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यह कहानी नन्हे सूरज की है, जो दीपावली के दिन मंजू काकी के उदास घर को देखकर परेशान हो जाता है। उसे पता चलता है कि काकी अपने बेटे की मृत्यु के कारण दीपावली नहीं मनातीं। सूरज अपनी माँ की सलाह पर मंजू काकी के लिए मिठाई और दीये लेकर जाता है और उन्हें अपना बेटा बनकर दीपावली मनाने के लिए प्रेरित करता है। उसकी मासूम कोशिश से काकी के घर में फिर से रोशनी और खुशी लौट आती है। यह प्रेरक कहानी बच्चों को सिखाती है कि दया और प्यार से किसी का दुख कम किया जा सकता है।
दीपावली का उजाला
गाँव में दीपावली की धूम थी। हर घर रंग-बिरंगी लाइटों और दीयों की रोशनी से जगमगा रहा था। बच्चे नए-नए कपड़ों में सजे-धजे गलियों में पटाखे छुड़ा रहे थे, और हवा में मिठाइयों की खुशबू तैर रही थी। हँसी-ठहाकों और शोर-शराबे से पूरा मोहल्ला गूंज रहा था। लेकिन इस चमक-दमक के बीच, गाँव के एक कोने में मंजू काकी का छोटा सा घर अंधेरे में डूबा था। उनके घर के बाहर सिर्फ़ एक-दो दीये जल रहे थे, जो इस जगमगाहट में फीके से लग रहे थे।
नन्हा सूरज, जो गाँव का सबसे जिज्ञासु बच्चा था, इस बात को देखकर हैरान था। “सबके घर तो दीयों से सजे हैं, फिर मंजू काकी का घर इतना उदास क्यों है?” उसने मन ही मन सोचा। उसे याद आया कि पिछले साल भी काकी ने दीपावली नहीं मनाई थी। शायद उससे पिछले साल भी नहीं।
“आज तो मुझे इसका राज़ पता करना ही होगा!” सूरज ने ठान लिया और अपनी माँ के पास रसोई में दौड़ा।
माँ उस वक्त गुजिया बना रही थीं। सूरज का चेहरा देखकर उन्होंने पूछा, “क्या बात है, सूरज? इतना परेशान क्यों लग रहा है?”
“माँ, मंजू काकी हर साल दीपावली क्यों नहीं मनातीं? उनके घर में तो बस एक-दो दीये जलते हैं, वो भी इतने फीके!” सूरज ने उत्सुकता से पूछा।
माँ ने गहरी साँस ली और बोलीं, “बेटा, मंजू काकी का दिल बहुत दुखी है। कई साल पहले दीपावली की रात उनके बेटे की पटाखों की वजह से एक दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी। उनके पति भी अब इस दुनिया में नहीं हैं। अकेली मंजू काकी मेहनत-मजदूरी करके जैसे-तैसे गुज़ारा करती हैं। इसीलिए दीपावली उनके लिए खुशी का नहीं, दुख का दिन बन गया है।”
सूरज का दिल पसीज गया। “माँ, तुम हमेशा कहती हो कि हमें दुखियों की मदद करनी चाहिए। अगर मैं मंजू काकी की दीपावली खुशहाल कर दूँ, तो क्या वो गलत होगा?” उसने भोलेपन से पूछा।
माँ ने सूरज के सिर पर प्यार से हाथ फेरा और मुस्कुराईं। “मेरा सूरज तो बड़ा समझदार हो गया है! जा, बेटा, अगर तू किसी का दुख कम कर सकता है, तो ये सबसे बड़ा पुण्य है।”
माँ की बात सुनकर सूरज का चेहरा चमक उठा। “लेकिन माँ, रुकिए!” उसने कहा। “मुझे कुछ ले जाना चाहिए ना? मिठाई तो बन गई है, है ना?”
“बिल्कुल, बेटा!” माँ ने हँसते हुए एक डिब्बे में ताज़ी गुजिया और कुछ दीये रखे और सूरज को थमा दिए। “जा, मंजू काकी को ये दे दे, और उनके चेहरे पर मुस्कान ला दे!”
सूरज मिठाई का डिब्बा और दीये लेकर मंजू काकी के घर की ओर भागा। उसके कदमों में ऐसी उमंग थी, मानो वह आज किसी के लिए दीपावली का उजाला बनने जा रहा हो।
मंजू काकी के घर पहुँचकर सूरज ने देखा कि काकी अपने आँगन में अकेली बैठी थीं। उनकी आँखें नम थीं, और चेहरा उदास। शायद वह अपने बेटे को याद कर रही थीं।
“काकी, आप रो रही हैं?” सूरज ने धीरे से पूछा।
मंजू काकी ने सूरज की ओर देखा, लेकिन कुछ बोलीं नहीं। उन्होंने सिर्फ़ सिर हिलाकर उसे पास बैठने का इशारा किया।
सूरज ने हिम्मत जुटाई और फिर पूछा, “काकी, आप बताइए ना, आप दीपावली क्यों नहीं मनातीं? आपके घर में तो बस दो दीये जल रहे हैं, वो भी इतने उदास से!”
मंजू काकी की आँखों में आँसू छलक आए। “बेटा, मेरे लिए दीपावली का मतलब अब सिर्फ़ अंधेरा है,” उन्होंने भरे गले से कहा। “मेरा बेटा... वो इस दिन मुझे छोड़कर चला गया। अब ये दीये जलाने का मन ही नहीं करता।”
सूरज ने मंजू काकी का हाथ पकड़ा और बोला, “काकी, अगर आपका बेटा नहीं है, तो क्या मैं आपका बेटा नहीं बन सकता? देखो, मैं आपके लिए मिठाई लाया हूँ, और दीये भी! आज हम मिलकर दीपावली मनाएँगे!”
मंजू काकी ने सूरज की ओर देखा। उसकी मासूमियत और प्यार भरी बातों ने उनके दिल को छू लिया। “तू इतना प्यारा बच्चा है, सूरज,” उन्होंने आँसू पोंछते हुए कहा। “ठीक है, बेटा, आज तू मेरे साथ दीये जलाएगा।”
सूरज ने तुरंत मिठाई का डिब्बा खोला और काकी को गुजिया दी। फिर उसने दीये निकाले और काकी के साथ मिलकर उनके आँगन में एक के बाद एक दीया जलाया। धीरे-धीरे मंजू काकी का घर रोशनी से भर गया। गाँव के बच्चे, जो सूरज को देखकर वहाँ आए थे, भी दीये जलाने में जुट गए।
“काकी, देखो, आपका घर कितना सुंदर लग रहा है!” सूरज ने उत्साह से कहा।
मंजू काकी ने सूरज को गले लगाया और बोलीं, “बेटा, तूने आज मेरे घर में दीपावली का उजाला ला दिया। तू सचमुच मेरा बेटा है।”
उस रात मंजू काकी के घर में सालों बाद हँसी और रोशनी लौटी। गाँव के लोग सूरज की तारीफ करने लगे, और उसकी छोटी सी कोशिश ने पूरे गाँव को सिखा दिया कि दया और प्यार से किसी का दुख कम किया जा सकता है।
इस कहानी से सीख
दया सबसे बड़ा उपहार है: दूसरों के दुख को समझकर उनकी मदद करना सबसे बड़ा पुण्य है।
छोटी कोशिश, बड़ा बदलाव: एक छोटा सा कदम भी किसी की ज़िंदगी में उजाला ला सकता है।
त्योहार बाँटने से बढ़ते हैं: दीपावली जैसे पर्व को दूसरों के साथ मिलकर मनाने से खुशी दोगुनी होती है।
सच्ची खुशी दूसरों की मदद में है: दूसरों के चेहरे पर मुस्कान लाना सबसे बड़ी उपलब्धि है।
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