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कई साल पहले की बात है, प्राचीन नगर मथुरा में एक नेकदिल और मेहनती व्यापारी रहता था। उसका छोटा-सा परिवार था—उसकी पत्नी और दो बेटियाँ। वह अपने परिवार से बहुत प्यार करता था, लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था। कम उम्र में ही उसकी मृत्यु हो गई। यह प्रेरक हिंदी कहानी उस व्यापारी की है, जो मृत्यु के बाद एक सुनहरे पंखों वाले पक्षी के रूप में जन्म लेता है। यह जातक कथा हमें लालच और कृतज्ञता के बीच के अंतर को समझाती है। आइए, पढ़ते हैं सुनहरा पंख की कहानी और जानते हैं कि कैसे लालच ने एक परिवार की खुशियाँ छीन लीं।
सुनहरे पक्षी का जन्म
मथुरा के उस व्यापारी की मृत्यु के बाद उसका पुनर्जन्म एक सुनहरे पंखों वाले पक्षी के रूप में हुआ। इस पक्षी के पंख इतने चमकीले थे कि सूरज की रोशनी में वे सोने की तरह दमकते थे। लेकिन इस नए जन्म में भी उसकी पुरानी यादें और अपने परिवार के प्रति प्रेम जस का तस था। वह अपनी पत्नी और बेटियों की हर बात, उनकी हँसी, और उनके साथ बिताए पल भूल नहीं पाया था।
एक दिन उसका मन इतना बेचैन हुआ कि वह मथुरा की ओर उड़ चला। जब वह अपने पुराने घर की छत पर उतरा, तो उसका दिल टूट गया। उसकी पत्नी और बेटियाँ अब गरीबी में जी रही थीं। उनके कपड़े फटे हुए थे, और घर में पहले जैसी रौनक नहीं थी।
“हाय! मेरे जाने के बाद मेरा परिवार इस हाल में है?” पक्षी ने मन ही मन सोचा। उसने हिम्मत जुटाई और अपनी पत्नी के पास उतर गया।
“कौन हो तुम, इतना सुंदर पक्षी?” उसकी पत्नी ने आश्चर्य से पूछा।
पक्षी ने नम्र स्वर में कहा, “मैं वही हूँ, जो कभी इस घर का हिस्सा था। तुम्हारा पति, तुम्हारी बेटियों का पिता। मैं अब इस रूप में हूँ, लेकिन तुम्हारी तकलीफ देखकर मुझसे रहा नहीं गया।”
पत्नी और बेटियाँ यह सुनकर हैरान रह गईं। “पिताजी, क्या सचमुच आप हैं?” छोटी बेटी ने आँखों में आँसू लिए पूछा।
“हाँ, मेरी बच्ची,” पक्षी ने प्यार से कहा। “मैं तुम्हारी मदद करना चाहता हूँ।” उसने अपने सुनहरे पंखों में से एक पंख निकाला और उन्हें दे दिया। “इसे बाजार में बेच दो। इससे तुम्हारी कुछ जरूरतें पूरी हो जाएँगी।”
बेटियों ने खुशी-खुशी पंख ले लिया और पक्षी को गले लगाया। “पिताजी, आप कितने अच्छे हैं!” बड़ी बेटी ने कहा।
समय-समय पर मदद
उस दिन के बाद, सुनहरा पक्षी हर कुछ महीनों में मथुरा लौटता। हर बार वह अपनी पत्नी और बेटियों को एक सुनहरा पंख देता, जिसे बेचकर वे अपने घर का खर्च चलातीं। धीरे-धीरे उनके दिन फिर से सुधरने लगे। बेटियाँ अपने पिता की इस दयालुता से बहुत खुश थीं।
“माँ, देखो न, पिताजी कितने दयालु हैं,” छोटी बेटी ने एक दिन कहा। “वे इतनी दूर से आते हैं, सिर्फ हमारी मदद के लिए।”
“हाँ,” बड़ी बेटी ने मुस्कुराते हुए कहा। “हमें उनके एक-एक पंख की कीमत समझनी चाहिए।”
लेकिन पत्नी के मन में कुछ और ही चल रहा था। वह लालची स्वभाव की थी। एक दिन उसने बेटियों से कहा, “क्यों न हम इस पक्षी के सारे पंख एक बार में निकाल लें? एक पंख से तो कुछ दिन ही चलते हैं। अगर सारे पंख ले लें, तो हम रातोंरात अमीर हो जाएँगे!”
बेटियाँ यह सुनकर गुस्सा हो गईं। “माँ, ये क्या कह रही हो?” बड़ी बेटी ने चिल्लाकर कहा। “पिताजी हमारी मदद कर रहे हैं, और तुम उनके साथ ऐसा करना चाहती हो? ये गलत है!”
“हाँ, माँ,” छोटी बेटी ने रोते हुए कहा। “पिताजी को तकलीफ देना पाप है। हमें उनके प्यार की कदर करनी चाहिए।”
लेकिन पत्नी का लालच उनकी बातों पर भारी पड़ गया। उसने मन ही मन ठान लिया कि अगली बार वह अपनी योजना को अंजाम देगी।
लालच का परिणाम
एक दिन, जब पक्षी फिर से मथुरा आया, तो संयोग से दोनों बेटियाँ बाजार गई थीं। पत्नी ने मौके का फायदा उठाया। उसने पक्षी को बड़े प्यार से पुकारा, “आओ, मेरे प्रिय! आज तुम्हें खूब सारा प्यार दूँगी।”
पक्षी, जो अपनी पत्नी पर पूरा भरोसा करता था, खुशी-खुशी उसके पास चला गया। लेकिन जैसे ही वह करीब आया, पत्नी ने उसकी गर्दन पकड़ ली और बेरहमी से उसके सारे पंख नोच डाले। पक्षी दर्द से चीख उठा। उसका शरीर खून से लथपथ हो गया। पत्नी ने उसे एक टूटे-फूटे टोकरे में फेंक दिया और पंख समेटने लगी।
लेकिन यह क्या? जिन पंखों को वह सोने का समझ रही थी, वे अब साधारण पक्षी के पंख बन चुके थे। “ये क्या हो गया?” पत्नी चिल्लाई। “सोना कहाँ गया?”
तभी बेटियाँ घर लौटीं। उन्होंने अपने पिता को खून से सना देखा और चीख पड़ीं। “माँ, तुमने ये क्या किया?” बड़ी बेटी रोते हुए बोली।
“पिताजी को तकलीफ क्यों दी?” छोटी बेटी ने गुस्से में पूछा।
पत्नी ने शर्मिंदगी से सिर झुका लिया, लेकिन अब पछतावे का कोई फायदा नहीं था।
सेवा और विदाई
बेटियों ने अपने पिता की हालत देखकर उनकी सेवा शुरू कर दी। वे दिन-रात उनकी देखभाल करतीं। उन्होंने जड़ी-बूटियाँ लाकर उनके घावों पर लगाईं और प्यार से उनकी तीमاردारी की। धीरे-धीरे पक्षी स्वस्थ होने लगा। उसके पंख फिर से उग आए, लेकिन अब वे सुनहरे नहीं थे—सिर्फ साधारण पंख।
जब पक्षी इतना स्वस्थ हो गया कि उड़ सके, उसने अपनी बेटियों को देखा और कहा, “मेरी प्यारी बेटियों, तुमने मेरे लिए जो किया, उसके लिए मैं हमेशा तुम्हारा आभारी रहूँगा। लेकिन अब मैं यहाँ नहीं रुक सकता।”
“पिताजी, हमें माफ कर दीजिए,” छोटी बेटी ने रोते हुए कहा। “हम माँ को रोक नहीं पाए।”
पक्षी ने मुस्कुराकर कहा, “तुम्हारा कोई दोष नहीं है। लेकिन लालच इंसान को अंधा कर देता है। मैं अब जा रहा हूँ।”
उसके बाद, पक्षी उड़ गया और फिर कभी मथुरा नहीं लौटा।
कहानी का सारांश
सुनहरा पंख की कहानी एक प्रेरक जातक कथा है, जो हमें लालच के दुष्परिणाम और कृतज्ञता की महत्ता सिखाती है। इस कहानी में एक व्यापारी मृत्यु के बाद सुनहरे पंखों वाले पक्षी के रूप में जन्म लेता है और अपने परिवार की मदद के लिए समय-समय पर उन्हें एक सुनहरा पंख देता है। लेकिन उसकी लालची पत्नी सारे पंख एक साथ नोच लेती है, जिससे वे साधारण पंख बन जाते हैं। यह हिंदी नैतिक कहानी हमें सिखाती है कि लालच हमें हमेशा नुकसान पहुँचाता है, जबकि संतुष्टि और प्यार हमें सच्ची खुशी देता है। यह बच्चों और बड़ों के लिए प्रेरक कहानी जीवन में संतुलन और कृतज्ञता का महत्व दर्शाती है।
कहानी से सीख
“लालच हमें हमेशा नुकसान पहुँचाता है, जबकि संतुष्टि और प्यार हमें सच्ची खुशी देता है। जो हमारे पास है, उसकी कदर करें, न कि अधिक की लालसा करें।”
Moral in English: “Greed always leads to loss, while contentment and love bring true happiness. Value what you have instead of craving for more.”
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