राजकुमारी और डाकू पिता: एक अनोखी कहानी जो आपको रुला देगी

यह प्रेरणादायक कहानी आपको बताएगी कि कैसे एक डाकू की बेटी राजकुमारी बनी और अपने पिता को सही राह पर लाई। यह कहानी सच्चे प्यार, कर्मों की पहचान और रिश्तों के महत्व पर एक सुंदर सीख देती है।

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राजकुमारी और डाकू पिता: एक अनोखी कहानी

ताजपुर राज्य की रियासत में राजा राजसिंह और रानी देविका का राज था। राजा अपनी प्रजा के लिए एक सच्चे पिता की तरह थे, और उनकी रानी, अपनी दयालुता के लिए पूरे राज्य में प्रसिद्ध थीं। मगर, इस खुशहाल साम्राज्य में एक खालीपन था – राजा-रानी के पास कोई संतान नहीं थी। इस दुख ने उनके राजसी जीवन को भी फीका कर दिया था। लोग अक्सर फुसफुसाते थे, "इतने भले लोगों की गोद सूनी है, भगवान जाने क्यों?" राजा ने अपना ध्यान शिकार और जनसेवा में लगाया, लेकिन रानी का मन अक्सर उदास रहता था।

एक दिन की बात है। राजा राजसिंह अपने कुछ सबसे भरोसेमंद सिपाहियों के साथ जंगल में शिकार के लिए गए। जंगल के घने रास्ते में राजा अपने साथियों से बिछड़ गए। वह अकेला आगे बढ़ता गया। तभी, उसे एक बच्ची के रोने की करुण आवाज सुनाई दी। आवाज का पीछा करते हुए राजा एक चट्टान के पीछे पहुँचे, जहाँ का दृश्य देखकर उनका खून खौल उठा। दो खूंखार डाकू एक नवजात बच्ची को मारने की तैयारी कर रहे थे।

राजा ने तुरंत अपनी तलवार निकाल कर उन्हें ललकारा। "अरे! तुम अधर्मियों की हिम्मत कैसे हुई एक मासूम पर हाथ उठाने की?"

डाकू हँसे। "अरे, कौन आ गया? राजा की शिकारगाह में अब यह भिखारी कौन है?"

राजा का गुस्सा सातवें आसमान पर था। उन्होंने पलक झपकते ही दोनों डाकुओं को धराशायी कर दिया। बच्ची सुरक्षित थी। राजा ने उसे अपनी बाहों में उठाया। बच्ची का रोना थम गया और वह राजा के सीने से लग गई। "अरी! यह तो राजकुमारी है," राजा ने सोचते हुए कहा। उसके बाईं ओर के कंधे पर गुलाब का एक छोटा-सा गोदना (टैटू) बना हुआ था। राजा ने उस नन्ही जान को अपनी छाती से लगा लिया और अपने सिपाहियों के साथ महल की ओर लौट चले।

महल में रानी ने जब उस बच्ची को देखा, तो उनकी आँखों में खुशी के आँसू आ गए। "लगता है भगवान ने हमारी प्रार्थना सुन ली," रानी बोलीं। उन्होंने बच्ची को प्यार से 'भागवती' नाम दिया।

समय पंखों पर उड़ता गया। भागवती राजा-रानी की लाडली बनकर बड़ी हुई। राजा ने उसे राजकुमारों की तरह पाला। उसने केवल शिक्षा ही नहीं ली, बल्कि वह तलवारबाजी, घुड़सवारी और तीरंदाजी में भी निपुण हो गई। जब वह युवा हुई, तो उसकी बुद्धिमत्ता, साहस और सादगी ने उसे प्रजा के बीच और भी प्रिय बना दिया। वह हर किसी से मिलती, उनकी बातें सुनती और उनकी समस्याओं को सुलझाती।

मगर, यह शांति ज़्यादा दिन नहीं रही। एक खूंखार डाकू, जिसका नाम 'आरा' था, उसने पूरे राज्य में आतंक मचा दिया था। वह इतना चालाक था कि कोई उसे पकड़ नहीं पाता था। वह हमेशा भेष बदलकर आता और लूट-पाट करके गायब हो जाता। राजा और सेनापति के सभी प्रयास विफल हो गए थे।

एक दिन, दरबार में सभी चिंतित बैठे थे। तभी भागवती ने साहसपूर्वक कहा, "पिताश्री, यदि आप आज्ञा दें तो मैं इस डाकू को पकड़ने का प्रयास करना चाहती हूँ।"

राजा ने चिंता से कहा, "भागवती, यह खेल नहीं है। वह बहुत खतरनाक है। हम सब हार चुके हैं।"

"पिताश्री, डर मुझे भी लगता है, पर यह मेरी प्रजा का सवाल है। मुझे बस आपकी अनुमति चाहिए," भागवती ने विनम्रता से कहा।

राजा ने भारी मन से अनुमति दे दी। भागवती ने अगले ही पल अपनी जाँच शुरू कर दी। उसने लोगों से मिलकर डाकू की कहानियाँ सुनीं। एक बात जो उसे बार-बार सुनने को मिली, वह यह थी कि आरा डाकू किसी भी जवान लड़की का कत्ल नहीं करता था, और जाने से पहले उनके कंधे की जाँच करता था। यह सुनकर भागवती को बहुत अजीब लगा, लेकिन इसी से उसे एक योजना सूझी।

उसने महल में घोषणा करवाई कि पुराने जंगल वाले महल में एक भव्य 'गौरी पूजा' का आयोजन होगा, जिसमें केवल राज्य की कुँवारी लड़कियाँ भाग लेंगी। यह खबर तुरंत जंगल में आग की तरह फैल गई। भागवती को विश्वास था कि डाकू ज़रूर आएगा।

आधी रात के बाद, भागवती ने एक आहट सुनी। उसने कुछ साहसी लड़कियों के साथ डाकू को घेरा और उसे पकड़ लिया। उसे तुरंत दरबार में लाया गया।

राजा राजसिंह ने डाकू से पूछा, "आखिर क्यों करता है तू यह सब? और लड़कियों के कंधे क्यों देखता है?"

आरा डाकू ने सिर झुकाकर रोते हुए अपनी कहानी सुनाई। "हुज़ूर! मैं जन्म से डाकू नहीं हूँ। मेरी नवजात बेटी को 18 साल पहले कुछ डाकू उठा ले गए थे। उसके बाईं ओर के कंधे पर गुलाब का एक गोदना था। मैं हर उस घर में जाता, जहाँ एक जवान लड़की हो, और यह उम्मीद करता कि शायद मेरी बेटी जिंदा हो।"

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अचानक, राजा के चेहरे का रंग उड़ गया। उन्होंने अपनी आँखों में आँसू लिए भागवती के कंधे को देखा, फिर आरा डाकू की ओर मुड़े। "आरा, तुम्हारी बेटी ज़िंदा है," राजा ने कहा। "जिस बच्ची को 18 साल पहले दो डाकू मारने की कोशिश कर रहे थे, उसे मैंने बचाया था।"

भागवती की आँखों में आँसू भर आए। वह समझ नहीं पा रही थी कि यह सब सच है या सपना। एक पल के लिए उसने सोचा कि वह एक डाकू की बेटी है, लेकिन अगले ही पल उसे याद आया कि राजा और रानी ने उसे कितना प्यार दिया था। वह दौड़कर राजा के गले लग गई और रोते हुए बोली, "आप मेरे पिता हैं, और आप हमेशा रहेंगे।"

राजा ने आरा डाकू की ओर देखते हुए कहा, "आरा, तुम अपनी बेटी को पहचान ही नहीं पाए। उसने तुम्हें पकड़ा है। तुम अब गलत राह छोड़ दो।"

आरा डाकू अपने किए पर बहुत शर्मिंदा हुआ। "हुज़ूर, मेरी बेटी ने मुझे सही रास्ता दिखा दिया है। मैं आज से ये सब छोड़ता हूँ।"

राजा राजसिंह ने आरा को महल के पास वाले मंदिर का मुख्य पुजारी बना दिया। वह अपने पुराने पापों का प्रायश्चित करने लगा और भागवती के साहस की कहानी पूरे राज्य में गूँजने लगी।

कहानी का सार:

यह कहानी हमें सिखाती है कि खून के रिश्ते से ज़्यादा, दिल के रिश्ते मायने रखते हैं। राजा और रानी ने भागवती को अपनाकर यह साबित कर दिया कि प्रेम और दया का रिश्ता सबसे बड़ा होता है। यह भी सिखाती है कि सच्ची पहचान हमारे कर्मों से होती है, न कि हमारे जन्म से।

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