बाल कहानी : तलवार की धार

राजा वीरभद्र सिंह के दरबार में एक दरबारी था चन्द्रपाल। वह बहुत ही मक्कार था। उसने राजा पर इस बात का सिक्का जमा रखा था कि वह तलवारों का कुशल पारखी है। उनके गुण दोषों में भेद करना जानता है। चन्द्रपाल के इसी गुण से प्रभावित होकर राजा ने उसे अपने दरबार में नौकरी दी थी।

By Lotpot
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बाल कहानी (Kid Story) तलवार की धार :- राजा वीरभद्र सिंह के दरबार में एक दरबारी था चन्द्रपाल। वह बहुत ही मक्कार था। उसने राजा पर इस बात का सिक्का जमा रखा था कि वह तलवारों का कुशल पारखी है। उनके गुण दोषों में भेद करना जानता है। चन्द्रपाल के इसी गुण से प्रभावित होकर राजा ने उसे अपने दरबार में नौकरी दी थी।

चन्द्रपाल का एक ही काम था, तलवारों की परख। इस काम के लिए वह मोटी तनख्वाह पाता था। उसका तलवारों की परख का ढंग बड़ा ही विचित्र था। वह तलवार को नाक के पास ले जाकर सूंघता और सूंघकर ही उसकी अच्छाई और बुराई का पता लगा लेता।

जाँच परखकर जिन तलवारों के बेहतर होने की वह सिफारिश करता, उनको ही खरीदने का हुक्म राजा को देता। बाकी तलवारें लौटा दी जातीं।

दरअसल सच्चाई यह थी कि तलवार में कुछ कारीगरों के साथ चंद्रपाल की सांठगांठ थी। उनसेे वह रिश्वत लेकर उनकी घटिया तलवारों की भी उम्दा बताता और राजा उन्हें खरीदने का हुक्म दे देता। जिन कारीगरों से उसे रिश्वत मिलती थी। उनकी तलवारों को सूंघने का ढोंग करते हुए चन्द्रपाल उस निशान को देख लेता और तलवार के गुणों का बखान करते हुए कुछ न कुछ कहता। वाह, क्या तलवार है, निसंदेह ऐसी ही उम्दा तलवार रानी झाँसी के पास रही होगी।

दूसरी ओर जो कारीगर उसे रिश्वत न देते थे, उनकी तलवारों को सूंघने के दौरान जब उसे निशान न दिखाई देता, तो वह कहता, यह तलवार है कि बच्चों का खिलौना। एक वार से ही इसके दो टुकड़े हो जायेंगे।

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चन्द्रपाल के इस भ्रष्ट व्यवहार से तलवारों के कुशल कारीगर बड़े परेशान थे। वे रात दिन मेहनत करके एक से एक मजबूत चमचमाती तलवारें बनाकर लाते, पर चंद्रपाल उन्हें संूघकर ऐसे फेंकता जैसे कूड़ा हो। इनमें एक ऐसा कारीगर भी था, जो चतुर था। उसकी उम्दा तलवारों को कई बार चंद्रपाल ने घटिया कहकर लौटा दिया था।

इसलिए वह चंद्रपाल से बदला लेना चाहता था। और अपनी सूझबूझ के बल पर उसे ऐसा सबक सिखाना चाहता था कि भविष्य में वह ऐसी मक्कारी करना भूल जाये।

बहुत सोच विचार के बाद उसके दिमाग में एक तरकीब आई। उसने खूब धारदार एक तलवार बनाई और उसके दोनों तरफ पिसी हुई चिरचिरी लाल मिर्च अच्छी तरह लगा दी। फिर इस तलवार की परख के लिए जैसे ही उसे संूघना चाहा, लाल मिर्च उसकी नाम में घुस गई, नाक में बड़े जोरों की जलन मच गई। अगले ही पल उसे एक जबरदस्त छींक आई और बार-बार वह छींक मारने लगा। छींक के कारण सारे दरबार में कोहराम मच गया। राजा ने तुरन्त राजवैध को बुलवाया।

इसी बीच मौका पाकर वह कारीगर चुपचाप भीड़ में से खिसक गया। उसका बदला पूरा हो चुका था।

चंद्रपाल कि नाक लाल टमाटर की तरह हो गई थी। फिर राजवैध आये फिर उन्होंने चंद्रपाल को ठीक किया। चंद्रपाल को पता लग गया कि यह किसी की चाल थी। उस दिन से चंद्रपाल ने प्रण लिया कि वह अब से अच्छी और सही तलवार ही पंसद करेगा। उसके अगले ही दिन चंद्रपाल ने उन कारिगरों की तलवार पंसद की जिन्हें वे बेकार बता कर फेंक देता था। कारीगरों के चेहरे पर खुशी की लहर थी।

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