जंगल कहानी : जंगल में स्कूल

सुन्दर बन्दर के वन की जनसंख्या बहुत कम थी, सुन्दर बन्दर अपने पिता के साथ उसी वन में रहता था। उसकी बन्दरिया माँ उसको बचपन में ही छोड़ गई थी। सुन्दर बन्दर को बचपन से ही पढ़ने का बड़ा शौक था। उसने अपने पिता से ज़िद करके जंगल से दूर एक स्कूल में दाखिला ले लिया था

By Ghanshyam
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Jungle Story: School in the jungle

जंगल कहानी (Hindi Jungle Story) जंगल में स्कूल : सुन्दर बन्दर के वन की जनसंख्या बहुत कम थी, सुन्दर बन्दर अपने पिता के साथ उसी वन में रहता था। उसकी बन्दरिया माँ उसको बचपन में ही छोड़ गई थी।

सुन्दर बन्दर को बचपन से ही पढ़ने का बड़ा शौक था। उसने अपने पिता से ज़िद करके जंगल से दूर एक स्कूल में दाखिला ले लिया था क्योंकि उसका जंगल छोटा था। वहाँ कोई स्कूल नहीं था। इसलिए उसे कई किलोमीटर पैदल जाना पड़ता था। लेकिन वह था बड़ा ही परिश्रमी। उसके जंगल में अन्य जानवरों के बच्चे दिन भर खेलते कूदते रहते। वह पढ़ने लिखने में कोई रूचि नहीं लेता था।

दरअसल उस जंगल का राजा शमशेर सिंह पढ़ाई का सख्त विरोधी था। उसी के कारण तो उस गांव में कोई स्कूल नहीं खुल पा रहा था

सुन्दर बन्दर को अन्य जानवरों के बच्चों को पढ़ाने का बहुत शौक था। उसकी नकल करके दो तीन मित्र जानवर उसके पास पढ़ने आ जाते थे। वह स्कूल में जो भी पढ़ता उन्हें आकर बताता, अपनी किताबें भी उन्हें पढ़ने को देता। धीरे धीरे उसके पास आने वाले जानवरों की संख्या बढ़ती ही गई।

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जब जंगल के राजा शमशेर सिंह को इसका पता चला तो वह बहुत क्रोधित हुआ।

उसने सुन्दर बन्दर के पिता को बुलवाया और उसे डाँटतें हुए बोला, तुम अच्छी तरह जानते हो कि हमारे जंगल में आज तक कोई भी स्कूल में पढ़ने नहीं गया। हमारे बाप दादा तक ने तो पढ़ा नहीं। लेकिन तुम्हारे लड़के की इतनी हिम्मत की उसने जंगल में स्कूल खोल रखा है। उससे कह दो कि वह यह सब बन्द कर दे। क्योंकि वह जो चाहता है, वह मैं हरगिज़ नहीं होने दूँगा। यदि वह नहीं मानेगा तो मजबूर होकर मुझे तुम लोगों को जंगल छोड़ देने को कहना पड़ेगा।

घर लौट कर सुन्दर बन्दर के पिता ने उसे बहुत समझाया। स्कूल जाने से मना किया और पढ़ाई छोड़ देने को कहा। लेकिन सुन्दर बन्दर ने दृढ़ता से कहा, पिताजी शमशेर सिंह जिस रोशनी को फैलने से रोकने की कोशिश कर रहें हैं। वह तो उनके घर तक पहुँच चुकी है। अब तो उनका बेटा शेर सिंह भी पढ़ने लगा है।

शमशेर सिंह को जब इस बात का पता चला कि उनका बेटा भी पढ़ने लगा है तो वो बहुत क्रोधित हुआ। उसने सुन्दर बन्दर और उसके पिता को जंगल से बाहर निकलवा दिया। उसने सोचा कि न रहेगा बाँस न बजेगी बाँसुरीं।

सुन्दर के चले जाने के बाद उसके मित्र चिन्तित हो गये। पर वे करते भी क्या। सभी राजा शमशेर सिंह से डरते थे सो सभी चुप थे। लेकिन सुन्दर बन्दर को विश्वास था कि शिक्षा की जो ज्योति उसने जंगल में जलाई थी। उसका प्रकाश एक दिन जंगल को अवश्य ही प्रकाशित करेगा और एक न एक दिन शमशेर सिंह को भी शिक्षा का महत्त्व समझ में आ जाएगा।

कुछ दिनों के बाद, एक दिन जब राजा शमशेर सिंह कहीं से अपने घर लौटा तो उसने देखा कि उसका बेटा शेर सिंह कोई किताब पढ़ रहा था शमशेर सिंह को देखते ही भय से उसने किताब छुपा ली।

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लेकिन शमशेर सिंह ने उसे किताब छिपाते देख लिया था उसके माँगने पर शेर सिंह ने वह किताब उसे दे दी। लेकिन उसे पढ़ना तो आता नहीं था। उसने अपने बेटे से कहा, इसमें क्या लिखा है, पढ़कर मुझे सुनाओ। यह सुनकर शेर सिंह प्रसन्न हो गया। उसने पढ़ना शुरू किया। शिक्षा पाना सभी का धर्म है। शिक्षा और ज्ञान के बिना ज़िन्दगी अधूरी होती है। बिना ज्ञान के श्रेष्ठता नहीं मिलती। इसके बाद शेर सिंह ने और भी अच्छी बातें पढ़कर सुनाई।

किताब में लिखी बातों का शमशेर सिंह पर गहरा प्रभाव हुआ। वह बोला, बेटे इसमें तो बहुत बातें अच्छी-अच्छी लिखी हैं। इसकी जानकारी तो सभी को होनी चाहिए। मेरी आँखों पर परदा पड़ा हुआ था। जो मैंने शिक्षा के महत्त्व को नहीं समझा। मैंने सुन्दर बन्दर को जंगल से निकाल कर बड़ी भूल की।

अब शमशेर सिंह के कदम सुन्दर बन्दर के घर की तरफ बढ़ाए जो कि जंगल से बाहर रहता था। सुन्दर बन्दर शमशेर को आता देखकर आश्चर्य में पड़ गया।

शमशेर सिंह ने उसे गले लगाया और बोला, मुझे क्षमा कर दो बेटा, मैं अंधकार में भटक रहा था। तुमने मुझे रोशनी दिखा दी है। अब जंगल में वापस चलो और सबको शिक्षित करो।

शमशेर सिंह के नेत्र सजल हो उठे और सुन्दर बन्दर खुशी से फूला नहीं समा रहा था।

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