पागी की कहानी आज भी गाई जाती है, जानिए उसकी ये रोचक वजह, गर्व करेंगे आप गुजरात के सुईगांव सीमा क्षेत्र की एक बॉर्डर का नाम "रणछोड़ दास पोस्ट" है। यह अजीब नाम क्यों रखा गया और ये किसका है, नहीं जानते? तो सुनो एक कहानी। गुजरात के बनासकांठा जिले के एक गांव पेथापुर गधड़ो में एक गरीब गडरिया रहता था, नाम था रणछोड़दास रबारी। उसका काम था भेड़ बकरी पालना और चराना। रणछोड़ अनपढ़ था, लेकिन उसका दिमाग किसी कंप्यूटर की तरह था, उसकी आंखें भी बड़ी तेज थी। By Lotpot 16 Dec 2020 | Updated On 16 Dec 2020 12:35 IST in Stories Lotpot Personality New Update पागी की कहानी : गुजरात के सुईगांव सीमा क्षेत्र की एक बॉर्डर का नाम "रणछोड़ दास पोस्ट" है। यह अजीब नाम क्यों रखा गया और ये किसका है, नहीं जानते? तो सुनो एक कहानी। गुजरात के बनासकांठा जिले के एक गांव पेथापुर गधड़ो में एक गरीब गडरिया रहता था, नाम था रणछोड़दास रबारी। उसका काम था भेड़ बकरी पालना और चराना। रणछोड़ अनपढ़ था, लेकिन उसका दिमाग किसी कंप्यूटर की तरह था, उसकी आंखें भी बड़ी तेज थी। चाहे इंसान हो या जानवर वह सबके पैरों के निशान देखकर बता सकता था कि उस इंसान या जानवर की उम्र कितनी थी, वजन कितना था, कितनी देर पहले रेत में उनके पैरों के निशान बने थे, कितनी दूर तक वह आगे बढ़ा था और कहां छुपा था। उसकी इस हुनर के कारण लोग उसे "पागी" कहकर पुकारते थे, पागी यानी पाँव के निशान पढ़ने वाला और इसी हुनर ने उसका जीवन तब बदल डाला जब वह 58 वर्ष का बूढ़ा हो चला था। हुआ यह कि 1965 में पाकिस्तान सेना ने भारत के गुजरात सीमा पर कब्जा कर लिया था। इस युद्ध में 100 भारतीय सैनिक शहीद हुए थे, तब दस हजार भारतीय सैनिकों की टुकड़ी को तुरंत उस सीमा पर पहुंचना जरूरी हो गया था। लेकिन रेगिस्तानी रास्तों का ज्ञान किसी को नहीं था। तब किसी ने सेना के फील्ड मार्शल सैम मानिकशॉ को बताया कि रणछोड़ दास पागी नाम का एक गडरिया रेगिस्तान के सारे रास्तों के बारे में जानता है। तब पहली बार भारतीय सेना ने पागी की मदद ली। पागी ने भारतीय सेना को बहुत कम समय में सीमा क्षेत्र वाले मंजिल तक पहुंचा दिया, साथ ही उन्होंने भारतीय सीमा में छिपे बारह सौ पाकिस्तानी सैनिकों के छिपने का ठिकाना और उनकी संख्या, सिर्फ उनके पैरों के निशान देखकर एकदम सही सही बता दिया था जिसकी वजह से भारतीय सेना ने वो युद्ध जीत ली थी। पागी के इस हुनर से बेहद खुश सेना फील्ड मार्शल सैम मानिकशॉ ने पागी को सेना में एक खास पद पर रख लिया। 1971 के युद्ध में भी पागी ने भारतीय सेना को बीहड़ों में रास्ता दिखाया, दुश्मनों के पाँव के निशान देखकर उनके छिपने के ठिकाने बताये और युद्ध स्थल पर गोला बारूद भी पहुँचाया था। पागी की वजह से ही पाली नगर पाकिस्तान में भारतीय झंडा लहरा पाया था। सैम साहब ने खुश होकर पागी को 300 Rs. भी दिए थे जो उन दिनों बहुत बड़ी रकम होती थी। सैम पागी से बहुत प्यार करते थे, उन्हें बहुत मानते भी थे। एक बार सैम जब ढाका में थे तो उन्हें पागी से मिलने की हुई। उन्होंने पागी को लिवाने के लिए हेलीकॉप्टर भेजा। सैम के आदमी पागी के घर पहुँचे और उन्हें सैम का निमंत्रण कहकर साथ चलने को कहा। पागी अपनी झोली, पोटली ले कर चले। हेलीकॉप्टर में रूटीन चेक अप के हिसाब से थैली को खोल कर देखा गया और जब अधिकारियों ने अंदर देखा तो हैरान रह गए, क्योंकि उसमें रखा था एक प्याज, दो मोटी मोटी रोटियाँ और बेसन की बनी सेवइयां जिसे वे लोग गाठिया कहते थे। अधिकारियों ने पागी से कहा कि ये सब लेकर चलने की जरूरत नहीं, सैम साहब ने कई पकवानें बनवाई है, लेकिन पागी नहीं माने और आखिर जब ढाका पहुँचकर पागी ने सैम के साथ खाना खाया तो डिनर पर प्याज के साथ एक रोटी सैम साहब ने खाई और दूसरी पागी ने। पागी को उनके जीवनकाल में तीन पुरस्कार भी मिले, संग्राम पदक, पुलिस पदक और समर सेवा पदक। सैम मानिक शॉ की मृत्यु 2008 में हुई लेकिन पागी 2009 तक सेना के उसी पद पर बने रहे। उस वक्त उनकी उम्र 108 वर्ष थी लेकिन फिर तबीयत बिगड़ने की वजह से उन्होंने रिटायरमेंट ले लिया। रणछोड़ दास रबारी उर्फ पागी का निधन 2013 में, 112 वर्ष की उम्र में हुई। आज भी गुजराती लोकगीतों में उनकी देशभक्ति, बहादुरी और त्याग की कहानी गाई जाती है। -सुलेना मजुमदार अरोरा और पढ़ें : भारतीय खेल मल्लखम्ब के बारे में रोचक बातें #India History #100 भारतीय सैनिक शहीद #पागी की कहानी #रणछोड़ दास पोस्ट You May Also like Read the Next Article