रील्स का बढ़ता क्रेज: बच्चों और युवाओं पर खतरनाक असर

आजकल सड़कों, पार्कों, मॉल और मंदिरों में हर जगह आपको लोग रील्स बनाते दिख जाएंगे। लोग खुद तो रील्स बनाने में इतने डूब जाते हैं कि आसपास की प्राइवेसी या सहूलियत की परवाह भी नहीं करते।

By Lotpot
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Growing craze of reels Dangerous effect on children and youth
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आजकल सड़कों, पार्कों, मॉल और मंदिरों में हर जगह आपको लोग रील्स बनाते दिख जाएंगे। लोग खुद तो रील्स बनाने में इतने डूब जाते हैं कि आसपास की प्राइवेसी या सहूलियत की परवाह भी नहीं करते। 10 साल के बच्चों से लेकर 25 साल के युवाओं तक, सभी में यह क्रेज तेजी से बढ़ रहा है। खासकर, फेमस होने की चाह में लोग कुछ भी करने को तैयार हैं।

दुख की बात यह है कि रील्स बनाते वक्त कई लोग अपनी जान भी गंवा रहे हैं। हाल ही में एक बच्चे ने देसी कट्टा लेकर रील बनाई, लेकिन गोली लगने से उसकी मौत हो गई। एक लड़की रेलवे ट्रैक के पास रील बना रही थी, तभी ट्रेन की चपेट में आकर उसकी मौत हो गई। ऐसी घटनाएं लगातार सामने आ रही हैं, जिससे यह साफ होता है कि रील्स का क्रेज जानलेवा भी हो सकता है।

रील्स का बढ़ता क्रेज न सिर्फ जानलेवा है, बल्कि बच्चों और युवाओं के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर भी बुरा असर डाल रहा है। ज्यादा स्क्रीन टाइम के चलते बच्चों में मोटापा, नींद की कमी, आंखों की समस्याएं, और भाषा सीखने में देरी जैसी परेशानियां हो सकती हैं। इसके अलावा, बच्चों का सामाजिक संपर्क भी कम हो रहा है, जिससे उनके इमोशंस को समझने और व्यक्त करने की क्षमता प्रभावित हो रही है।

विशेषज्ञों का कहना है कि 16 साल से कम उम्र के बच्चों को स्मार्टफोन देना ही नहीं चाहिए। ऐसे बच्चों के लिए केवल कीपैड वाले फोन होने चाहिए, ताकि जब तक वे बड़े हों, वे जिम्मेदारी से मोबाइल का इस्तेमाल करना सीख लें।

बच्चों और युवाओं को चाहिए कि वे अपना समय रील्स बनाने या देखने में बर्बाद न करें। इसके बजाय, उन्हें इसे किसी सार्थक काम में लगाना चाहिए, जैसे कि नई स्किल्स सीखना, खेल-कूद में भाग लेना या पढ़ाई पर ध्यान देना। रील्स की लत से नकारात्मक सोच, डिप्रेशन और आत्मविश्वास की कमी जैसी समस्याएं हो सकती हैं। इसलिए जितनी जल्दी इस लत से बचा जाए, उतना ही बेहतर होगा।

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