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एक सोने के घोड़े और एक अभिमानी राजा की पौराणिक कहानी। जानें कैसे घमंड इंसान को पतन की ओर ले जाता है और कैसे विनम्रता ही सच्चा धन है। बच्चों के लिए यह प्रेरक हिंदी कहानी हमें सिखाती है कि दिखावा नहीं, बल्कि गुण ही मायने रखते हैं।
बहुत समय पहले, एक विशाल और समृद्ध राज्य था जिसका नाम था 'सूर्यपुर'। इस राज्य के राजा का नाम था वीरेंद्र। राजा वीरेंद्र बहुत शक्तिशाली थे और उनका राज्य बहुत समृद्ध था, लेकिन उनमें एक बहुत बड़ी कमी थी—उनको अपने धन और वैभव पर बहुत अहंकार था। उन्हें हर चीज़ सबसे बेहतर चाहिए थी, और इसी लालसा में वह अक्सर अपनी प्रजा की ज़रूरतों को नज़रअंदाज़ कर देते थे।
एक दिन, राजा ने अपने दरबार में घोषणा की, "मैं चाहता हूँ कि मेरे पास एक ऐसा घोड़ा हो, जो इस धरती पर किसी और के पास न हो।"
मंत्री ने पूछा, "महाराज, आपके अस्तबल में तो एक से बढ़कर एक घोड़े हैं। आप किस तरह के घोड़े की बात कर रहे हैं?"
राजा ने अपने घमंड भरी आवाज़ में कहा, "मैं चाहता हूँ कि मेरे पास एक ऐसा घोड़ा हो जो पूरी तरह से सोने का बना हो, और उसकी गति हवा से भी तेज़ हो।"
सारे दरबारी हँसने लगे, क्योंकि वे जानते थे कि ऐसा कोई घोड़ा नहीं हो सकता। लेकिन राजा वीरेंद्र ने अपनी ज़िद नहीं छोड़ी।
ऋषि का वरदान और घोड़े का जन्म
राजा की ज़िद देखकर, उनके सबसे ज्ञानी मंत्री ने उन्हें एक महान ऋषि के पास जाने की सलाह दी। ऋषि का नाम था 'शांतमुनि' और वे वर्षों से हिमालय में तपस्या कर रहे थे।
राजा वीरेंद्र अपने अहंकार के साथ ऋषि के पास पहुँचे और बोले, "हे ऋषि, मुझे एक ऐसा घोड़ा चाहिए जो सोने का बना हो और हवा से भी तेज़ हो। क्या आपके पास ऐसा कोई वरदान है?"
ऋषि शांतमुनि ने राजा की आँखों में देखा और उनका अहंकार समझ गए। उन्होंने सोचा कि इस राजा को एक सबक सिखाने की ज़रूरत है। उन्होंने अपनी आँखें बंद कीं और कुछ मंत्रों का जाप किया। फिर उन्होंने राजा से कहा, "तुम्हारी इच्छा पूरी होगी, लेकिन इस वरदान के साथ एक शर्त जुड़ी है। यह घोड़ा केवल तुम्हारा है, और जब तक तुम इसे दिखावे के लिए इस्तेमाल नहीं करोगे, इसकी शक्ति बनी रहेगी। जिस दिन तुमने इसका प्रदर्शन किया, इसकी शक्ति खत्म हो जाएगी।"
अगले ही दिन, राजा के महल के अस्तबल में एक शानदार, चमकता हुआ घोड़ा प्रकट हुआ। उसकी चमक से आँखें चकाचौंध हो जाती थीं। पूरा घोड़ा शुद्ध सोने से बना था और उसकी आँखें नीलम की तरह चमक रही थीं। राजा की खुशी का ठिकाना न रहा। उन्होंने उसका नाम 'स्वर्णराज' रखा।
राजा वीरेंद्र ने अपने नए घोड़े को किसी को नहीं दिखाया, क्योंकि उन्हें डर था कि कहीं ऋषि की शर्त पूरी न हो जाए। उन्होंने उसे एक गुप्त कमरे में रखा और हर सुबह और शाम उसे अकेला देखने जाते।
अहंकार की हार और सच्ची महानता
एक दिन, पड़ोसी राज्य के राजा, राजा धर्मपाल, अपने राज्य की सबसे बेहतरीन चीज़ों का प्रदर्शन करने के लिए एक विशाल उत्सव का आयोजन कर रहे थे। राजा धर्मपाल बहुत ही दयालु और विनम्र थे। उन्होंने राजा वीरेंद्र को भी आमंत्रित किया।
जब वीरेंद्र वहाँ पहुँचे, तो उन्होंने देखा कि राजा धर्मपाल के पास एक अद्भुत हाथी था, जो इतना बड़ा था कि वह एक पर्वत जैसा दिखता था। धर्मपाल ने कहा, "यह हाथी बहुत शक्तिशाली है और मैंने इसे अपने राज्य के सबसे गरीब गाँव में पानी पहुँचाने के काम में लगाया है।"
इस बात से वीरेंद्र के अहंकार को चोट पहुँची। उन्हें लगा कि उनका 'स्वर्णराज' सबसे ख़ास है और उसे भी यहाँ दिखाना चाहिए। उन्होंने ऋषि की शर्त को भूलकर अपने मंत्रियों को आदेश दिया, "जाओ! स्वर्णराज को लेकर आओ! सबको दिखाओ कि असली शक्ति और वैभव क्या होता है।"
जब स्वर्णराज को लाया गया, तो उसकी चमक ने सबको हैरान कर दिया। लोग उसकी सुंदरता देखकर वाह-वाह करने लगे। राजा वीरेंद्र खुशी से झूम उठे। उन्होंने सोचा कि अब वे सबको साबित कर देंगे कि वह सबसे बेहतर हैं।
जैसे ही राजा वीरेंद्र उस पर चढ़ने की कोशिश करने लगे, स्वर्णराज की चमक फीकी पड़ने लगी। सोने की त्वचा एक-एक करके गायब होने लगी और उसके अंदर से एक साधारण भूरा घोड़ा बाहर निकला, जो न तो तेज़ दौड़ता था और न ही विशेष था। राजा वीरेंद्र ने अपनी आँखें मलकर देखा, लेकिन वह घोड़ा सचमुच साधारण हो चुका था।
उनका अहंकार पल भर में चूर-चूर हो गया। राजा धर्मपाल और बाकी सब लोग आश्चर्य से यह सब देख रहे थे।
सबक और राजा का परिवर्तन
शर्मिंदा होकर राजा वीरेंद्र अपने राज्य वापस लौटे। अगले दिन, वह ऋषि शांतमुनि के पास गए और उनसे माफ़ी माँगी।
"हे ऋषि," राजा ने कहा, "मैं अपनी गलती समझ गया हूँ। मैंने अपने अहंकार के कारण आपके वरदान का अपमान किया। अब मुझे समझ आया कि सच्ची महानता दिखावे में नहीं, बल्कि अच्छे कामों और विनम्रता में होती है।"
ऋषि मुस्कुराए और बोले, "तुमने सबक सीख लिया है, राजा। सोने का घोड़ा सिर्फ़ एक प्रतीक था। तुम्हारी सच्ची शक्ति तुम्हारी प्रजा की सेवा में है, न कि अपने अहंकार को बढ़ाने में।"
उस दिन के बाद से, राजा वीरेंद्र बदल गए। उन्होंने अपने धन का इस्तेमाल लोगों की भलाई के लिए करना शुरू कर दिया। उन्होंने अपने राज्य में स्कूल और अस्पताल बनवाए और अपनी प्रजा का ध्यान रखा। उन्हें अब अपनी विनम्रता और दया के लिए जाना जाता था, और वे एक बेहतर राजा बन गए।
इस कहानी से सीख:
यह कहानी हमें सिखाती है कि अहंकार का फल हमेशा पतन होता है। सच्ची महानता और सम्मान दिखावे या भौतिक संपत्ति में नहीं होते, बल्कि हमारे गुणों, विनम्रता और दूसरों के प्रति दयालुता में होते हैं। हमें कभी भी अपनी शक्ति या धन पर घमंड नहीं करना चाहिए, क्योंकि यह सब क्षणभंगुर है। जीवन का सच्चा धन अच्छे कर्म और एक अच्छा चरित्र है।
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