अच्छी बाल कविता : चुहिया की खरीदारी यह कविता चुहिया की खरीदारी के इर्द-गिर्द घूमती है, जो बाजार में जाकर अपने पसंदीदा सामान देखने की कोशिश करती है। जब उसे कीमत का पता चलता है, तो उसके सारे सपने चूर-चूर हो जाते हैं। By Lotpot 23 Oct 2024 in Poem New Update Listen to this article 0.75x 1x 1.5x 00:00 / 00:00 अच्छी बाल कविता- यह कविता चुहिया की खरीदारी के इर्द-गिर्द घूमती है, जो बाजार में जाकर अपने पसंदीदा सामान देखने की कोशिश करती है। जब उसे कीमत का पता चलता है, तो उसके सारे सपने चूर-चूर हो जाते हैं। कविता में यह दर्शाया गया है कि कभी-कभी हम जो चाह रखते हैं, उसकी वास्तविकता हमें निराश कर सकती है। लेकिन अंत में, चुहिया यह समझती है कि खुशी सिर्फ भौतिक चीजों में नहीं, बल्कि अपने दृष्टिकोण और सकारात्मक सोच में है। दस रुपये रख पर्स में,चुहिया चली बाज़ार।चीज़ें कई पसंद की,बिंदिया, काजल, हार। कीमत सुन चुहिया रानी के,हवा हो गये होश।तुरंत ठंडा पड़ गया,खरीदारी का जोश। चुहिया सोचने लगी,"यह क्या है माया?सपनों में जो देखी,वो अब हो गई साया।" बिंदिया की चमकती रौनक,काजल की काली गहराई।पर जब तक भरे जेब में,न हो कोई कमाई। वह बोली, "अरे मेरे भाग्य,क्या करूं मैं अब?दस रुपये में नहीं मिलेगा,जो चाहा था सब।" अंत में चुहिया ने कहा,"घर जाना ही ठीक रहेगा।दस रुपये में जो नहीं मिला,वो घर में ही मिलगा सब।" यहाँ पढ़ें और बाल कविता : बाल कविता : एक-एक कदम आगे बढ़ाओ कविता : आई पकौड़ी आई पकौड़ी बाल कविता : चंदा मामा की रात हमारा प्यारा शिक्षक #bachchon ki kavitayen #bachchon ki bal kavita #bachchon ki hindi kavita #bachchon ki hindi kavitayen You May Also like Read the Next Article