प्रिया के विशाल बंगले में रंग-बिरंगे गुलाब के पौधे उगे थे। वह स्कूल जाने से पूर्व दो-तीन किस्म के गुलाब के फूल तोड़ती। कभी अपनी मैडम को, तो कभी अपनी सहेलियों को वह फूल भेंट किया करती...
रोज की तरह उस दिन भी, वह गुलाब के फूल तोड़ने पौधों के पास पहुँची। सभी एक लाल गुलाब के पौधे ने मुस्कुराते हुए कहा-
"प्रिया बेटी! नव वर्ष मुबारक हो..."
यह सुनकर अचानक प्रिया को ख्याल आया, अरे! हां, आज तो नया साल है... क्यों न आज इस फूल को तोड़कर स्कूल में चला जाये। तोहफे के रूप में क्यों न एक-एक फूल सहेलियों को दे दिया जाये...?
जैसे ही उसने अपने हाथ गुलाब के पौधों की तरफ बढ़ाये, वह लाल गुलाब अपना एक कांटा चुभाते हुए बोला-
"प्रिया बेटी! क्या तुम मुझे बिल्कुल भूल गई, हमने तुम्हें नव वर्ष की बधाई दी, लेकिन कोई जवाब न मिला तुम्हारी ओर से? आखिर क्या बात है? कोई नाराज़गी है क्या?"
प्रिया बोली-
"उफ्फ! आज नये साल के दिन तुमने तो सुबह-सुबह ही मेरा मूड ऑफ कर दिया, देखो न... अब खून आने लगा है... यहां तुमने कांटा चुभाया है... क्या नया वर्ष का तुम्हारा... मेरे को यही तोहफा है?"
"हां! मुझे नहीं चाहिए नव वर्ष की तुम्हारी यह मनहूस बधाई।"
प्रिया को इतने गुस्से में देखकर लाल गुलाब का पौधा बोला-
"रोज तो तुम्हें फूल देते हैं हम सब मिलकर... आज जरा सा कांटा क्या चुभ गया? बस इतना ही सहन न कर सकीं?"
जबकि हम तो रोज़ तुम्हें प्यारे प्यारे गुलाब देते हैं..
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प्रिया तपाक से बोली "क्योंकि एहसान करने ही बदले में वह पानी और हुमाई हवा भी ले लेते हैं? यह तो प्रकृति का नियम है। जो जिस पेड़ की रक्षा करेगा... वह उसके फल का अधिकारी होगा..."
गुलाब बोला- "तुमने बात सहीं कही। वास्तव में यह भी सही है, पर क्या तुमने यह भी कभी सोचा कि वह जो हम रोज़ फूल तोड़कर कभी अपनी सहेलियों को, तो कभी मैडम को देती हो, क्या कभी उन्होंने पूछा भी है कि पेड़ों में फूल कितनी मुश्किल से खिलते हैं?"
प्रिया बोली-
गुलाब का पेड़ बोला- "अब आज नववर्ष के दिन तुम्हें एक बात बताता हूं... हम फूल इंसानों के हाथों में जाते ही मुरझा जाते हैं। यदि हम पेड़ों पर ही खिलते रहते, हमारी भीनी खुशबू निकलती है जिससे आप लोगों का दिमाग तरोताजा रहता है... यही नहीं हमारे जिस्म पर फूलों के खिलते रहने से आपके घर की शोभा भी बढ़ती है हमें ही देखकर भंवरे व तितलियां यहां तक आते हैं।"
"हमारे पेड़ न होने से यह प्यारा ग्रहण करने की वंचित हो जाते हैं, यह बात प्रकृति के इन सुंदर कामों में बच्चों के विकास के लिए बड़ी आवश्यकता है।"
अब प्रिया गुलाब की व्यथा समझ चुकी थी। उसने गुलाब के पेड़ की नव वर्ष की बधाई स्वीकार कर धन्यवाद देते हुए कहा, "प्रकृति की सुंदरता के लिए मैं अब कभी फूल न तोड़ूंगी।"
लाल गुलाब अब अपनी महक फिरा में बिखेरते हुए कह रहा था, "यही है नव वर्ष के लिए मेरा संदेश। कि प्रकृति की गोद में खिलते तमाम फूलों को तोड़ने के बजाय उन्हें पेड़ पौधों पर अधिक से अधिक खिलने दें..."
तभी प्रिया ने आकर गुलाब के पौधे से कहा, "आज से मैं तुम सबको एक वादा देती हूं। फूलों की मुस्कान ही राष्ट्र की मुस्कान है।"
यह सुन सभी गुलाब के पौधे बेहद खुश थे।
सीख:
यह कहानी हमें सिखाती है कि प्रकृति का सम्मान करना चाहिए। फूलों, पेड़ों, और प्रकृति की हर चीज को उनके प्राकृतिक रूप में रहने देना चाहिए। यही सच्ची खुशहाली और संतुलन की कुंजी है। प्रकृति की रक्षा ही हमारी सच्ची जिम्मेदारी है।
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