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यह प्रेरक बाल कहानी अर्जुन नाम के लड़के की है, जो विद्या का गलत उपयोग करता था लेकिन एक जादुई किताब और पंडित की सीख से सुधर जाता है। वह मेहनत और ईमानदारी से विद्या का उपयोग करता है और सफल होता है। कहानी में हिंदू धर्म के श्लोकों से विद्या का महत्व बताया गया है, जो बच्चों को नैतिकता और लगन सिखाती है।
विद्या का उचित उपयोग: एक प्रेरक बाल कहानी
एक छोटे से गाँव में, जहाँ हरे-भरे खेत और नीला आसमान मिलकर एक खूबसूरत नजारा बनाते थे, एक होशियार लड़का रहता था जिसका नाम था अर्जुन। अर्जुन पढ़ाई में बहुत तेज था। उसके पिता एक साधारण किसान थे, जो दिन-रात मेहनत करके परिवार चलाते थे। माँ घर संभालती और शाम को अर्जुन को पढ़ाती। गाँव के स्कूल में अर्जुन सबसे आगे रहता, और उसके गुरुजी हमेशा कहते, "अर्जुन, विद्या तुम्हारा सबसे बड़ा धन है। हिंदू धर्म में कहा गया है कि विद्या नाम नरस्य रूपमधिकं प्रच्छन्नगुप्तं धनं—विद्या मनुष्य का छिपा हुआ धन है, जो कभी खत्म नहीं होता।" अर्जुन मुस्कुराता और सोचता, "हाँ गुरुजी, लेकिन विद्या से क्या होगा? मैं तो इसका इस्तेमाल करके अमीर बनूँगा!"
एक दिन स्कूल में परीक्षा थी। अर्जुन ने रात भर पढ़ाई की, लेकिन उसके दोस्त रवि ने कहा, "अर्जुन, तू इतना तेज है, मुझे अपनी कॉपी दिखा देना।" अर्जुन ने सोचा, "क्यों नहीं? विद्या का उपयोग तो यही है, दोस्त की मदद करना।" परीक्षा में अर्जुन ने रवि को चुपके से उत्तर दिखाए, और दोनों अच्छे नंबर लाए। गुरुजी ने अर्जुन की तारीफ की, "अर्जुन, तुम्हारी विद्या कमाल की है!" लेकिन अर्जुन के मन में एक नई बात घर कर गई—विद्या से धोखा देना आसान है।
धीरे-धीरे अर्जुन की आदत बन गई। वह परीक्षाओं में नकल करता, दोस्तों को उत्तर बताता, और सोचता कि यह विद्या का उचित उपयोग है। उसके पिता ने एक दिन पूछा, "बेटा, तुम्हारी पढ़ाई कैसी चल रही है?" अर्जुन ने झूठ बोलकर कहा, "बहुत अच्छी, पापा। मैं तो सबसे आगे हूँ!" लेकिन माँ को शक हुआ। उन्होंने कहा, "अर्जुन, विद्या का महत्व सिर्फ किताबों में नहीं, बल्कि ईमानदारी में है। हिंदू शास्त्रों में कहा गया है कि विद्या भोगकरी यश:सुखकरी विद्या गुरूणां गुरु:—विद्या सुख और यश देती है, गुरुओं का गुरु है। लेकिन गलत उपयोग से सब बर्बाद हो जाता है।" अर्जुन ने अनसुना कर दिया।
फिर एक दिन गाँव में एक बड़ा मेला लगा। मेले में एक विद्वान पंडित आए, जो विद्या के महत्व पर प्रवचन देते थे। अर्जुन अपने दोस्तों के साथ मेला घूमने गया। वहाँ एक जादूगर था, जो कहता, "मैं विद्या से कुछ भी कर सकता हूँ!" अर्जुन ने चुनौती दी, "अंकल, अगर आप इतने विद्वान हैं, तो मुझे अमीर बना दो!" जादूगर हँसा और बोला, "विद्या अमीर बनाती है, लेकिन उचित उपयोग से। आओ, एक खेल खेलते हैं।"
जादूगर ने एक पहेली दी: "एक चीज जो कभी नहीं खत्म होती, लेकिन गलत रास्ते पर चलकर खो जाती है?" अर्जुन ने सोचा और गलत जवाब दिया, "धन!" जादूगर ने कहा, "नहीं, विद्या! अब देखो, मैं तुम्हें एक जादुई किताब देता हूँ। इसमें सब विद्या है, लेकिन इसका उपयोग सही करो, वरना नुकसान होगा।" अर्जुन खुश हो गया और किताब घर ले आया।
रात को अर्जुन ने किताब खोली। उसमें लिखा था, "विद्या का उचित उपयोग: मेहनत से सीखो, ईमानदारी से इस्तेमाल करो।" लेकिन अर्जुन ने सोचा, "यह तो बोरिंग है। मैं इससे अमीर बनने का तरीका ढूंढूँगा।" उसने किताब में से एक मंत्र पढ़ा, जो धन लाने का था, लेकिन गलत उच्चारण किया। सुबह उठा तो उसका घर खाली था—सारा सामान गायब! वह डर गया और रोते हुए पंडित के पास भागा।
पंडित ने कहा, "बेटा, तुमने विद्या का गलत उपयोग किया। हिंदू धर्म में विद्या को देवता माना जाता है, जो सुख देती है, लेकिन दुरुपयोग से दुख।" अर्जुन ने रोते हुए पूछा, "अब क्या करूँ?" पंडित ने बोला, "माफी माँगो और सही रास्ते पर चलो। विद्या विदेशगमने विद्या परं दैवतं—विद्या विदेश में दोस्त है, सर्वोच्च देवता है।" अर्जुन ने माफी माँगी और किताब से सही मंत्र पढ़ा। घर वापस सामान्य हो गया।
इस घटना से अर्जुन बदल गया। वह अब परीक्षाओं में ईमानदारी से पढ़ता, दोस्तों को सिखाता, और पिता की मदद करता। गाँव वाले कहते, "अर्जुन की विद्या अब सच्ची है!" एक दिन स्कूल में प्रतियोगिता हुई, अर्जुन ने जीतकर पुरस्कार लिया। पिता ने गले लगाया और बोला, "बेटा, विद्या का उचित उपयोग यही है—मेहनत से कमाओ, दूसरों को दो।" अर्जुन ने मुस्कुराकर कहा, "हाँ पापा, अब मैं समझ गया। विद्या का सदुपयोग से जीवन खुशहाल होता है।"
गाँव में अर्जुन की कहानी फैल गई। बच्चे उससे सीखते, और वह कहता, "विद्या दान महादान है, लेकिन उचित उपयोग से ही यह महान बनती है।" अर्जुन बड़ा होकर एक अच्छा अध्यापक बना, जो बच्चों को विद्या का सही महत्व सिखाता। उसके जीवन में कभी तंगी नहीं आई, क्योंकि भगवान सरस्वती और लक्ष्मी दोनों की कृपा उस पर बरसती रही।
अर्जुन के दोस्त रवि ने एक दिन कहा, "अर्जुन, तुम्हारी विद्या से हमें भी सीख मिली। अब हम भी मेहनत करेंगे।" अर्जुन ने हँसकर जवाब दिया, "हाँ, क्योंकि विद्या का उचित उपयोग सबको ऊपर उठाता है।" गाँव के बच्चे अब खेल के साथ पढ़ाई करते, और अर्जुन का घर ज्ञान का केंद्र बन गया। एक त्योहार पर अर्जुन ने गाँव में विद्या दान का आयोजन किया, जहां गरीब बच्चों को किताबें बाँटीं। पंडित जी आए और बोले, "अर्जुन, तुमने विद्या का सच्चा उपयोग किया। हिंदू शास्त्र कहते हैं—विद्या भोगकरी यश:सुखकरी—विद्या सुख और यश देती है।"
इस तरह अर्जुन की जिंदगी एक मिसाल बन गई। वह हमेशा याद करता कि गलत रास्ते पर विद्या खो जाती है, लेकिन सही उपयोग से यह अमर हो जाती है। गाँव में खुशहाली फैल गई, और अर्जुन के बच्चे भी उसी रास्ते पर चले। आज भी जब कोई बच्चा गलत उपयोग करता, तो अर्जुन उसे अपनी कहानी सुनाता और कहता, "विद्या का उचित उपयोग करो, तो जीवन स्वर्ग बन जाता है।"
सीख
इस मोटिवेशनल स्टोरी से बच्चों को यह सीख मिलती है कि विद्या का उचित उपयोग मेहनत, ईमानदारी और दूसरों की मदद से करना चाहिए। हिंदू धर्म में विद्या को छिपा धन माना जाता है, जो गलत रास्ते पर खो जाती है लेकिन सही उपयोग से यश और सुख देती है। विद्या दान महादान है, इसलिए इसे साझा करें और जीवन बेहतर बनाएँ।