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खुशी की असली कीमत
प्यारे बच्चों, क्या आप हमेशा खुश रहना चाहते हैं? हर कोई चाहता है! पर क्या खुशी कोई ऐसी चीज़ है जिसे बाज़ार से खरीदा जा सकता है या किसी को इनाम में दिया जा सकता है?
यह कहानी विजयनगर के महाराज कृष्णदेव राय के दरबार की है, जहाँ एक लालची पंडित ने खुशी को खरीदने की कोशिश की, और तेनाली राम ने अपनी चतुराई से उसे ऐसा मज़ा चखाया कि उसके दाँत खट्टे हो गए!
पंडित की मूर्खतापूर्ण शर्त
महाराज कृष्णदेव राय का दरबार लगा हुआ था। दरबार में एक नया पंडित आया, जिसका नाम था 'ज्ञानसागर'। ज्ञानसागर बहुत अमीर था, पर कभी खुश नहीं रहता था।
एक दिन, ज्ञानसागर ने महाराज से एक अजीबोगरीब सवाल किया:
ज्ञानसागर पंडित: "महाराज, मैं हमेशा दुखी रहता हूँ। मैं आपको सोने के सिक्कों से भरी 100 थैलियाँ दूँगा, अगर आप मुझे यह बता दें कि हमेशा खुश कैसे रहा जा सकता है!"
महाराज और सारे दरबारी यह सुनकर हँसने लगे। भला खुशी को पैसों से कैसे खरीदा जा सकता है? तभी तेनाली राम खड़े हुए और 50 सोने की थैलियों में पंडित को 'खुशी का महामंत्र' बेचने के लिए तैयार हो गए। पंडित ने 50 थैलियाँ दीं और तेनाली राम ने उसे एक कागज़ पर तीन लाइनें लिखकर दीं:
"पेट खाली तो सब खुशहाली।"
"बिना काम, आराम हराम।"
"दूसरों को देखकर कभी मत जलना।"
शिकायत और तेनाली राम का सटीक वार
अगले दिन जब दरबार लगा, तो ज्ञानसागर पंडित रोते हुए वापस आया।
ज्ञानसागर पंडित: "तेनाली राम धोखेबाज़ हैं! यह कैसा खुशी का मंत्र है? मैंने इनका पालन किया, तो मेरा हाल बुरा हो गया!"
उसने रोते हुए अपनी कहानी सुनाई:
ज्ञानसागर पंडित: "मैंने पहली लाइन 'पेट खाली तो सब खुशहाली' का पालन किया। मैंने खाना बंद कर दिया और मैं भूख से पागल हो गया! मुझे चक्कर आने लगे!"
ज्ञानसागर पंडित: "दूसरी लाइन थी 'बिना काम, आराम हराम'। मैंने सोचा कि अब मैं कोई काम नहीं करूँगा, बस आराम करूँगा। तो मुझे हर जगह चोर और डाकू नज़र आने लगे, जिन्हें पकड़ने के लिए काम करना पड़ा!"
पूरा दरबार अपनी हँसी नहीं रोक पाया।
तब तेनाली राम ने पंडित की तरफ देखा और मुस्कुराते हुए पूछा:
तेनाली राम: "पंडित जी, आपने पहली दो बातें तो मान लीं और आपको कष्ट भी हुआ, लेकिन आपने अपनी तीसरी लाइन 'दूसरों को देखकर कभी मत जलना' के बारे में कुछ नहीं बताया। क्या आपने उसका ईमानदारी से पालन किया?"
तेनाली राम: "मुझे लगता है कि आप भूख और काम से ज़्यादा इस बात से दुखी हैं कि मैंने आपसे 50 सोने की थैलियाँ ले लीं और अब मैं आपसे ज़्यादा खुश हूँ! आपकी ईर्ष्या ही आपको सोने नहीं दे रही है!"
यह सुनकर ज्ञानसागर पंडित की आँखें झुक गईं। वह सचमुच तेनाली राम की चतुराई और उनकी लोकप्रियता से जल रहा था। वह यह बात दरबार में स्वीकार नहीं कर सकता था, इसलिए उसने जानबूझकर उस लाइन का ज़िक्र नहीं किया था!
तेनाली राम का तार्किक जवाब
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तेनाली राम ने अब अपनी बात पूरी की:
तेनाली राम: "महाराज, यह पंडित मूर्ख है। यह तीनों लाइनें सच्ची खुशी का आधार हैं। इसका अर्थ है: संतुलित आहार (पेट हल्का रखना), मेहनत (बिना काम के आराम हराम है), और संतोष (दूसरों से न जलना)। जो व्यक्ति ईर्ष्या करता है, वह कभी खुश नहीं रह सकता। और यही पंडित जी की सबसे बड़ी समस्या है।"
ज्ञानसागर पंडित को अपनी मूर्खता और लालच का एहसास हुआ। उसने समझा कि खुशी कोई मंत्र या वस्तु नहीं है, यह अच्छी जीवनशैली और संतोष में छिपी है। उसने तेनाली राम का धन वापस नहीं लिया और एक नया, खुशहाल जीवन जीना शुरू किया।
सीख (Moral of the Story)
यह कहानी हमें सिखाती है कि सच्ची खुशी हमारे अंदर है, किसी बाहरी चीज़ में नहीं। हमेशा खुश रहने के लिए हमें संतुलित जीवन जीना चाहिए—यानी ज़रूरत से ज़्यादा खाना नहीं, मेहनत से जी चुराना नहीं, और कभी किसी से ईर्ष्या नहीं करना। जो व्यक्ति इन तीनों बातों का ध्यान रखता है, वह हमेशा खुश रह सकता है।
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