बाल कहानी : मेहनत की रोटी का रहस्य :- ‘रामनगर में असामाजिक तत्वों के क्रियाकलाप बढ़ रहे थे। चोरी, डकैती व अपहरण की घटनाएं लगातार हो रही थी। लोग परेशान थे। रामनगर के राजा के पास तक इसकी सूचना काफी देर में पहुँची। तुरन्त पुलिस उसकी हरकत में आ गई। असामाजिक तत्वों का मुखिया रमेश था, वह ज्यादा साहसी तो न था पर होंशियार था पर हर समय सर्तक रहता था। जैसे ही उसे पता चला कि बात राजा के पास पहुँच गई है और पुलिस उसकी तलाश में है वह तुरन्त अपने प्रमुख साथियों के साथ घने जंगल में भाग गया, साथ में सोना, चाँदी व नकद धन भी ले गया। जंगल में शहर जैसा आराम न था, खानें पीने का समान शहर से ही मँगाना पड़ता था तथा जंगल मे भी हर दो चार-दिन में रहने की जगह बंदलनी पड़ती थी, क्योकि पुलिस से पकड़े जाने का डर था।
रामनगर में उसके कुछ साथी पकड़े जा चुके थे और असलियत राजा के सामने आ गई थी। राजा ने पुलिस के प्रमुख को आदेश दिया था कि रमेश और उसके साथियों को पकड़ कर दरबार मे हाजिर किया जाए, इसलिए जंगल को भी चारों तरफ से घेर लिया-गया था। एक दिन रमेश और उसके साथी खाना खा रहे थे, पुलिस के आने की सूचना मिली, वे सब खाना व अपना पूरा सामान वहीं छोड़कर जान बचाने के लिए भागें, जिसको जिधर रास्ता मिला, वह उधर भाग लिया, रमेश भी अपने साथियों से अलग हो गया, रमेश बेहताशा छिपता भागा जा रहा था, बहुत थक जाने से एक सरोवर के किनारे बैठ गया। पास ही एक छोटी सी कुटिया दिखाई दी, रमेश वहाँ गया तो उसने देखा कि एक सन्त साधनारत है, वह कुटिया के बाहर बैठ गया कुछ देर ये संत जी साधना से उठे तो रमेश को देखकर बोला, बेटा इस घने जंगल में तुम कैसे?’’
रमेश ने अपना सही परिचय नहीं दिया अपना नाम व शहर गलत बता दिया। बहुत भूख लगी थी इसलिए फल खा तो गया पर जंगल में फल खाते-खाते उसका जी भर गया था कई दिनों से अन्न के दर्शन नहीं हुए थे।
कुछ देर बाद संत जी ने कहा मै संत जरूर हूँ, मै अभी जंगल से सूखे फल और कुछ जड़ी बूटियाँ इकट्ठी करूंगा, उन्हें पास के कस्बे राजगढ़ में बेचने जाऊंगा और लौटते समय आटा और नमक खरीद लाऊंगा, तुम चाहो तो तुम भी मेरे’साथ चलकर यह काम कर सकते हों। रमेश ने कुछ देर सोचा क्योंकि पकड़े जाने का डर था पर
राजगढ़ दूसरी रियासत मे था, वहाँ जाने में कोई खतरा न था इसलिए संतजी के साथ चल दिया। दिनभर काम करने के पश्चात शाम को संत जी के साथ वापस आया और नमक डालकर रोटियाँ बनाई, जब रोटी खाने लगा तो रोटी मीठी लग रही थी। उससे रहा नहीं गया उसने कहा आज रोटी का स्वाद जितना अच्छा लग रहा है उतना अच्छा कभी नही लगा। समझ नहीं आया क्या बात है? संत जी नें तुरंत कहा यह मेहनत की रोटी हमेशा मीठी होती है, मुझे लगता है तुमने पहली बार मेहनत की रोटी खाई है।
रमेश बहुत शर्मिन्दा हुआ, उसने संतजी को सब कुछ बता दिया तथा अपने पुराने कामों को- हमेशा के लिए छोड देने की प्रतीज्ञा की। संत जी ने कहा बहुत अच्छी तरह सोच लो, मेहनत से मीठी रोटी खाने के लिए दृढ़ निश्चय जरूरी है! और लोभ लालच हमेशा आदमी को सच्चे रास्ते से डिगाने का प्रयास करते है। रमेश ने कहा मैं अब कभी पिछले रास्ते पर नही लौटंूगा, भले ही मुझे भूखा क्यों न रहना पड़े।
रमेश संत जी को प्रणाम कर राजगढ़ की ओर चल दिया, संतजी के सम्पर्क से उसके जीवन को नई दिशा मिली। अब वह मेहनत-मंजदूरी कर पेट भरने लगा।