जासूसी बाल कहानी : राकेश की तरकीब

Detective children's story: इस्पेक्टर हंसराज जैसे ही पुलिस स्टेशन पर पहुँचे तो उन्हें फोन आया कि जौहरी बाजार में सेठ हीरालाल की हत्या हो गई। सूचना मिलते ही पुलिस इंस्पेक्टर अपने दलबल के साथ वारदात वाले स्थान पर पहुँच गए। किन्तु हत्यारों ने इतनी सफाई और चालाकी के साथ सेठजी की हत्या की कि उन्होंने वहाँ अपना कोई सुराग नहीं छोड़ा। अपने साथ वे लाखों रूपयों के हीरे जवाहरात भी ले गए।

By Lotpot
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Detective children's story Rakesh's trick

Detective children's story: इस्पेक्टर हंसराज जैसे ही पुलिस स्टेशन पर पहुँचे तो उन्हें फोन आया कि जौहरी बाजार में सेठ हीरालाल की हत्या हो गई।

सूचना मिलते ही पुलिस इंस्पेक्टर अपने दलबल के साथ वारदात वाले स्थान पर पहुँच गए। किन्तु हत्यारों ने इतनी सफाई और चालाकी के साथ सेठजी की हत्या की कि उन्होंने वहाँ अपना कोई सुराग नहीं छोड़ा। अपने साथ वे लाखों रूपयों के हीरे जवाहरात भी ले गए।

तत्काल ही हत्यारों को पकड़ने के लिए खोजी कुत्तों को लाया गया, फिर भी उन्हें सफलता नहीं मिली, क्योंकि खोजी कुत्ते थोड़ी दूर आगे चलकर रूक गए।

तब पूरे शहर की नाकाबंदी कर दी गई ताकि हत्यारे नगर की सीमा बाहर भागने में सफल न हो सके। किन्तु संध्या तक वे पकड़ में न आ सके। वे नगर के भीतर ही किसी गुप्त स्थान पर छिप गए थे।

इंस्पेक्टर हंसराज चिंतित हो उठे। इन हत्यारों का तत्काल पकड़ा जाना अति आवश्यक था, क्योंकि एक सप्ताह के भीतर यह चैथी हत्या थी।

इन हत्याओं के पीछे कोई बड़ा गिरोह काम कर रहा था। पुलिस विभाग के बड़े अधिकारी इस बात से नाराज थे, क्योंकि इन हत्याओं के कारण शहर में आतंक-सा फैल गया था।

किसी आवश्यक काम से इंस्पेक्टर का बड़ा पुत्र राकेश पुलिस स्टेशन पर पहुँचा तो अपने पिता को सोच में डूबा देखकर वह घबरा गया। जब उसने सिपाही रामसिंह से इसका कारण पूछा तो उसने उस हत्यारे के गिरफ्तार न होने की समस्या बता दी।

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राकेश अपना आवश्यक काम तो भूल ही गया और वह भी पिता की तरह इसी उधेड़बुन में उलझ गया कि हत्यारे किसी भी तरह पकड़े जाने चाहिए।

अचानक उसके मस्तिष्क में एक तरकीब सूझी। उसने तुरंत ही अपने पिता को वह तरकीब बताई।

उसे सुनकर वे उससे संतुष्ट तो नहीं हुए। फिर भी उन्होंने सोचा कि क्या पता भाग्यवश या मामूली तरकीब सफल हो जाए क्योंकि कई बार बड़े बड़े अपराधी भी बौखलाहट में बड़ी गलती कर बैठते हैं।

इंस्पैक्टर ने उच्चाधिकारियों से अनुमति लेकर अखबारों में यह समाचार छपने के लिए दे दिया कि सेठ हीरालाल के मुंशी मांगीलाल पुलिस अधिकारियों को एक दो दिन में हत्यारों के संबध में सबूतों सहित पूरी जानकारी देंगे। इससे उन्हें पकड़ने में बड़ी सहायता मिलेगी।

अखबारों में यह समाचार छपते ही हत्यारों में खलबली मच गई। वे सोचने लगे कि उन्होंने तो ऐसा कोई सबूत नहीं छोड़ा था तो फिर यह मुंशी कौन से सबूत पेश करेगा। वे सभी घबरा गए। उनके सामने बड़ा संकट पैदा हो गया। गिरोह के सरदार ने तुरंत आदेश दिया इस मुंशी मांगीलाल को तत्काल ही गिरोह के लोगों ने मुंशी जी के घर का पता लगाकर, उसके मकान को चारों ओर से घेर लिया। उसके घर का दरवाजा खुला हुआ ही था। अतःचार हत्यारे बेधड़क भीतर घुस गए। कुछ समय बीत जाने के बाद भी जब वे बाहर नहीं निकले तो अन्य तीन बदमाश भीतर घुसे। वे भी जब वापस नहीं लौंटे तो बाहर खड़े दो हत्यारे आश्चर्यचकित हो गए। उन्होंने जैसे ही आगे कदम बढ़ाया तो पेड़ पौधों के पीछे छिपे हुए सिपाहियों ने उन्हें दबोच लिया। उसी समय ही मुंशी जी के घर के भीतर गए हत्यारों के हाथों में हथकड़ियाँ थी और वे सिपाहियों से घिरे हुए थे।

सच बात तो यह थी कि मंुशी जी को हत्यारों के बारे में कोई भी जानकारी नहीं थी। राकेश को विश्वास था कि जब हत्यारों को यह पता चलेगा कि मंुशी उनके बारे में बताने जा रहे हैं। तो वे अवश्य ही उसे पकड़ने या जान से मारने की कोशिश करेंगे।

अतः रात को ही पुलिस ने मुुंशी जी को सुरक्षित स्थान पर पहुँचाकर, घर में बंदूकद्यारी सिपाहियों को बिठा दिया था। यही नहीं, सुबह होने से पहले ही घर से कुछ ही दूरी पर झाड़ियों के पीछे सिपाही तैनात कर दिए गए थे। और जैसे ही हत्यारे वहाँ पहुँचे तो उन्हें धर दबोच लिया गया।

राकेश की तरकीब बड़े काम की साबित हुई। राकेश से ज्यादा उसके पिता को खुशी हुई। पुलिस का भी नाम हो गया कि उन्होंने कुख्यात हत्यारों को रंगे हाथों पकड़ भी लिया।

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