जैसा करोगे वैसा भरोगे: एक नैतिक कहानी

जैसा करोगे वैसा भरोगे: एक नैतिक कहानी: यह कहानी रमेश और सेठ हरदयाल की है, जहाँ रमेश ने अपनी मेहनत से गरीबी को मात दी, लेकिन सेठ की चालाकी ने उसे ठगा। बदले में रमेश ने सेठ को उसी की भाषा में जवाब दिया।

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जैसा करोगे वैसा भरोगे: एक नैतिक कहानी: यह कहानी रमेश और सेठ हरदयाल की है, जहाँ रमेश ने अपनी मेहनत से गरीबी को मात दी, लेकिन सेठ की चालाकी ने उसे ठगा। बदले में रमेश ने सेठ को उसी की भाषा में जवाब दिया। राजा के हस्तक्षेप से सत्य की जीत हुई, और रमेश ने गाँव को नया सबक सिखाया। चलिए पढ़ते हैं ये कहानी :

एक समय की बात है, एक संपन्न व्यापारी रामलाल अपनी दुकान चलाता था। उसके एक बेटे, रमेश, की परवरिश उसने बड़े प्यार से की। लेकिन जब रामलाल की मृत्यु हुई, रमेश ने दुकान संभाली। दुर्भाग्यवश, वह भोला-भाला था और लोग उसका फायदा उठाते रहे। धीरे-धीरे उसका माल खत्म होता गया, सिर्फ एक पुराना तराजू बचा, जो उसके पिता की यादगार थी। आर्थिक तंगी से जूझते हुए रमेश ने सोचा, “मुझे शहर जाकर कुछ कमाना होगा।” उसने तराजू को गिरवी रखने का फैसला किया। वह सेठ हरदयाल के पास गया और बोला, “सेठ जी, मुझे कुछ पैसे चाहिए, यह तराजू रख लीजिए।” सेठ ने पैसे दिए, और रमेश शहर की ओर चल पड़ा।

कई साल बाद रमेश मेहनत से धनवान बन गया। गाँव लौटकर वह सेठ के पास पहुँचा और बोला, “सेठ जी, मेरा तराजू लौटा दीजिए।” सेठ ने टालमटोल की और कहा, “अरे, वह तो चूहों ने खा लिया!” रमेश का दिल दुखा, क्योंकि वह तराजू उसके पिता की निशानी थी। मन में ठान लिया, “अब सेठ को उसकी ही जुबान में जवाब दूँगा।”

बदले की योजना

कुछ दिन बाद रमेश गंगा स्नान के लिए जा रहा था। सेठ से मिलकर उसने कहा, “हरदयाल जी, क्या आपका बेटा मेरे साथ स्नान के लिए आ सकता है? उसे भी आध्यात्मिक शांति मिलेगी।” सेठ ने खुशी-खुशी अपने बेटे गोविंद को भेज दिया। रमेश ने गोविंद को एक कोठरी में बंद कर दिया और अकेले वापस आ गया। सेठ ने घबराकर पूछा, “रमेश, मेरा बेटा कहाँ है?” रमेश ने शांत स्वर में कहा, “सेठ जी, चील उसे ले गई!” सेठ चिल्लाया, “यह क्या बकवास है? एक चील मेरे बेटे को कैसे ले जा सकती है?” रमेश मुस्कुराया, “जिस तरह एक चूहा तराजू खा सकता है, उसी तरह चील भी आपका बेटा ले जा सकती है।”

राजा का फैसला

यह बात गाँव में फैल गई और राजा तक पहुँची। राजा हँसते हुए बोले, “यह तो सही जवाब है! सेठ, तूने रमेश के साथ गलत किया। तराजू लौटा दे, ताकि उसका बेटा वापस आए।” सेठ को मजबूरी में तराजू लौटाना पड़ा। रमेश ने गोविंद को छोड़ दिया और सेठ से कहा, “सेठ जी, सच का रास्ता ही सही है।” सेठ ने माफी माँगी और बोला, “रमेश, तूने मुझे अच्छा सबक सिखाया, मैं इसी काबिल था।”

एक दिन रमेश ने गाँव के बच्चों को बुलाया और कहा, “बच्चों, हमेशा ईमानदारी से काम करो, वरना जैसा करोगे वैसा भोगोगे।” बच्चे मुस्कुराए और बोले, “भैया, हम ऐसा ही करेंगे!” 

सीख

जिंदगी में विनम्रता और विवेक से काम लो। गलत काम का जवाब सही तरीके से देना ही असली जीत है।

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