घड़ी का चलन: कब, कैसे और कहाँ शुरू हुआ?

आज हम सबके जीवन में घड़ी (Clock) बहुत ज़रूरी है। सुबह स्कूल जाने से लेकर रात को सोने तक हर काम समय पर करने के लिए हम घड़ी देखते हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है

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आज हम सबके जीवन में घड़ी (Clock) बहुत ज़रूरी है। सुबह स्कूल जाने से लेकर रात को सोने तक हर काम समय पर करने के लिए हम घड़ी देखते हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि घड़ी का चलन आखिर कब और कैसे शुरू हुआ? आइए बच्चों, इस मजेदार सफर को समझते हैं।


सबसे पहली घड़ियाँ – पानी और धूप से समय मापना

हजारों साल पहले जब लोगों के पास आज जैसी घड़ी नहीं थी, तब वे सूरज और पानी की मदद से समय मापते थे।

  • सूर्य घड़ी (Sundial): मिस्र (Egypt) और यूनान (Greece) में लोग ज़मीन पर डंडा गाड़कर उसकी छाया देखकर समय बताते थे। इसे सूर्य घड़ी कहा जाता था।

  • जल घड़ी (Water Clock): भारत, चीन और मिस्र में पानी की धार या बर्तन से पानी टपकने के आधार पर समय का अनुमान लगाया जाता था।


यांत्रिक घड़ियों की शुरुआत

लगभग 14वीं शताब्दी (1300 ईस्वी के आसपास) में यूरोप में यांत्रिक घड़ियाँ (Mechanical Clocks) बनने लगीं। इनमें गियर और लटकन (Pendulum) का इस्तेमाल होता था। ये घड़ियाँ बड़े टावरों या चर्चों में लगाई जाती थीं ताकि पूरा शहर समय देख सके।


कलाई घड़ी का जन्म

  • 16वीं शताब्दी में छोटी घड़ियाँ बननी शुरू हुईं जिन्हें लोग जेब में रखते थे, इन्हें पॉकेट वॉच कहा जाता था।

  • 1868 में स्विट्ज़रलैंड की कंपनी Patek Philippe ने पहली बार महिलाओं के लिए कलाई घड़ी बनाई।

  • 20वीं शताब्दी में कलाई घड़ी (Wrist Watch) पुरुषों और बच्चों के बीच भी लोकप्रिय हो गई।


आधुनिक घड़ियाँ

आज हमारे पास सिर्फ़ सुई वाली घड़ी नहीं, बल्कि डिजिटल घड़ियाँ और स्मार्टवॉच भी हैं। ये न केवल समय बताती हैं बल्कि कदम गिनती हैं, दिल की धड़कन मापती हैं और इंटरनेट से भी जुड़ सकती हैं।


निष्कर्ष

घड़ी का इतिहास हमें बताता है कि समय मापना इंसानों के लिए हमेशा ज़रूरी रहा है। धूप और पानी से लेकर स्मार्टवॉच तक, घड़ी ने एक लंबा सफर तय किया है।

बच्चों, अब जब भी आप घड़ी देखें, तो याद रखिए कि यह सिर्फ़ समय बताने वाली चीज़ नहीं, बल्कि इंसान की बुद्धि और मेहनत का नतीजा है।

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