता भीतर से ही गुजरता है।"

युवक प्रसन्नता और संतोष के साथ आश्रम से विदा हुआ।
आज उसे विश्वास हो गया था कि अदृश्य का अस्तित्व भी सजीव होता है


📌 सीख (Moral of the Story)

"जो दिखाई नहीं देता, वह भी होता है। ईश्वर, आत्मा और प्रेम को देखने की नहीं, अनुभव करने की आवश्यकता है।"
"ईश्वर की प्राप्ति बाहर नहीं, हमारे अपने भीतर से ही संभव है।"

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