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कविता "घर का आँगन-दादी माँ" : हमारे जीवन में दादी माँ की अहमियत और उनके बिना घर की अधूरी तस्वीर को खूबसूरती से दर्शाती है। दादी माँ न केवल हमारे बचपन का सबसे खास हिस्सा होती हैं, बल्कि वह हमारे जीवन के संस्कारों और मूल्यों की जड़ भी होती हैं। अपने अनुभवों, प्यार, और त्याग से वह हमें जिंदगी की असली सीख देती हैं। उनका स्नेह और देखभाल घर को सही मायनों में एक मंदिर बनाते हैं।
कविता:
माँ से प्यारी दादी माँ,
घर की शान, हमारी दादी माँ।
नटखट बचपन की साथी,
हमारी हर जिद की खिलाड़ी दादी माँ।
गर्मी की दोपहरी में,
नीम की छाँव तले कहानी सुनाती दादी माँ।
राजा-रानी, परियों के किस्से,
अपने किस्सों से सुलाती दादी माँ।
मेला जाने की जब होती बात,
पर्स से पैसे निकालती दादी माँ।
गुड़-चूरन या खिलौने लाकर,
मन बहलाती दादी माँ।
मंदिर में जब घंटियां बजतीं,
भजन गुनगुनाती दादी माँ।
संस्कारों की पाठशाला बनकर,
हमारी नींव मजबूत बनाती दादी माँ।
जब भी कभी होता दुख भारी,
सीने से लगाकर सब भुलाती दादी माँ।
हर दर्द को अपनी झोली में भरकर,
हमें मुस्कुराना सिखाती दादी माँ।