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राम, कृष्ण और मोहन तीन भाई थे, जो एक छोटे से गाँव में रहते थे। इनकी आर्थिक हालत बहुत कमजोर थी, और वे दिन-रात एक फैक्ट्री में मेहनत-मशक्कत करते थे ताकि अपने परिवार का पेट पाल सकें। एक दिन, थकान से भरे ये भाई अपने गाँव के प्राचीन मंदिर में गए। उन्होंने भगवान से प्रार्थना की कि उनकी गरीबी दूर हो और वे अमीर बनें। अचानक, एक चमत्कार हुआ—भगवान की मधुर आवाज़ गूंजी। उन्होंने कहा, "हे मेरे भक्तों, तुम सभी सुनहरी नदी की ओर जाओ और वहाँ मंदिर के पवित्र गंगाजल की तीन बूँदें डालो। ऐसा करते ही नदी सोने में बदल जाएगी, और तुम अमीर हो जाओगे। लेकिन याद रखो, तुम्हें अकेले-अकेले जाना होगा। अगर पानी शुद्ध नहीं रहा, तो तुम पत्थर में बदल जाओगे।"
राम का सफर
अगले दिन राम ने मंदिर से गंगाजल का एक घड़ा लिया और सुनहरी नदी की ओर चल पड़ा। नदी बहुत दूर थी, और रास्ते में कोई सड़क नहीं थी, सिर्फ जंगल और पथरीले रास्ते थे। थोड़ी देर बाद उसे प्यास लगी, और उसने गंगाजल में से थोड़ा पानी पी लिया। तभी एक प्यासा कुत्ता दौड़ता हुआ आया और बोला, "रामू, मुझे बहुत प्यास लगी है। अगर तुम मुझे पानी नहीं दोगे, तो मैं मर जाऊंगा।" राम हंसा और बोला, "मुझे इससे कोई मतलब नहीं। सुनहरी नदी दूर है, और अगर मैं तुम्हें पानी दूंगा, तो मेरा घड़ा खाली हो जाएगा।" वह आगे बढ़ गया। अगले दिन एक गरीब बूढ़ा आदमी रोता हुआ आया और पानी माँगा, लेकिन राम ने उसे भी मना कर दिया। तीसरे दिन एक छोटा बच्चा सड़क पर प्यास से तड़प रहा था, पर राम का दिल नहीं पसीजा। आखिरकार नदी के पास पहुँचकर उसने घड़े से पानी डालने की कोशिश की। नदी ने कहा, "राम, तुमने गंदा पानी लाया है। तुमने प्यासों की मदद नहीं की, इसलिए तुम पत्थर बन जाओ।" राम की चीखें गूंजी, और वह पत्थर में बदल गया।
कृष्ण का प्रयास
राम की वापसी न होने पर कृष्ण और मोहन चिंतित हुए। कुछ दिनों तक इंतजार करने के बाद कृष्ण ने कहा, "मुझे लगता है राम को कुछ हो गया। मैं जाऊंगा।" वह भी गंगाजल लेकर निकला। रास्ते में उसे वही कुत्ता, बूढ़ा आदमी और बच्चा मिले। लेकिन उसने भी उनकी मदद नहीं की और खुद पानी पी लिया। नदी के पास पहुँचकर जब उसने पानी डाला, तो नदी ने कहा, "कृष्ण, तुम्हारा मन स्वार्थी है। तुम भी पत्थर बन जाओ।" और वह भी पत्थर का हो गया।
मोहन का नेक सफर
मोहन, जो सबसे छोटा और दयालु था, कुछ दिनों बाद निकला। उसने एक छोटा घड़ा लिया, क्योंकि वह कमजोर था। रास्ते में प्यास लगने पर कुत्ता आया और पानी माँगा। मोहन ने कहा, "लो, लेकिन ज्यादा मत पीना, मुझे नदी के लिए कुछ बूँदें चाहिए।" घड़ा आधा खाली हो गया। फिर बूढ़ा आदमी रोता हुआ आया, और मोहन ने उसे भी थोड़ा पानी दिया, कहते हुए, "दादाजी, सिर्फ तीन बूँदें मुझे चाहिए।" बूढ़े ने सारा पानी पी लिया, और घड़े में सिर्फ 20 बूँदें बचीं। अगले दिन बच्चा रो रहा था, और मोहन ने उसे भी पानी पिलाया, बिना गुस्सा किए। पानी खत्म हो गया। नदी के पास पहुँचकर वह उदास होकर बैठ गया और बोला, "मेरे पास गंगाजल नहीं है, लेकिन मैं फिर आऊंगा।" उसकी आँखों से तीन आँसू नदी में गिरे।
अचानक भगवान की आवाज़ आई, "मोहन, तुम बहुत नेक इंसान हो। तेरे आँसू, जो तेरे भाइयों के लिए और प्यासों की मदद के लिए हैं, असली गंगाजल से भी पवित्र हैं।" नदी सोने में बदल गई, और भगवान ने राम और कृष्ण को भी पत्थर से मुक्त कर दिया। उन्होंने मोहन से कहा, "तुम्हारी दया और ईमानदारी ने सब बदल दिया। अपने भाइयों को भी सिखाओ कि दूसरों की मदद करना ही असली धन है।"
तीनों भाई एक-दूसरे से गले मिले और अपने गाँव लौट आए। उन्होंने फैक्ट्री छोड़कर एक छोटा सा व्यवसाय शुरू किया और गरीबों की मदद के लिए सोना दान किया। उनके जीवन में खुशी और शांति लौट आई, और वे हमेशा दया और सच्चाई का पाठ सिखाते रहे।
सीख
यह कहानी हमें सिखाती है कि दया और ईमानदारी ही असली संपदा हैं। स्वार्थ छोड़कर दूसरों की मदद करने से भगवान की कृपा मिलती है, और यही जीवन को सार्थक बनाता है।