मन जीत लेगी मराठों के सरदार शिवाजी की ये कहानी मराठो के सरदार शिवाजी इतिहास में युग पुरूष के नाम से जाने जाते हैं। उन्हें किले जीतने और बनवाने का बड़ा शौक था। जीजी का किला और सामनगढ़ का किला जीत कर इन्होंने नये ढंग से इनका कायाकल्प किया। By Lotpot 15 Sep 2021 in Stories Moral Stories New Update मराठो के सरदार शिवाजी इतिहास में युग पुरूष के नाम से जाने जाते हैं। उन्हें किले जीतने और बनवाने का बड़ा शौक था। जीजी का किला और सामनगढ़ का किला जीत कर इन्होंने नये ढंग से इनका कायाकल्प किया। उन दिनों रामनगढ़ के किले का निर्माण कार्य चल रहा था। हजारों मजदूर कार्यरत थे। दिन का तीसरा पहर था अचानक शिवाजी किले का निरीक्षण करने आ गये। उनके संग अंगरक्षक के रूप में एक छोटी सी सैनिक टुकड़ी भी थी। मजदूरों ने शिवाजी के आगमन की बात सुनी तो जय जयकार करने लगे। अपने काम का महत्त्व समझकर शिवाजी फूले नहीं समाये। बहुसंख्यक श्रमिक को कार्य करते हुए देख वह अपने मन में सोचने लगे कि इतने सारे लोग मेरे ही कारण तो खा रहे हैं। यदि मैं इन्हें काम से निकाल दूं तो भूखे मर जायेंगे। भला इतने लोगों का पेट दूसरा कौन चला पायेगा ये कहाँ से खायेंगें? शिवाजी के मन में अंहकार समा गया। वे बिना किसी कारण मजदूरों को डांटते फटकारते रहते। बेचारे गरीब मजदूर आँसू पीकर रह जाते। उड़ते उड़ते यह खबर समर्थ गुरू रामदास के पास ही पहुँची। वह शिवाजी के गुरू थे। गुरू चिंतित हो उठे। यह शिवा तो उन्नति की पहली सीढ़ी ही तोड़ रहा है अंहकार तो समूल विनाश का कारण होता है। शिवाजी को सही मार्ग पर लानेे वह उसी दिन सामनगढ़ के लिए चल पड़े। शिवाजी ने गुरू के पांव छुए और आने का कारण पूछने लगे। गुरू रामदास मुस्कुराये और बोले शिवा! मैंने सुना है कि तुम किला बनवा रहे हो सो देखने चला आया कहीं कोई अड़चन तो नहीं आयी हैं। नहीं गुरूदेव, सब कुशल है। आप मेरे साथ किले के अंदर चलें दिखाता हूँ कि निर्माण कार्य कितने जोरों पर है। रामदास फिर मुस्कुराये और शिष्य को साथ हो लिये। दोनों देर तक इधर से उधर घूमते रहे फिर एक ऐसे स्थान पर आ गये जहाँ एक विशाल पत्थर अड़ा था। गुरू रामदास बोले यह पत्थर यहां बीच में कैसे आ पड़ा, इसे हटवा देना चाहिये, बड़ा भद्दा दिखता है। अभी हटवा देता हूँ शिवाजी ने कहा और तुरन्त सैंकड़ों मजदूर लगवा दिये। पत्थर बड़ा विशाल था। उसे छेनी से काट काट कर अलग किया जाने लगा। अचानक पत्थर दो भागों में विभाजित हो गया और बीच की धरती दिखाई पड़ने लगी। वहाँ एक गहरा गड्ढा था जिसमें लबालब पानी भरा था सभी आश्चर्य से उस गड्ढे को देखने लगे। गड्ढे के जल में कितने ही मेंढक फुदक रहे थे। गुरू रामदास को मौका मिल गया। उन्होंने व्यंग्य से कहा शिवा। तुम्हारे शासन व्यवस्था का भी क्या कहना, देखो तो इस दुर्गम पत्थर के भीतर के गड्ढे में भी पानी भरवा कर तुमने मेंढकों के पालन पोषण का इंतजाम करा रखा है, मैं तुम्हारे शासन की दाद देता हूँ। शिवाजी व्यंग्य समझ गये। भला ईश्वर के सामने आदमी की क्या हस्ती। वह तो सिर्फ साधक मात्र होता है। राजा को प्रजा का सेवक होना चाहिए, शोषक नहीं। उन्होंने गुरू से क्षमा मांगी और अहंकार करना भूल गये। अहंकार भूलकर काम करने से शिवाजी की खूब उन्नति हुई, उन्होंने तंजौर के किले पर भी अपना अधिकार जमाया और जीजी के किले का भी निमार्ण किया। शिवाजी की मृत्यु 1680 ई. में हुई। बाल कहानी : जाॅनी और परी बाल कहानी : मूर्खता की सजा लोटपोट जंगल कहानी : अपनेपन की छाँव Like us : Facebook Page #Bacchon Ki Kahani #Lotpot Magazine #Bal kahani #Best Hindi Stories #Sardar Shivaji #मराठों के सरदार You May Also like Read the Next Article