बाल कहानी- हीरालाल की कहानी

हीरालाल के माता-पिता का देहांत बिजली गिरने से हो गया। ज़मींदार ने दया दिखाते हुए उसे आश्रय और भोजन दिया, लेकिन सभी घरेलू काम भी करवाए। कुछ वर्षों बाद, हीरालाल को खेत में भी काम करना पड़ा। साथी मजदूर के आलसी रवैये के बावजूद हीरालाल ने मेहनत जारी रखी।

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Bal Story- Story of Hiralal

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बाल कहानी: हीरालाल की कहानी- हीरालाल महज दस वर्ष का था जब उसके माता पिता का देहांत हो गया था। एक दिन उसके माता पिता खेतों में काम कर रहे थे तो बिजली की चपेट में आ गए थे। वह एक ज़मींदार के लिए काम करते थे और हीरालाल के माता पिता के गुजरने के बाद ज़मींदार को छोटे लड़के पर दया आ गई।  अब हीरालाल ज़मींदार के परिवार के साथ रहता था जो उसे खाना देते थे और बड़े घर के एक कोने में सोने की जगह देते थे। ज़मींदार की पत्नी वैसे तो अच्छी औरत थी लेकिन फिर भी वह हीरालाल से काम करवाना नहीं भूलती थी। उसे वह घर के सभी काम करने का हुक्म देती थी। हालांकि हीरालाल भी काम करने से पीछे नहीं हटता था क्योंकि उसे एक दिन में तीन समय का खाना मिलता था और वह तब आराम कर सकता था जब ज़मींदार का परिवार आराम करता था। इसलिए हीरालाल बड़बड़ाता नहीं था।

दो साल बाद ज़मींदार ने देखा कि हीरालाल हट्टा कट्टा हो गया है और उसने सोचा कि अब वह उससे खेतों में काम ले सकता है जहां पर उसने उसके माता पिता के निधन के बाद दो लोगों को काम पर रखा था। ज़मींदार ने एक आदमी को हटाते हुए हीरालाल को दूसरे आदमी की मदद करने के लिए कहा। अब हीरालाल को लगा कि उसे बिना किसी आराम के सुबह से शाम तक काम करना पड़ेगा और सिर्फ ज़मींदार की पत्नी द्वारा दिया गया खाना खाने के लिए समय दिया जाएगा।

खेतों में काम करने वाला दूसरा कर्मचारी आलसी था और वह थोड़ी थोड़ी देर बाद बड़े पेड़ की छाव में जाकर बैठ जाता था और पान खाता रहता था। जैसे जैसे दिन निकले आदमी लेटकर सोने लगा और उसने आदत बना ली की हीरालाल काम करे और वह आराम करे। हीरालाल ने अपना काम जारी रखा। उसने सोचा कि ज़मींदार को आदमी की शिकायत लगाने से कोई फायदा नहीं है। लेकिन उसने फैसला किया कि वह ज़मींदार के साथ घर पर नहीं रहेगा और सिर्फ खेत में काम करेगा। वह कहीं और जाकर अकेला रहेगा। तो एक दिन उसने अपने कपड़ों को बांधा और ज़मींदार के पास गया। ज़मींदार को अलग कपड़ों में देखकर हैरान था क्योंकि हीरालाल ने काम करने वाले कपड़े नहीं पहने थे जो वह खेतों मे जाने से पहले पहनता था। ज़मींदार ने हीरालाल के कंधे पर कपड़ों की गठड़ी भी देखी।

उसने हीरालाल से पूछा, ‘क्या हुआ? तुम कहा जा रहे हो हीरालाल?’ ज़मींदार को शक था कि उसके खेत पर रहते हुए हीरालाल को दूसरा काम कैसे मिल गया। हीरालाल ने कहा, ‘बाबू जी मैं आपका शुक्रिया करता हूं कि आपने पांच सालों तक मेरी देख रेख की। अब मुझे खुद के लिए कुछ करना है। मैं कभी नहीं भूलूंगा कि आपने मेरे लिए क्या क्या किया।’ ‘वह ठीक है, लेकिन हीरालाल मुझे यह बताओ कि तुम जा कहा रहे हो?’ ज़मींदार ने पूछा।

‘मालिक, मैं बनारस जाना चाहता हूं और वहां जाकर कुछ काम ढूंढूगा। मुझे पता चला है कि बनारस इस गांव के मुकाबले एक बड़ा शहर है और वहां काम ढूंढना मुश्किल नहीं है।’

तो हीरालाल बनारस के लिए निकल गया और वहां जाकर उसने अपनी पसंद का काम ढूंढा और पूरी मेहनत के साथ काम करके खुश रहने लगा। अब उस पर किसी का भी भार नहीं था।

हीरालाल की कहानी हमें जीवन में कठिन परिस्थितियों का सामना करने, आत्मनिर्भर बनने और खुद के पैरों पर खड़े होने की महत्वपूर्ण शिक्षा देती है।

जब उसके माता-पिता का देहांत हो गया, तब भी उसने हार नहीं मानी। वह कड़ी मेहनत करता रहा और दूसरों की नकारात्मकता से प्रभावित नहीं हुआ। जब उसे एहसास हुआ कि अब वह स्वतंत्र जीवन जी सकता है, उसने साहसिक निर्णय लिया और अपने भविष्य को बेहतर बनाने के लिए बनारस जाने का निश्चय किया।

यह बाल कहानी हमें सिखाती है कि:

  • कठिन समय में भी मेहनत और धैर्य से सफलता पाई जा सकती है।

  • आत्मनिर्भर (Self dependent) बनने से जीवन में खुशहाली आती है।

  • दूसरों के शोषण को सहना नहीं चाहिए, बल्कि उससे बाहर निकलने का साहस करना चाहिए।

  • नए अवसरों (Opportunities) की तलाश और कड़ी मेहनत से जीवन बदला जा सकता है।

  • जब तक हम खुद प्रयास नहीं करेंगे, तब तक परिस्थितियाँ नहीं बदलेंगी।

"संघर्ष से घबराओ मत, मेहनत करो और आत्मनिर्भर बनो।"
यही इस कहानी का सबसे बड़ा संदेश है। 

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