खेल-खेल में सब बराबर: गोपाल कृष्ण की एक मज़ेदार कहानी

ब्रज में गोपाल कृष्ण अपने ग्वाल मित्रों के साथ खेल रहे थे। खेल के नियम के अनुसार, सभी को बारी-बारी से दाँव देना था। एक दिन गोपाल ने दाँव देने से मना कर दिया, जिससे खेल रुक गया।

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Everyone equal in sports A funny story of Gopal Krishna

A funny story of Gopal Krishna

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खेल-खेल में सब बराबर: गोपाल कृष्ण की एक मज़ेदार कहानी- ब्रज में गोपाल कृष्ण अपने ग्वाल मित्रों के साथ खेल रहे थे। खेल के नियम के अनुसार, सभी को बारी-बारी से दाँव देना था। एक दिन गोपाल ने दाँव देने से मना कर दिया, जिससे खेल रुक गया। उनके दोस्त श्री दामा ने समझाया कि खेल में सब बराबर होते हैं, और किसी को विशेषाधिकार नहीं मिलना चाहिए। गोपाल ने मुस्कुराकर बताया कि उन्होंने यह सबक सिखाने के लिए ऐसा किया। अंत में, गोपाल ने दाँव दिया, और सभी ने फिर से मज़े से खेला। यह कहानी खेल में बराबरी का महत्व सिखाती है। (Summary of Khel Khel Mein Sab Barabar, Moral Story in Hindi)

कहानी: गोपाल कृष्ण और उनके दोस्त (The Story of Gopal Krishna and His Friends)

ब्रज की हरी-भरी वादियों में एक बार भगवान गोपाल कृष्ण अपने ग्वाल-बाल मित्रों के साथ खेल रहे थे। वहाँ हर दिन की तरह मस्ती का माहौल था। जंगल के बीच में एक बड़ा-सा मैदान था, जहाँ ये दोस्त धूप में हँसते-खेलते थे। उनके खेल का एक खास नियम था—हर किसी को बारी-बारी से दाँव देना पड़ता था। चाहे कोई जीते या हारे, सभी इस नियम को खुशी-खुशी मानते थे, क्योंकि खेल में सब बराबर होते हैं। खेल का असली मज़ा तभी आता है, जब हर कोई खुले दिल से उसमें हिस्सा ले और नियमों का पालन करे।

उस दिन भी खेल जोरों पर था। गोपाल कृष्ण, श्री दामा, सुदामा और बाकी ग्वाले एक मजेदार खेल खेल रहे थे। खेल में हर बार की तरह सभी अपनी बारी का इंतज़ार कर रहे थे। लेकिन जब गोपाल कृष्ण की बारी आई, तो अचानक कुछ अनोखा हुआ। गोपाल ने दाँव देने से साफ मना कर दिया। वह बोले, "आज मेरा मन नहीं है, मैं दाँव नहीं दूँगा!" यह सुनकर सभी ग्वाले हैरान हो गए।

सभी ने सोचा, "क्या हो गया गोपाल को? वे तो हमेशा खेल के नियम मानते हैं!" खेल अचानक रुक गया। सारे ग्वाले चुप होकर एक-दूसरे को देखने लगे। तभी श्री दामा, जो गोपाल का सबसे अच्छा दोस्त था, आगे आया। उसने गंभीर स्वर में कहा, "गोपाल, यह ठीक नहीं है। खेल में सब बराबर होते हैं। यहाँ कोई बड़ा-छोटा नहीं होता। हर किसी को अपनी बारी पर दाँव देना पड़ता है। तुम ऐसा कैसे कर सकते हो?"

गोपाल ने श्री दामा की बात सुनी, लेकिन वे बस मुस्कुराए और चुप रहे। वे दाँव देने को तैयार ही नहीं हुए। श्री दामा को गुस्सा आ गया। उसने थोड़ा सख्त लहजे में कहा, "गोपाल, तुम शायद इसलिए दाँव नहीं देना चाहते क्योंकि तुम्हारे पास ज़्यादा गायें हैं। तुम सोचते हो कि तुम सबसे अमीर हो, इसलिए तुम्हें नियम तोड़ने का हक है। लेकिन खेल में ऐसा नहीं चलता! यहाँ सबको नियम मानने पड़ते हैं, चाहे कोई कितना भी समृद्ध क्यों न हो।"

श्री दामा की बात सुनकर गोपाल फिर से मुस्कुराए। लेकिन इस बार उन्होंने कुछ जवाब दिया। वे बोले, "श्री दामा, तुम सही कहते हो। मैंने आज यह सब तुम्हें एक सबक सिखाने के लिए किया। मैं जानता हूँ कि खेल में सभी बराबर होते हैं। मैंने दाँव न देकर तुम्हें यह दिखाना चाहा कि अगर कोई नियम तोड़ता है, तो खेल का मज़ा खराब हो जाता है।"

गोपाल की बात सुनकर श्री दामा और बाकी ग्वाले शांत हो गए। उन्हें अपनी गलती का अहसास हुआ। श्री दामा ने मुस्कुराते हुए कहा, "गोपाल, तुमने हमें बहुत अच्छा सबक सिखाया। सच में, खेल में बराबरी ही सबसे ज़रूरी है। अब चलो, फिर से खेल शुरू करते हैं!"

सभी ग्वाले फिर से हँसने-खेलने लगे। गोपाल ने भी अपनी बारी पर दाँव दिया, और उस दिन का खेल पहले से भी ज़्यादा मज़ेदार हो गया। सूरज ढलने तक वे सब हँसते-खेलते रहे। ब्रज की वादियों में फिर से खुशियों की गूँज सुनाई देने लगी। गोपाल ने अपने दोस्तों को यह समझा दिया कि खेल में बराबरी और नियमों का पालन करना कितना ज़रूरी है। (Gopal Krishna Story for Kids, Importance of Fair Play)

खेल खत्म होने के बाद, सारे ग्वाले एक पेड़ की छाँव में बैठ गए। वहाँ पास में एक छोटी-सी नदी बह रही थी, जिसके किनारे रंग-बिरंगे फूल खिले थे। सुदामा ने एक फूल तोड़ा और गोपाल को देते हुए कहा, "गोपाल, तुमने आज हमें बहुत अच्छी बात सिखाई। मैंने भी एक बार अपने छोटे भाई से खेल में धोखा किया था। मुझे लगा था कि जीतने का मज़ा सबसे बड़ा होता है, लेकिन आज समझ आया कि असली मज़ा तो दोस्तों के साथ मिलकर खेलने में है।"

गोपाल ने हँसते हुए कहा, "सुदामा, खेल में जीत-हार मायने नहीं रखती। मायने रखता है कि हम सब साथ में कितना मज़ा करते हैं। अगर हम एक-दूसरे से ऊँच-नीच की भावना रखेंगे, तो खेल का मज़ा खत्म हो जाएगा।"

श्री दामा ने भी अपनी बात रखी, "हाँ गोपाल, तुमने सही कहा। मैंने भी एक बार अपने गाँव में एक खेल में हिस्सा लिया था। वहाँ कुछ लोग अमीर थे, और वे सोचते थे कि वे हमसे बेहतर हैं। लेकिन जब हमने सब मिलकर खेला, तो हमें समझ आया कि खेल में कोई बड़ा-छोटा नहीं होता।"

उस दिन सारे ग्वाले आपस में खूब बातें करते रहे। उन्होंने तय किया कि वे हमेशा खेल में बराबरी रखेंगे और कभी भी किसी से जलन या ऊँच-नीच की भावना नहीं रखेंगे। सूरज ढल गया, और वे सब अपने घरों की ओर चल दिए। गोपाल ने अपने दोस्तों को एक बार फिर हँसाते हुए कहा, "कल फिर से खेलेंगे, और इस बार मैं हार जाऊँगा, ताकि तुम सब जीत का मज़ा लो!" सभी ग्वाले हँसते-हँसते अपने घर चले गए। (Lessons from Gopal Krishna, Unity in Games)

सीख (Moral of the Story)

इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि खेल में बराबरी सबसे ज़रूरी है। हमें कभी भी अमीर-गरीब या ऊँच-नीच की भावना नहीं रखनी चाहिए। खेल का असली मज़ा तभी आता है, जब सभी खुले दिल से हिस्सा लें और नियमों का पालन करें। गोपाल कृष्ण ने अपने दोस्तों को सिखाया कि एकता और बराबरी से ही खेल में खुशी मिलती है। हमें भी अपने दोस्तों के साथ खेलते समय हमेशा निष्पक्ष रहना चाहिए और सबको बराबर का मौका देना चाहिए। (Lesson on Equality in Games, Importance of Fairness)

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