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यह कहानी रमेश और उसके बेटे के जीवन की है, जहाँ एक पिता की गलत आदतें उसके बच्चे पर असर डालती हैं। लेकिन समय रहते रमेश अपनी भूल को समझता है और अपने बेटे को सही राह दिखाता है। यह एक प्रेरक कहानी है जो बताती है कि माहौल और परवरिश का असर बच्चों पर पड़ता है।
एक छोटे से शहर में रमेश नाम का एक शख्स रहता था, जिसका सुखी और प्यारा परिवार था। रमेश अपनी पत्नी और एक नन्हे-मुन्ने बच्चे के साथ सादगी और खुशी से जीवन बिता रहा था। उसकी पत्नी और बच्चा उसकी हर बात को बड़े प्यार से सुनते थे, और घर में हमेशा हंसी-खुशी का माहौल रहता था। लेकिन रमेश का एक अनोखा स्वभाव था—वह लोगों को चतुराई से प्रभावित करने और कभी-कभी उन्हें गुमराह करने में माहिर था। वह अक्सर सोचा करता था कि उसकी ये चालाकी उसके बच्चे के लिए प्रेरणा बनेगी, और उसका बेटा भी बड़ा होकर एक समझदार और चतुर इंसान बनेगा।
समय की रफ्तार इतनी तेज थी कि रमेश को इसका अहसास भी नहीं हुआ। एक दिन उसका बेटा स्कूल जाने लायक हो गया। रमेश को अपनी परवरिश पर गर्व था। वह दृढ़ता से कहता, "मेरा बेटा इतना होशियार है कि कोई उसे बेवकूफ नहीं बना सकता। चाहे कोई शरारती बच्चा हो या फिर कोई होनहार, मेरा लाल सबको मात देगा!"
लेकिन एक दिन स्कूल के शिक्षक रमेश के पास एक शिकायत लेकर आए। उन्होंने बताया, "रमेश जी, आपके बेटे ने किसी सहपाठी की पेंसिल चुराई है।" यह सुनते ही रमेश का दिमाग अतीत की यादों में खो गया, मानो कोई पुरानी फिल्म चल रही हो। उसे अपने बचपन की बातें याद आने लगीं।
रमेश को याद आया कि जब वह दूसरी कक्षा में था, तो वह अपने दोस्तों की चीजें चुराया करता था—कभी पेंसिल, कभी रबर—और फिर उन्हें लौटाते समय कहता, "अरे, ये तो नल के पास पड़ी थी!" या "यह बाहर गिरी मिली।" उसकी इस चालाकी की वजह से उसे कक्षा का 'खोया-पाया' विभाग प्रमुख बना दिया गया था। वह रोज़ कई बच्चों के सामान चुराता और फिर उन्हें ढूंढने का ढोंग करता। उसकी ये कहानियाँ वह अपने बेटे को बड़े गर्व से सुनाया करता था, मानो यह कोई उपलब्धि हो।
अब उसका बेटा भी दूसरी कक्षा में था और वही शरारत दोहरा रहा था। रमेश सोच में पड़ गया, "क्या मैंने गलत मिसाल पेश की? 42 साल बीत गए, और लगता है मैं आज भी वही शरारती बच्चा हूँ।" वह अपने बेटे की ओर प्यार भरी नजरों से देखा और बोला, "बेटा, सुनो, मैंने सोचा था कि मेरी चालाकी तुम्हें सिखाएगी, लेकिन शायद मैंने गलत सिखाया।"
बेटे ने मासूमियत से पूछा, "पापा, क्या गलत हुआ?" रमेश ने मुस्कुराते हुए कहा, "बेटा, 'खोया-पाया' विभाग तो मेरे पास था, लेकिन मैंने कभी नहीं सोचा कि मैंने क्या खोया और क्या पाया। अब तुम्हें सही रास्ता दिखाना मेरा फर्ज है।" उसने बेटे को गले लगाया और कहा, "आज से हम दोनों मिलकर अच्छे काम करेंगे, ठीक है?" बेटे ने हामी भरी, "हाँ पापा, मैं अपनी गलती सुधार लूँगा।"
रमेश ने फैसला किया कि वह अपने व्यवहार को बदलेगा। उसने स्कूल में बच्चों को नैतिकता की कक्षा शुरू करने का सुझाव दिया और खुद वहाँ पढ़ाने लगा। धीरे-धीरे उसका बेटा भी बदलने लगा। वह अब दूसरों की मदद करने लगा और अपनी चोरी की आदत छोड़ दी। रमेश की पत्नी ने भी इस बदलाव की तारीफ की और कहा, "रमेश, तुमने सही समय पर अपनी गलती सुधारी। अब हमारा परिवार एक मिसाल बनेगा।"
सीख
इस बेस्ट हिंदी स्टोरी से हमें यह सीख मिलती है कि माता-पिता का व्यवहार बच्चों के लिए सबसे बड़ी मिसाल होती है। एक motivational story के रूप में यह हमें सिखाती है कि गलतियों को समय रहते सुधार लेना ही असली जीत है। सच्चाई और अच्छे संस्कारों से ही जीवन सार्थक होता है।
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