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चिंता रूपी दीमक – बहुत गहरी सीख वाली प्रेरणादायक कहानी - एक जवान वैज्ञानिक चिंता को छोटी बात समझता है। उसका बुजुर्ग गुरु उसे जंगल में एक चार सौ साल पुराना पेड़ दिखाते हैं जो बिजली, तूफान सब झेल गया, पर छोटी-सी दीमक ने उसे खोखला कर दिया। ठीक वैसे ही चिंता भी इंसान को अंदर से खा जाती है।
चलो, अब पढ़ते हैं ये दिल को छू लेने वाली प्रेरणादायक कहानी...
शहर के बड़े रिसर्च सेंटर में दो वैज्ञानिक कॉफी पीते-पीते गप्पे मार रहे थे। एक थे डॉक्टर वर्मा – साठ पार, सफेद बाल, शांत आँखें। दूसरे थे उनके शिष्य राहुल – अभी तीस भी नहीं हुआ नहीं, जोश से भरा।
राहुल ने कॉफी का घूँट लिया और बोला, “सर, विज्ञान ने तो चाँद पर घर बना दिया, कैंसर की दवा ढूंढ ली, पर एक छोटी-सी चिंता को काबू करने का कोई मशीन अभी तक नहीं बना पाया!”
डॉ. वर्मा मुस्कुराए, “बेटा, चिंता कोई छोटी चीज नहीं है। ये इंसान को अंदर से खोखला कर देती है।”
राहुल हँस पड़ा, “अरे सर, आप भी! चिंता तो बस दिमाग का वहम है। थोड़ा योग कर लो, मेडिटेशन कर लो, खत्म!”
डॉ. वर्मा चुप रहे, फिर बोले, “चल मेरे साथ। आज तुझे कुछ दिखाता हूँ।”
दोनों गाड़ी में बैठे और शहर से दूर एक घने जंगल में पहुँचे। वहाँ एक बहुत पुराना, विशाल बरगद खड़ा था। उसकी जड़ें जमीन को चीरती हुई निकली थीं।
राहुल ने पूछा, “सर, यहाँ क्यों लाए?” डॉ. वर्मा बोले, “इस बरगद को देख। वन विभाग के लोग बताते हैं – इसकी उम्र चार सौ साल से ज्यादा है।” राहुल – “वाह! कमाल है!”
डॉ. वर्मा आगे बोले, “इन चार सौ सालों में इस पर सत्रह बार बिजली गिरी। सौ से ज्यादा बड़े तूफान आए। एक बार तो पूरा जंगल जल गया था, पर ये बच गया।”
राहुल झुंझलाया, “सर, आप कहना क्या चाहते हैं?”
डॉ. वर्मा पेड़ के पास ले गए और जड़ को छूकर बोले, “अब यहाँ देख। छू कर देख।” राहुल ने हाथ लगाया – अंदर से खोखला! छाल के नीचे सिर्फ दीमक का चूरन।
डॉ. वर्मा धीरे से बोले, “बिजली नहीं गिरा पाई, तूफान नहीं उखाड़ पाया, आग नहीं जला पाई… पर ये छोटी-सी दीमक ने इसे अंदर से खत्म कर दिया। अब हल्की-सी आँधी आएगी और ये गिर जाएगा।”
राहुल चुप हो गया।
डॉ. वर्मा ने कंधे पर हाथ रखा, “बेटा, चिंता भी ऐसी ही दीमक है। बाहर से इंसान हँसता-बोलता, कामयाब दिखता है, पर अंदर से ये छोटी-छोटी फिक्रें उसे खाती रहती हैं। न नींद आती, न भूख लगती। एक दिन अचानक टूट जाता है।”
राहुल ने गहरी साँस ली, “सर, आज समझ आया। चिंता सचमुच सबसे बड़ी दुश्मन है।”
कहानी का विस्तार: उस दिन के बाद राहुल बदल गया। वो अपने दोस्तों को यही कहानी सुनाता। एक बार उसका दोस्त बीमार पड़ा तो राहुल अस्पताल गया। दोस्त बोला, “यार, पता नहीं रिपोर्ट में क्या आएगा…” राहुल मुस्कुराया, “अरे, दीमक को मत पाल। जो होना है सो होगा। अभी हँस, अभी जी!”
धीरे-धीरे राहुल ने छोटा-सा ग्रुप बना लिया – “चिंता मुक्त भारत”। हर रविवार वो लोगों को यही बरगद की कहानी सुनाता और सिखाता कि चिंता को दिमाग में जगह मत दो।
सीख: दोस्तों, बिजली, तूफान, आग – ये सब बाहर की मुसीबतें हैं, इनसे बचा जा सकता है। लेकिन चिंता अंदर की दीमक है – इसे खुद ही पनपने से रोकना पड़ता है। रोज थोड़ा हँसो, थोड़ा गाओ, थोड़ा जीयो – चिंता भाग जाएगी!
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