तंगुतुरी प्रकाशम (Tanguturi Prakasam) , जिन्हें "आंध्र केसरी" के नाम से जाना जाता है, भारत के स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख नेता थे और आंध्र प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री भी। उनकी जीवन यात्रा और देश के प्रति उनके योगदान ने उन्हें भारतीय इतिहास में अमर कर दिया है।
1. प्रारंभिक जीवन और शिक्षा:
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जन्म और बचपन: तंगुतुरी प्रकाशम का जन्म 23 अगस्त 1897 को श्री गोपालकृष्णय्या और श्रीमती सुब्बम्मा के परिवार में हुआ था। उनके परिवार की आर्थिक स्थिति सामान्य थी, लेकिन उनके माता-पिता ने उन्हें शिक्षा के महत्व को समझाया।
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शिक्षा और कानून की पढ़ाई: प्रकाशम ने प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद कानून की पढ़ाई के लिए मद्रास (वर्तमान चेन्नई) का रुख किया। वह एक कुशल वकील बने और मद्रास हाई कोर्ट में एक सम्मानित स्थान हासिल किया।
2. स्वतंत्रता संग्राम में योगदान:
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असहयोग आंदोलन और महात्मा गांधी से प्रेरणा: 1920 के दशक में, महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन से प्रेरित होकर, तंगुतुरी प्रकाशम ने अपनी वकालत छोड़ दी और पूर्णकालिक स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हो गए।
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साइमन कमीशन का विरोध: 1928 में जब साइमन कमीशन भारत आया, तो प्रकाशम ने इसके विरोध में अहम भूमिका निभाई। उन्होंने मद्रास में साइमन कमीशन के खिलाफ एक विशाल विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व किया।
3. आंध्र प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री:
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राजनीतिक करियर: स्वतंत्रता के बाद, 1953 में आंध्र प्रदेश के गठन के समय, तंगुतुरी प्रकाशम को राज्य का पहला मुख्यमंत्री नियुक्त किया गया।
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राज्य की सेवा में सुधार: मुख्यमंत्री के रूप में, उन्होंने राज्य के विकास के लिए कई सुधार लागू किए, जैसे कि कृषि सुधार, शिक्षा में सुधार और औद्योगिकीकरण को बढ़ावा देना।
4. व्यक्तिगत जीवन और विरासत:
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सादगी और सेवा: तंगुतुरी प्रकाशम का जीवन सादगी और सेवा का प्रतीक था। उन्होंने अपने जीवन का अधिकांश हिस्सा समाज के कमजोर वर्गों की सेवा में समर्पित किया।
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विरासत: उनके योगदान को मान्यता देते हुए, उन्हें "आंध्र केसरी" की उपाधि दी गई। उनका नाम आज भी आंध्र प्रदेश के इतिहास में सम्मान के साथ लिया जाता है।
तंगुतुरी प्रकाशम का जीवन और योगदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और आंध्र प्रदेश के विकास में अमूल्य हैं। उनकी जीवन यात्रा से हमें न केवल प्रेरणा मिलती है, बल्कि यह हमें सेवा और समर्पण का महत्व भी सिखाती है।
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