LOTPOT के पिटारे से एक अच्छी कहानी : बचत का महत्व

LOTPOT के पिटारे से एक अच्छी कहानी : बचत का महत्व:- किसी शहर में माधव और राधे नाम के दो व्यापारी रहते थे। दोनों में गहरी मित्रता थी। दोनों का व्यापार अच्छा चल रहा था। दोनों में बहुत कुछ समानता थी।

By Ghanshyam
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LOTPOT STORY the importance of saving

LOTPOT के पिटारे से एक अच्छी कहानी : बचत का महत्व:- किसी शहर में माधव और राधे नाम के दो व्यापारी रहते थे। दोनों में गहरी मित्रता थी। दोनों का व्यापार अच्छा चल रहा था। दोनों में बहुत कुछ समानता थी। अन्तर था तो सिर्फ इस बात का माधव जो कुछ कमाता था अपनी शान-शौकत पर खर्च कर डालता इसके विपरीत राधे था वह सोच समझकर खर्च करता था। इसके साथ ही साथ वह बचत भी करता था। यह देखकर माधव हंसता और कहता-राधे इतना कंजूस मत बनो, अपना व्यापार अच्छा चलता है। जितना खर्च कर सकता है वह कर कल की चिन्ता मत कर।

राधे ने माधव को एक दिन समझाया-मित्र सब दिन एक समान नहीं होते है। आज अपने दिन अच्छे हैं कल दिन फिर जायें। तब क्या होगा? उसके लिये तो बचत करनी ही होगी। माधव ने राधे की हंसी उड़ाते हुए कहा। तू तो निरा बुद्धू है। हमें बचत करने की कोई आवश्यकता नहीं है। मुझे घाटा कभी लग ही नहीं सकता है। बचत तो मूर्ख और कंजूस लोग करते हैं। माधव की बातें सुनकर राधे कुछ न बोला।

दिन बीतते गये। माधव और राधे ने बहुत धन कमाया। अपनी आदत के अनुसार माधव के पास कुछ भी धन जमा न था। इसके विपरीत राधे ने बचत कर बहुत धन जमा कर लिया था। अब उसके आगे पीछे उसके मतलबी मित्र घूमते थे। क्योंकि उन्हें भी मौज-मस्ती करने को मिलती थी।

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कुछ दिनों बाद इन सब बातोें को लेकर माधव और राधे में झगड़ा हो गया। समय बीतता गया। माधव को व्यापार में भारी घाटा लगा। क्या करता? कहाँ से पैसे लाता? सब पैसे तो उसने शान-शौकत में खर्च कर डाले थे। माधव ने सोचा अपने मित्रोें से सहायता लूँ। पर उन सबने टका सा उत्तर दे दिया। हमारे पास तो पैसे नहीं है। हम खुद ही तंगी में हैं। यह सुनकर माधव को धक्का लगा। उसने मन में सोचा कि जो मित्र पहले लम्बी-चैड़ी हांकते थे। अब वहीं से अंगूठा दिखा रहे है। उसकी और उसके परिवार वालों की दशा दयनीय हो गई थी। घर में चूल्हा जलना भी मुश्किल हो गया था।

तब उसे अपने मित्र राधे की याद आई। वह उसके घर सकुचाते हुए पहुँचा। राधे ने अपने मित्र की दशा देखी तो वह दुश्मनी भूल गया और दौड़ पड़ा उसकी ओर। दोनों मित्र गले लग गये थे।

माधव ने सारी बातें अपने मित्र से कही। तब राधे ने कहा। इतनी सी बात के लिए तुम परेशान हो। जितना धन चाहिए, मुझसे ले लो। माधव ने कहा। मित्र अगर मैंने तुम्हारी बाते पहले मान ली होती तो यह दिन मुझे देखना नहीं पड़ता।

इस पर राधे ने कहा। मित्र पुराने बातें भूल जाओ, और फिर से व्यापार फिर से चलने लगा। अब वह शान-शौकत पर धन खर्च नहीं करता, बल्कि उसी धन का संचय करता था क्योंकि उसने बचत के महत्व हो जान लिया था और दोस्तों को परख भी लिया था।

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