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छप्पर फाड़ के- आपने बड़ों को अक्सर कहते सुना होगा—"भगवान जब भी देता है, Chappar Phaad Ke (छप्पर फाड़ के) देता है।" इसका मतलब है कि अचानक बहुत सारा धन मिल जाना। लेकिन अगर कोई बच्चा इस मुहावरे को सच मान ले और दिन भर छत की तरफ देखता रहे, तो क्या होगा? आइए पढ़ते हैं गोलू की यह चटपटी कहानी।
कहानी: गोलू और बंदरों की दावत (The Story)
रामपुर गांव में एक लड़का रहता था—गोलू। गोलू थोड़ा आलसी था और खाने का बहुत शौकीन था। उसे लगता था कि मेहनत करना बेकार है, बस भगवान से मांगो और काम हो जाएगा।
गर्मियों के दिन थे। गोलू के घर के पीछे एक पुराना गोदाम था, जिसकी छत (छप्पर) घास-फूस और बांस की बनी थी। वह बहुत पुरानी और कमजोर हो चुकी थी। गोलू उसी गोदाम में खटिया डालकर लेटा हुआ था। उसे बहुत ज़ोरों की भूख लगी थी, लेकिन उठकर खाना लेने जाने का उसका मन नहीं था।
गोलू की अजीब प्रार्थना (The Weird Prayer)
गोलू लेटे-लेटे बड़बड़ाया, "हे भगवान! इतनी गर्मी है, उठने का मन नहीं है। काश, कहीं से ढेर सारे रसीले आम मिल जाएं। लोग कहते हैं कि तू जब भी देता है, छप्पर फाड़ के देता है। तो प्लीज, आज मेरे लिए भी छप्पर फाड़ दे और आम बरसा दे!"
गोलू को लगा कि वह तो बस ख्याली पुलाव पका रहा है। लेकिन उसे नहीं पता था कि गोदाम की छत के ऊपर असलियत में क्या चल रहा है।
छत के ऊपर का लॉजिक (The Logic Above)
दरअसल, गोदाम के ठीक बगल में एक बड़ा सा आम का पेड़ था। उस दिन बंदरों की एक पूरी टोली वहां आई हुई थी। बंदरों ने खूब सारे आम तोड़े थे, लेकिन पेड़ पर जगह कम होने की वजह से वे कूदकर गोदाम की उस पुरानी छत (छप्पर) पर जा बैठे।
वहां करीब 10-12 मोटे-मोटे बंदर थे और उनके हाथों में ढेर सारे भारी आम थे।
तर्क (Logic) साफ़ था—छप्पर पुराना था, बांस सड़े हुए थे और ऊपर से एक दर्जन बंदरों का वजन!
जब मुहावरा सच हुआ (Literal Disaster)
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नीचे गोलू हाथ जोड़कर आंखें बंद किए बोल रहा था—"दे दे बाबा... छप्पर फाड़ के दे दे!"
और तभी... कड़क! चर्रर्र! धड़ाम!
भगवान ने सुनी या नहीं, पता नहीं, लेकिन गुरुत्वाकर्षण (Gravity) ने अपना काम कर दिया। छत का बांस टूटा और घास-फूस के साथ चार मोटे बंदर और कम से कम 50 कच्चे-पक्के आम सीधे नीचे गिरे!
कहां?
बिल्कुल गोलू की खटिया के ऊपर!
गोलू चिल्लाया—"अरे बाप रे! बचाओ! भूत आया!"
धूल का गुबार उड़ गया। गोलू के पेट पर एक बंदर बैठा था, उसके सिर पर एक पक्का आम फूटा हुआ था, और पूरे बिस्तर पर आम ही आम बिखरे थे।
लेने के देने पड़ गए (The Aftermath)
बंदर भी डर गए। वे "खीं-खीं" करते हुए गोलू के ऊपर से कूदकर भागे। जाते-जाते एक बंदर गोलू का चश्मा भी ले गया।
गोलू की माँ आवाज़ सुनकर दौड़कर आईं। उन्होंने देखा कि गोलू फटे हुए छप्पर के नीचे आमों के बीच दबा पड़ा है और उसका चेहरा पीले आम के रस से सना हुआ है।
माँ ने हंसते हुए कहा, "बेटा, तू ही तो कल कह रहा था कि भगवान छप्पर फाड़ के दे। देख, मिल गए ना इतने सारे आम! अब खा ले बैठकर।"
गोलू अपना सिर सहलाते हुए बोला, "माँ, मैंने सिर्फ आम मांगे थे, साथ में ये बंदर और छत की मरम्मत का खर्चा नहीं मांगा था! मुझे नहीं चाहिए ऐसा छप्पर फाड़ के खजाना। इससे तो अच्छा था मैं खुद पेड़ पर चढ़ जाता।"
उस दिन गोलू को समझ आ गया कि मुहावरों को सीरियसली नहीं लेना चाहिए और बैठे-बिठाए मिली चीज़ अक्सर सिरदर्दी ही लाती है।
कहानी से सीख (Moral of the Story)
"बिना मेहनत के अगर कुछ मिलता भी है, तो वह अपने साथ मुसीबत लाता है। अपनी मेहनत की कमाई का स्वाद, बैठे-बिठाए मिले खजाने (या आम) से कहीं ज्यादा मीठा होता है।"
अगर आप यह जानना चाहते हैं कि बंदर और इंसान एक-दूसरे से कितने मिलते-जुलते हैं, तो यहाँ पढ़ें:
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