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राजा शिवि और कबूतर और बाज की कहानी: राजा शिवि अपनी दया के लिए मशहूर थे। इंद्र और अग्निदेव उनकी परीक्षा लेने बाज और कबूतर बनकर आते हैं। राजा अपना मांस काट-काटकर कबूतर की जान बचाते हैं। यह best hindi story hindi बताती है कि सच्ची दया में जान की बाजी भी लग जाती है।
चलो, अब पढ़ते हैं यह दिल छू लेने वाली प्राचीन कहानी...
बहुत पुराने समय की बात है। उशीनर देश में राजा शिवि का राज था। लोग उन्हें “दया का सागर” कहते थे। कोई भिखारी खाली हाथ नहीं लौटता था। कोई रोता हुआ आता तो राजा खुद आंसू पोंछते। कहते थे, “मेरे राज्य में कोई दुखी नहीं रहेगा।”
स्वर्ग में इंद्र देव को बात चुभ गई। वे अग्निदेव से बोले, “ये शिवि इतने दयालु कैसे? चलो, परीक्षा लेते हैं!” अग्निदेव मुस्कुराए, “चलो महाराज, मजा आएगा।”
इंद्र बाज बन गए, अग्निदेव छोटे से कबूतर। कबूतर घबराया हुआ राजा शिवि के दरबार में उड़ता हुआ आया और राजा की गोद में दुबक गया। कबूतर काँपते स्वर में बोला, “महाराज, एक भयंकर बाज मेरे पीछे पड़ा है। मेरी जान बचा लो!”
राजा ने कबूतर को सीने से लगाया, “डरो मत बेटा। जब तक मैं जिंदा हूँ, कोई तुम्हें छू भी नहीं सकता।”
तभी जोरदार पंख फड़फड़ाते हुए एक बड़ा बाज दरबार में घुस आया। उसकी आँखें लाल, पंजे तीखे। बाज गरजा, “राजन! ये कबूतर मेरा शिकार है। मुझे दे दो, वरना मेरे बच्चे भूखे मर जाएँगे!”
राजा शांत स्वर में बोले, “बाज देव, मैंने इसे शरण दे दी है। अपना वचन तोड़ नहीं सकता।”
बाज ने गुस्से में पंख फैलाए, “तो मेरे बच्चे मरें? आप राजा हो, न्याय करो!”
राजा कुछ देर सोचे, फिर मुस्कुराए, “एक उपाय है। इस कबूतर के बराबर मांस मेरे शरीर से काट लो। तुम्हारा पेट भरेगा, मेरा वचन भी बच जाएगा।”
दरबार में सन्नाटा छा गया। बाज (इंद्र) हैरान, “सच कह रहे हो महाराज?” राजा – “राजा का वचन झूठ नहीं होता।”
राजा ने तुरंत तराजू मंगवाई। एक पलड़े में कबूतर बैठाया। दूसरे पलड़े पर अपनी जाँघ से मांस का टुकड़ा काटकर रखा। तराजू नहीं हिला। दूसरा टुकड़ा काटा – फिर भी कबूतर का पलड़ा भारी। राजा ने और मांस काटा, फिर और... देखते-देखते आधी जाँघ कट गई। फिर भी तराजू नहीं हिला।
राजा ने आखिरी फैसला लिया। खुद ही तराजू के पलड़े पर जा बैठे। और बोले, “अब ले लो मेरा पूरा शरीर, पर इस मासूम को मत छूना।”
तभी तेज रोशनी हुई। बाज और कबूतर गायब। सामने खड़े थे स्वयं इंद्र और अग्निदेव।
इंद्र ने हाथ जोड़े, “शिवि! तुमने परीक्षा पास कर ली। पृथ्वी पर तुम्हारे जैसा दयालु कोई नहीं।” अग्निदेव ने राजा के घावों पर हाथ फेरा – सब ठीक हो गए।
इंद्र बोले, “तुम्हारी दया अमर हो गई। आज से तुम्हारा नाम महाभारत में भी गूँजेगा।”
उस दिन के बाद उशीनर देश में एक कहावत चल पड़ी – “शिवि जैसी दया करो, तो देवता भी सलाम ठोंकें!” राजा शिवि जब भी दरबार लगाते, एक खाली तराजू रखवाते और बच्चों को समझाते, “बेटा, दया का वजन सबसे भारी होता है।”
सीख: दोस्तों, सच्ची दया में अपना सब कुछ न्योछावर करने की ताकत होती है। जरूरतमंद की मदद करो, भले ही कितनी बड़ी कुर्बानी देनी पड़े – भगवान खुद तुम्हारे साथ खड़े हो जाते हैं।
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