हिंदी बाल कविता: बादल कितना जल बरसाता

यह कविता आसमान, बादल और प्राकृतिक रंगों की गहराई में एक यात्रा का वर्णन करती है। इसमें मेंढक, बादल, धूप, और इंद्रधनुष के माध्यम से जीवन की अद्वितीयता और सौंदर्य का समर्थन किया गया है।

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बादल कितना जल बरसाता

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बादल कितना जल बरसाता

आसमान पर बादल छाता,
फुदक-फुदक कर मेंढक आता।

सुन पुकार फिर मेंढक जी की,
बादल कितना जल बरसाता।

सूरज बादल में छिप जाता,
क्‍यों हमसे इतना शरमाता।

धूप नहीं द्वारे पर आती,
दिन में ही अंधियारा छाता।

बादल रिमझिम झड़ी लगाता,
पोखर फिर से है भर जाता।

कागज वाली नाव चलाने,
मुन्ना दौड़ा-दौड़ा आता।

दूर गगन पर सात रंग का,
इन्द्रधनुष मन हरने आता।

इतना बड़ा धनुष लेकर ये,
कौन लड़ाकू नभ पर जाता?

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