परिवार का असली खजाना

एक बार की बात है, एक दिल्ली शहर में गुप्ता परिवार रहता था। यह परिवार एकदम साधारण था, पर उनके बीच प्यार और सम्मान की कमी होने लगी थी। इस परिवार में चार लोग थे: माता-पिता और उनके दो बच्चे, रोहन और रीमा।

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परिवार का असली खजाना- एक बार की बात है, एक दिल्ली शहर में गुप्ता परिवार रहता था। यह परिवार एकदम साधारण था, पर उनके बीच प्यार और सम्मान की कमी होने लगी थी। इस परिवार में चार लोग थे: माता-पिता और उनके दो बच्चे, रोहन और रीमा।

रोहन और रीमा दोनों शहर के बड़े स्कूल में पढ़ते थे। वे दिनभर पढ़ाई और दोस्तों के साथ व्यस्त रहते, और अपने माता-पिता से दूरी महसूस करने लगे थे। उनके माता-पिता भी अपने कामों में इतने व्यस्त रहते कि कभी घर के लोगों के साथ समय बिताने का मौका नहीं मिलता। धीरे-धीरे परिवार में संवाद कम होता गया, और हर कोई अपनी-अपनी दुनिया में व्यस्त हो गया।

एक दिन, रोहन और रीमा के स्कूल की गर्मी की छुट्टियाँ शुरू हुईं। दोनों बच्चों ने सोचा कि वे छुट्टियों में अपने दोस्तों के साथ मौज-मस्ती करेंगे, पर उनके माता-पिता ने एक अलग योजना बनाई थी। उन्होंने बच्चों को बताया कि इस बार वे सभी एक साथ दादी के गाँव जाएंगे।

रोहन और रीमा को यह सुनकर बिल्कुल मजा नहीं आया। उन्हें लगा कि गाँव में उनके लिए कुछ खास नहीं होगा। "वहां न इंटरनेट है, न ही कोई दोस्त। हम क्या करेंगे वहां?" रीमा ने झुंझलाते हुए कहा। पर माता-पिता ने जिद पकड़ ली और पूरा परिवार गाँव की ओर चल पड़ा।

गाँव पहुंचने पर, बच्चों को वहाँ का शांत वातावरण और हरियाली देखकर थोड़ी शांति महसूस हुई। उनकी दादी ने बड़े प्रेम से उनका स्वागत किया और सबको अपने पुराने किस्से सुनाए। पहले दिन बच्चों को कुछ खास नहीं लगा, लेकिन जैसे-जैसे दिन बीते, वे दादी के पास बैठकर उनके जीवन के अनुभव सुनने लगे।

दादी ने उन्हें बताया कि जब उनके माता-पिता छोटे थे, तब परिवार का हर सदस्य एक-दूसरे का साथ देता था। वे सब मिलकर खेतों में काम करते, खाना बनाते, और शाम को एक साथ बैठकर गप्पें लगाते। दादी ने समझाया, "परिवार का असली खजाना हमारे रिश्ते और एक-दूसरे के साथ बिताए गए पल होते हैं। जब हम साथ होते हैं, तो कोई भी कठिनाई हमें नहीं तोड़ सकती।"

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धीरे-धीरे रोहन और रीमा को समझ में आने लगा कि परिवार के साथ समय बिताना कितना महत्वपूर्ण है। अब वे दिनभर फोन या कंप्यूटर पर नहीं, बल्कि दादी, माता-पिता के साथ समय बिताने में व्यस्त रहने लगे। वे साथ में खाना बनाते, गाँव के खेतों में घुमते और मिलकर हँसते-खेलते।

जब छुट्टियाँ खत्म होने लगीं, तो बच्चों को गाँव से लौटने का मन नहीं हो रहा था। वे समझ चुके थे कि असली खुशी तो अपने परिवार के साथ समय बिताने में है। शहर लौटने के बाद भी, रोहन और रीमा ने अपने परिवार के साथ समय बिताने की आदत नहीं छोड़ी। अब वे हर दिन कुछ समय अपने माता-पिता और एक-दूसरे के साथ बिताने लगे।

कहानी की सीख:
परिवार का असली खजाना पैसा या भौतिक वस्तुएँ नहीं होतीं, बल्कि वो प्यार, साथ और समर्थन होता है जो हम एक-दूसरे को देते हैं। जितना हम अपने परिवार के साथ समय बिताते हैं, उतनी ही हमारी जड़ें मजबूत होती हैं और हमें सच्ची खुशी मिलती है।

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