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बाल कहानी : (Lotpot Hindi Kids Stories) अक्ल बड़ी या भैंस- कभी कभी कुछ ऐसी घटनाएँ और कहानी हमारे जीवन में घटती हैं कि अचानक ही मुुंह से कोई उक्ति या मुहावरा निकल पड़ता है। और सच ही वह एक उक्ति संपूर्ण घटना के अर्थ को अपने में समेंट लेती है। हुआ यूँ कि सुनील के घर एक नया नौकर था। बात बात पर बेवकूफी दर्शाता था। प्लेट मंगाओं तोे स्लेट उठा लाता था।
यदि चाय मंगवाओं तो काॅफी ले आता। मतलब यह कि हर काम उल्टा। सब समझते कि वह जान बूझकर ऐसा कार्य करता है। परन्तु वास्तव में उसकी बुद्धि ही उतनी थी। उसके सोचने समझने का दायरा अत्यंत सीमित था। यह किस्सा तो इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है। जुलाई का महीना आ पहुँचा था। गर्मी अपने पूरे वेग के साथ पड़ रही थी। ग्रीष्म ज्वाला से पृथ्वी धधक रही थी।
ऐसी ज्वाला से लोग तो लोग चीजें भी जलती सी प्रतीत हो रही थीं। मेज-कुर्सी को हाथ लगाओ तो लगता मानों तवा जल रहा हो।
सुनील के पिताजी बाहर किसी काम से गए हुए थे। उनका नौकर उल्लू प्रसाद या लक्ष्मी प्रसाद वल्द गंगाधरतेली ने तो हद कर डाली। लक्ष्मी की यह ड्यूटी थी कि वह गाड़ी के रेडियेटर में नियम से पानी डाल दिया करे। उस दिन छुट्टी थी अतः वह पानी डालना भूल गया। सुनील पिताजी घूम कर वापस आ गए। कोई बारह एक का समय रहा होगा।
लक्ष्मी सुबह का काम निपटा कर लंबी तानकर सोया हुआ था। जब वह उठा तो देखा गाड़ी खड़ी हुई है। उसे यह न पता लगा कि गाड़ी अभी आई है।
उसने अपने कर्तव्य की इतिश्री करने के लिए गाड़ी को खोला। एक तो गर्मी और ऊपर से गाड़ी काफी लम्बा सफर तय करके आई थी। काफी गर्म हो रही थी। लक्ष्मी ने आव देखा न ताव और पानी डालना शुरू कर दिया। गर्म हुई गाड़ी पर पानी डालने से पानी भाप बनकर एकदम उछल पड़ा सौभाग्यवश वह पानी उसके ऊपर नहीं पड़ा और वह साफ बच गया।
जब पानी भाप बन उछला तो लक्ष्मी ने सोचा कि गाड़ी को भी मेरी तरह गर्मी लग रही है। उसने गाड़ी को तीन चार बाल्टियों से नहला दिया। इसके बाद वह फिर सो गया। बेचारी गाड़ी उसके इंजन में पानी चला गया। सब लोगों को पिक्चर देखने जाना था। पिक्चर शुरू होने में आधा घंटा शेष रह गया था। सब जल्दी जल्दी गाड़ी में बैठे और चलने.... अरे ये क्या? बहुत कोशिश करने पर भी गाड़ी न चली।
गाड़ी स्टार्ट ही न हो। सुनील, डैडी और मम्मी ने उतरकर गाड़ी को धक्का भी लगाया परन्तु गाड़ी तब भी न स्टार्ट हुई। तभी सुनील को लक्ष्मी का ध्यान आया। वह लक्ष्मी को बुलाने गया।
लक्ष्मी प्रसाद जी बरामदे में घोड़े बेचकर सो रहे थे। सुनील ने आव देखा न ताव और झिझोड़कर लक्ष्मी को उठा दिया। लक्ष्मी आँख मलता हुआ उठा और पूछने लगा। क्या हुआ छोटे साहब, आपने हमें जगा क्यों डाला?
सुनील ने अप्रत्यक्ष रूप से लक्ष्मी से पूछा। लक्ष्मी क्या तुमने आज गाड़ी साफ की थी लक्ष्मी ने तनकर कहा। हाँ साहब साफ भी की और बेचारी को गर्मी लग रही थी। मैंने तो उसे ठण्डा करने के लिए तीन चार बाल्टी पानी भी उड़ेल डाले। यह सुनकर सुनील और उसके डैडी ने माथा पीट लिया गाड़ी के इंजन में पानी चला गया था। इसी कारण उसने चलने से इंकार कर दिया।
तब डैडी जाकर मैकेनिक को बुलाकर लाए। आधे घंटे का फेर पड़ गया और सौ रूपये का झटका अलग लगा। तभी तो कहते हैं कि बेवकूफ दोेस्त की अपेक्षा अक्लमंद दुश्मन कहीं अधिक अच्छा है। लक्ष्मी प्रसाद जी इसी तरह का नमूना हैं। इसीलिए सब किस्सा सुनने के बाद यह अवश्य महसूस होगा कि ‘अक्ल बड़ी या भैंस?’ लक्ष्मी को देखकर तो भैंस ही बड़ी लगेगी। सच्चाई तो यह है कि अक्ल ही बड़ी होती है।