बाल कहानी : साधु रूप में बहुरूपिया बाल कहानी : साधु रूप में बहुरूपिया :- बहुरूपिया राजा के दरबार में पहुँचा और बोला यश पताका आकाश में सदैव फहराती रहे। बस दस रूपये का सवाल है, महाराज से बहुरूपिया और कुछ नहीं चाहता। By Lotpot 23 Mar 2021 | Updated On 23 Mar 2021 12:55 IST in Stories Moral Stories New Update बाल कहानी : साधु रूप में बहुरूपिया :- बहुरूपिया राजा के दरबार में पहुँचा और बोला यश पताका आकाश में सदैव फहराती रहे। बस दस रूपये का सवाल है, महाराज से बहुरूपिया और कुछ नहीं चाहता। मैं कला का पारखी हूँ। कलाकार का सम्मान करना राज्य का नैतिक कर्तव्य है। मैं तुम्हारी कला पर प्रसन्न होकर दस रूपये का पुरस्कार दे सकता हूँ पर दान के लिए मजबूर हूँ। राजा ने कहा ‘‘कोई बात नहीं, मैं आपके सिद्धांत को तोड़ना नहीं चाहता। मुझे अपना दूसरा स्वांग दिखाने के लिए तीन दिन का समय तो दीजिए। इतना कहकर बहुरूपिया वहाँ से चला गया। दूसरे दिन नगर से बाहर एक टेकरी के ऊपर समाधि मुद्रा में एक साधु दिखाई दिया। मेरूदंड सीधा, नेत्र बंद, तेजस्वी चेहरा इधर-उधर पशु को देखा। वे सब उत्सुकता पूर्वक उसके पास पहुँचे। तपस्वी मृगछाला पर ध्यानावस्थिति था। उसे पता ही न चला कि सामने कौन खड़ा है? ‘‘स्वामी जी! आपका आगमन कहाँ से हुआ है?’’ कुछ क्षण रूककर फिर दूसरा प्रश्न चरवाहों ने किया। ‘‘क्या आपके लिए कुछ फल, दूध और मेवा आदि की व्यवस्था की जायें?’’ मुख से कुछ शब्द का निकलना तो दूर की बात रही, उसका शरीर भी रंच मात्र न हिला। शाम को सभी चरवाहे अपने पशुओं को लेकर नगर वापस आये। उनके द्वारा घर-घर में तपस्वी संत की चर्चा होने लगी। दूसरे ही दिन सुबह नगर के अनेक सभ्य, शिक्षित नागरिक, दरबारी धनिक तथा श्रद्धालु व्यक्ति अपने-अपने वाहन लेकर नगर से बाहर की ओर दौड़ पड़े। किसी की थाली मंे मेवा, फल और मखाने की खीर थी। किसी की बाल्टी दूध से भरी थी और कोई तरह-तरह के पकवानों से अपने थाल भरकर ले गया था सबका एक ही आग्रह था। कि उसमें से एक ग्राम लेकर साधु महाराज अपने श्रद्धालु भक्तों को कृतार्थ करें। सबके आग्रह व्यर्थ गये। साधु ने आंख तक न खोली। वह तो अविचलित रूप से वहीं बैठा रहा। संत के ध्यान की कहानी महामंत्री के पास तक पहुँच गई। वह अनेक प्रकार की स्वर्ण और रजत मुद्राएँ रथ में भरकर उस टीले पर पहुँचे। मुद्राओं का ढेर लगा दिया संत के आस-पास। संत से बड़े विनम्र स्वर में निवेदन करते हुए महामंत्री ने कहा, बस! एक बार नेत्र खोलकर कृतार्थ कीजिए। मैं किसी भौतिक लालसा से आपको परेशान करने नहीं आया हूँ। महामंत्री का निवेदन भी बेकार गया। अब उसे निश्चय हो गया कि यह संत अवश्य पहुँचा हुआ है। राम-विराग, लोभ, मोह सभी से मुक्त है, तभी तो इतने बड़े-बड़े उपहारों की ओर आँख उठाकर भी नहीं देखा। महामंत्री ने महल में जाकर सारी वस्तुस्थिति से राजा को अवगत कराया। राजा को सोचते देर न लगी। वह मन ही मन पछताने लगे। जब मेरे राज्य में इतने बड़े तपस्वी का आगमन हुआ है, तो मुझे अवश्य उनकी आगवानी करने जाना चाहिए। उन्होंने दूसरे ही दिन सुबह उस तपस्वी के दर्शन करने जाने का निश्चय किया। गाँव भर में यह खबर बिजली की तरह फैल गई। जिस मार्ग से राजा की सवारी निकलने वाली थी। वह मार्ग साफ करा दिये गये। रास्ते में सैनिकों की व्यवस्था कर दी गई। नियत समय पर राजा अपने राजदरबारियों समेत नगर के बाहर स्थित उस टीले पर पहुँचे, यहाँ तपस्वी विराजमान था। वहाँ पहुँचकर राजा ने तपस्वी के चरणों में एक लाख अशर्फियों का ढेर लगा दिया और अपना मस्तक उसके चरणों में टेक कर आशीर्वाद की कामना करने लगे, परन्तु तपस्वी विचलित नहीं हुआ। अब तो प्रत्येक व्यक्ति को निश्चय हो गया कि साधु बहुत त्यागी और पहुँचा हुआ है। सांसारिक वस्तुओं से उसका नतिक भी लगाव नहीं हैं। चैथे दिन बहुरूपिया फिर दरबार में पहुँचा और हाथ जोड़कर कहने लगा। राजन! अब तो आपने स्वांग देख लिया होगा और पसंद भी आया होगा। अब तो मेरी कला पर प्रसन्न होकर अधिक नहीं, तो दस रूपये का पुरस्कार तो दे दीजिए, ताकि परिवार के लालन-पालन हेतु आटा-दाल की व्यवस्था कर संकू। छी-छी तुम जैसा मूर्ख व्यक्ति मैंने आज तक नहीं देखा जब संपूर्ण राज्य की जनता अपना सर्वस्व लुटाने के लिए तेरे चरणों के पास आतुर खड़ी थी, तभी तूने धन-दौलत के उस ढेर पर एक नजर तक नहीं डाली और अब हम से दस रूपये के लिए याचना करता है। बहुरूपिये ने कहा। राजन! उस समय एक तपस्वी की मर्यादा का प्रश्न था एक साधु के वेश के लाज रखने के बात थी। भले ही साधु रूप में बहुरूपिया हो, पर था तो एक साधु ही। फिर वह धन-दौलत की ओर दृष्टि उठाकर कैसे देख सकता था? उस समय सारे वैभव तुच्छ थे। और सब पेट की ज्वाला शांत रखने के लिए अपने श्रम के पारिश्रमिक और पुरस्कार की मांग है आपके सामने।बहुरूपिये के जवाब से राजा बहुत प्रभावित हुआ। उसने बहुरूपिये की प्रशंसा की और पर्याप्त धन-धान्य देकर उस विदा किया। और पढ़ें : बच्चों की मजेदार बाल कहानी : जाॅनी और परी शिक्षाप्रद बाल कहानी : मूर्खता की सजा छोटे जंगल चम्पक वन की शिक्षा देती कहानी : दूध का दूध और पानी का पानी #Hindi Me Kahani #Best Hindi Kahani #Child Story #Lotpot Website #Lotpot Ki Kahania #Moral Story #Bal kahani You May Also like Read the Next Article